क्या मुस्लिम विरोधी थे बाबा साहेब अंबेडकर- जानें इस दावे में कितनी है सच्चाई?
अंबेडकर से जुड़ा एक दावा ऐसा है जो अक्सर सोशल मीडिया पर किया जाता है. कुछ लोग उनके विचारों को शेयर कर यह जताने की कोशिश करते हैं कि वह मुस्लिम विरोधी थे...
मनीष कुमार की रिपोर्ट
नई दिल्लीः बाबा साहब भीम राव अंबेडकर भारतीय इतिहास के एक ऐसे नायक हैं जिनकी प्रासंगिकता भारतीय जनजीवन और राजनीति में लगातार बनी हुई है. यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दल उन की विरासत पर अपने दावा करते हैं.
लेकिन अंबेडकर से जुड़ा एक दावा ऐसा है जो अक्सर सोशल मीडिया पर किया जाता है. कुछ लोग उनके विचारों को शेयर कर यह जताने की कोशिश करते हैं कि वह मुस्लिम विरोधी थे. ये लोग खासकर उनकी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान का जिक्र करते हैं.’ इस किताब में बाबा साहब ने पाकिस्तान के प्रश्न पर विचार किया है.
'किताब में मुस्लिमों की बुराइयों की आलोचना कि गई है लेकिन हिंदू राज पर भी निशाना साधा गया है '
जनज्वार ने इस विषय पर जब प्रसिद्ध इतिहासकार शम्सुल इस्लाम से बात की तो उन्होंने अंबेडकर की मुस्लिम विरोधी होने की बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा, बाबा साहब एक शोधकर्ता हैं, उनकी रिसर्च का दायरा किसी एक विषय तक सीमित नहीं है. जाति प्रथा से लेकर, अर्थशास्त्र, इतिहास, खान-पान सभी उनके अध्ययन के विषय रहे हैं.
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उन्होंने कहा, - ‘बाबा साहब सभी तथ्यों को पाठक के सामने रखते हैं. इस किताब में भी उन्होंने पाकिस्तान के विषय पर सभी तथ्य एक जगह रखे हैं. उन्होंने इस किताब इस्लाम में फैली बुराई की आलोचना की है.
शम्सुल इस्लाम का कहना है कि किताब में अंबेडकर ने तथ्यों के जरिए यह बताने कि कोशिश की है कि जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग द्वारा संचालित सांप्रदायिक राजनीति सिर्फ देश के लिए ही नहीं बल्कि आम मुसलमानों के लिए भी बहुत हानिकारिक होगी. उन्होंने कहा, 'इसके साथ ही किताब में बाबा साहब यह भी बताते हैं कि हिंदू राज भारत के लिए बड़ा खतरा है और इसे हर हाल में रोकना होगा.
बाबा साहब को मुस्लिम विरोधी बताने वालों से वह सवाल करते हैं- ‘बाबा साहब ने तो हिंदू धर्म ही त्याग दिया था. नया कौन सा धर्म अपनाया जाए इसके लिए उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और आखिर में वह बौद्ध बन गए.’
'बाबा साहब का इस्तेमाल हर विचारधारा ने किया'
वहीं समाजशास्त्री अभयकुमार दुबे का मानना है कि बाबा साहब के दौर में आजकल जैसी पॉलिटिकल करेक्टनेस नहीं थी. दुबे कहते हैं, ‘उस दौरान लोग खुलकर अपने विचारों को व्यक्त करते थे. थॉट्स ऑन पाकिस्तान (जिसके बारे में दावा है कि दक्षिणपंथी उसका इस्तेमाल करते हैं) उन्हीं की रचना है लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि वह दक्षिणपंथ के भी बड़े आलोचक थे और हिंदूवाद की उन्होंने तीखी आलोचना की थी.’
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हालांकि अभय कुमार दुबे यह कहते हैं कि बाबा साहब का संपूर्ण अध्ययन कोई नहीं करता है और हर राजनीतिक विचारधारा अपने-अपने हिसाब से उनके वक्तव्यों को कांट-छांटकर अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश करती रही है. इसमें दक्षिणपंथी तो शामिल रहे ही हैं लेकिन इसमें अंबेडकरवादी शामिल रहे हैं. जहां अंबेडकरवादियों ने थॉट्स ऑन पाकिस्तान जैसी रचना पर कम बात की वहीं अब दक्षिण पंथ इस किताब पर ज्यादा बात करना चाहता है.
उन्होंने कहा, 'अंबेडकर का जो वांग्मय है उसका बरीकी और निष्पक्षता के साथ अध्ययन होना अभी बाकी है. अंबेडकर के विचारों के चुनिंदा इस्तेमाल से बहुत गलतफहमियां पैदा होती है जो कि नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अंबेडकर की बात का किसने क्या मतलब निकला और किसने उनकी कुछ बातों का क्या राजनीतिक इस्तेमाल कर लिया इस पर अलग से अध्ययन होना चाहिए. '