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तो उत्तराखण्ड के मदरसों में पढ़ाई जाएगी संस्कृत!

Janjwar Team
30 Dec 2017 3:43 PM GMT
तो उत्तराखण्ड के मदरसों में पढ़ाई जाएगी संस्कृत!
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उत्तराखण्ड के मदरसों में संस्कृत की पढ़ाई के लिए एमडब्ल्यूएसयू ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र तो मदरसा बोर्ड ने कहा संस्कृत की कीमत पर नहीं छोड़ सकते अरबी—फारसी भाषा...

देहरादून। एक तरफ जहां उत्तराखंड के मदरसों में संस्कृत पढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है, वहीं इसका विरोध होना भी शुरू हो गया है। उत्तराखण्ड मदरसा बोर्ड ने कहा है कि हम संस्कृत के लिए अरबी—फारसी भाषा को नहीं छोड़ सकते हैं।

मदरसा वेलफेयर सोसाइटी ने राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत से मदरसों में संस्कृत पढ़ाए जाने की अनुमति देने की मांग की है, तो उत्तराखण्ड मदरसा बोर्ड ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि मदरसों में संस्कृत की पढ़ाई करवाना कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है। इसके लिए मदरसा बोर्ड ने मदरसा वेलफेयर सोसायटी का विरोध किया है।

गौरतलब है कि सामाजिक संस्था मदरसा वेलफेयर सोसायटी ऑफ उत्तराखंड (एमडब्ल्यूएसयू) द्वारा उत्तराखण्ड में तकरीबन 207 मदरसे चलाये जाते हैं। इन मदरसों में लगभग 25 हजार छात्र शिक्षा पाते हैं। चूंकि इतनी बड़ी तादाद में बच्चे मदरसे में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो एमडब्ल्यूएसयू ने मांग की थी और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखा कि जैसे अन्य संस्थाओं—स्कूलों में संस्कृत पढ़ाई जाती है, वैसे ही मदरसों में भी संस्कृत की पढ़ाई शुरू करवा दी जाए।

एमडबल्यूएसयू की चेयरपर्सन सिब्ते नबी इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखा और एसपीक्यूईएम योजना के तहत मदरसों में संस्कृत के शिक्षक नियुक्त किए जाने का निवेदन किया है।

गौरतलब है कि एसपीक्यूईएम केंद्रीय एचआरडी मंत्रालय द्वारा कुछ वर्ष पहले शुरू की गई योजना है। इसके माध्यम से अलग—अलग विषयों जैसे गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी और सामाजिक विषय को मदरसों से जोड़कर यह कोशिश की गई थी वहां शिक्षा व्यवस्था में सुधार आए। यहां एक बात और बात करने योग्य है कि खासतौर पर इन विषयों के लिए नियुक्त किए गए शिक्षकों की तनख्वाह केंद्र सरकार द्वारा दी जाती है।

संस्कृत को मदरसों में शामिल करने के पीछे चेयरपर्सन टाइम्स सिब्ते नबी ने तर्क दिया है चूंकि सिविल सर्विस के लिए होने वाले एग्जाम में संस्कृत सबसे ज्यादा अंक हासिल करने वाला विषय माना जाता है और उत्तराखंड की आधिकारिक भाषाओं में से संस्कृत एक है इसलिए इसे मदरसों के कोर्स में भी शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही नबी ने कहा कि अगर मुस्लिम बच्चों को भी संस्कृत की शिक्षा मिलेगी तो वो बीएएमएस की पढ़ाई कर सकते हैं, क्योंकि संस्कृत के माध्यम से मुस्लिम बच्चे योग और आयुर्वेद से जुड़ी जानकारियां भी हासिल कर पाएंगे।

इतना ही नहीं सिब्ते नबी इसे भारतीय संस्कृति के लिए भी फायदेमंद बताया। कहा कि संस्कृत को मदरसे के कोर्स में शामिल करवाने के आग्रह का एक कारण यह भी है कि हम आपसी हिंदू—मुस्लिम संस्कृति को युवाओं के साथ मिलकर आगे बढ़ाएं। जहां तक सवाल यह है कि क्या मुस्लिमों को संस्कृत आती है तो पूरे देशभर में तकरीबन 5 हजार ऐसे मौलाना हैं जो चारों वेदों का न सिर्फ ज्ञान रखते हैं, बल्कि संस्कृत भाषा बोलना भी अच्छी तरह जानते हैं।

वहीं मदरसों में संस्कृत पढ़ाए जाने को अव्यावहारिक बताते हुए उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के डिप्टी रजिस्ट्रार अखलाक अहमद अंसारी कहते हैं, हालांकि मदरसों में संस्कृत पढ़ाने को लेकर फिलहाल हमें किसी भी मदरसा से कोई पत्र नहीं मिला है, मगर मदरसों के कोर्स में अगर संस्कृत को जोड़ा जाता है तो यह तकनीकी समस्या का परिणाम होगा। अंग्रेजी और हिंदी भाषा हमारी प्राथमिकता में हैं,जिन्हें मदरसों में पढ़ाया जाना आवश्यक है। इसके अलावा हमारे पास एक ही भाषा का आॅप्शन बचता है जो फारसी या अरबी में से कुछ हो सकता है। हम संस्कृत के लिए अरबी और फारसी भाषा को नहीं छोड़ सकते हैं।'

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