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जनज्वार विशेष

मेरी मां ने मुझे हर बार पिता जैसा बनने से रोका

Janjwar Team
22 Oct 2017 3:00 PM IST
मेरी मां ने मुझे हर बार पिता जैसा बनने से रोका
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जनज्वार ने हाउस वाइफ के बाद 'मेरे जीवन में मेरी मां' कॉलम शुरू किया है। इसमें आपको अपनी मां के बारे में, उनको लेकर रची—बसी यादों को या फिर उनका जो भी महत्व आपके लिए बनता है, उस बारे में लिखना है। कोशिश करनी है कि आप उन्हें पूरे यत्न से याद करें और बारीकी से लिखें— संपादक

मुझे हमेशा यह बात खलती रही कि मेरी मां बात—बात में कहती थी — तू अपने बाप जैसा बनने की कोशिश मत कर लेना, तेरी जान ले लूंगी...

इसकी पहली कड़ी में अपनी मां को याद कर रहे हैं श्री प्रकाश शुक्ला

मैंने पिछले महीने पितृपक्ष में अपनी मां की याद में मुंडन करवाया था। हिंदू रिवाजों के अनुसार अपने पूर्वजों की याद में ऐसा कराने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पर मैं अपने बारे में बताउं तो मुझे अपनी मां को याद कर शांति मिलती है। मेरे लिए यह महीना किसी प्रेमी की तरह खिले दिल वाला होता है। मैं इस महीने को इसी रूप में ही जीता हूं।

मेरे पिता का मेरी जिंदगी में बहुत मामूली योगदान रहा। उन्होंने मुझे बस पैदा किया। वह भी इसलिए कि मेरी मां कहती थी तेरा चेहरा बिल्कुल तेरे पिता जैसा है।

मेरे पिता मेरे जन्म के कुछ महीनों बाद घर छोड़कर चले गए। मैं बड़ा हुआ तो मां ने बताया कि तुम्हारे पिता को मैं पसंद नहीं थी, इसलिए वह चले गए। बाद में और बड़े होने पर पता चला कि मेरे पिता की सरकारी नौकरी थी और उन्होंने दूसरा परिवार और घर बसा लिया। लोग जवान होने के बाद भी बताते रहे कि तुम्हारे पिता इसी शहर में रहते हैं, पर मैं कभी उनसे नहीं मिला। हालांकि मैं उनसे इसलिए नहीं मिला कि मुझे उनसे कोई नफरत थी, बल्कि मुझे कभी उनसे मिलने की जरूरत नहीं लगी। कभी ऐसा लगाव नहीं बना जैसे किसी बेटे को बनता होगा।

आप सोचेंगे कि मेरी मां की वजह से ऐसा हुआ होगा। पर मैं ऐसा नहीं मानता। मेरी मां ने कभी पिता की मुझसे शिकायत नहीं की, कभी उन्होंने पिता के नाम पर रोते—बिलखते बुरा—भला नहीं कहा। उनके बारे में वह कभी बात नहीं करती, न ही तारीफ में और न ही शिकायत में। वह शायद ऐसी ही थीं। उन्होंने मेरे जवान होने और नौकरी में आने के बाद भी कभी एक पैसे की कोई मदद मुझसे नहीं मांगी। वह आजीवन सिलाई—कढ़ाई कर गुजारा करती रहीं और उसी से जीती और मुस्कुराती रहीं।

सिलाई का काम उनके लिए लगभग हर रोज एक प्यारा खेल होता। मोहल्ले के बच्चे, उनके साथ औरतें और कुछ करने का सपना लिए लड़कियां आतीं। वह दिन भर मेरी मां को ताई—ताई करतीं रहतीं और मां इसी में मस्त रहतीं।

इन्हीं मस्ती के दिनों में एक दिन मैंने कूड़े वाली आंटी को कुतिया बोल दिया। मेरी मां के कान में अभी यह आवाज पहुंची ही रही होगी कि वह बिजली की तेजी से आईं और चटाक से एक थप्पड़ मेरे चेहरे पर रसीद किया। गली में घुस चुकी आंटी के पास ले गयीं और कहीं, चल इन्हें सॉरी बोल

उसके बाद की एक घटना और बताता हूं। पर ऐसे मौकों पर जब वह मुझे मारतीं तो जरूर बोलतीं कि अगर अपने पिता जैसा बनने की कोशिश की तो तेरी जान ले लूंगी। इसके अलावा पिता की मेरे घर में कोई चर्चा नहीं होती। पर इसका यह मतलब भी नहीं कि मेरे घर में कोई तनाव या गम का माहौल रहता, बल्कि हम दूसरे परिवारों की तरह खुशहाल रहते।

वह महिलाओं और बच्चों को लेकर बहुत संवेदनशील थीं। पर मैं समझ नहीं पाता था कि मेरी मां इतनी संवदेनशील क्यों हैं? लोग बताते थे कि तुम्हारे पिता कि इस घर में आखिरी शाम थी जब उन्होंने तुझे उठाकर सीढ़ियों से फेंक दिया था और तुम्हारी मां को गालियां बकीं थीं। गालियां वह अक्सर बकते थे, पर उस दिन तुम्हारी मां ने उन्हें तलवार लेकर गली में दौड़ा लिया, जब तुम्हें फेंका।

पर यह बात मेरी मां के बारे में मुझे तब पता चली जब मां ने मुझ पर कैंची चला दी और फिर बोली, अपने बाप के रास्ते पर चलना हो तो मेरे यहां कोई जगह नहीं है। फिर मां बहुत देर तक फफक कर रोती रहीं, मैंने माफी मांगी तो वह सामान्य हुईं।

हुआ ये था कि मैं चौराहे पर मोहल्ले के लड़कों के साथ खड़ा था। मोहल्ले की लड़की गुजरी सबने छींटाकशी की तो मैंने भी कुछ बोल दिया। थोड़ी देर लड़की के पीछे—पीछे भी चला। शायद वह लड़की डर गयी। उसने मेरी मां को आकर बताया और मां ने मुझसे पहले पूछा और मैंने जैसे ही बोला, 'क्या हो गया, इतना तो चलता है। तो मां ने कैंची चला दी थी।

ऐसी बहुत सारे वाकये हैं मेरे जीवन के जब मां ने मुझे अपने पिता जैसा बनने से हमेशा रोका।

मेरी मां की सहेली कभी—कभी पिता के बारे में बतातीं। कहती तेरे पिता बहुत लापरवाह और तुनक मिजाज इंसान थे। उन्होंने कभी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई। शादी के बाद घर से अलग हो गए, जबकि तेरी मां ने कहा साथ रहते हैं परिवार के। अलग होने के बाद काम धंधा बहुत था नहीं, लेकिन औरतें तीन—चार पटा लीं थीं। हां, बाद में उनकी सरकारी नौकरी जरूर लग गई थी। तेरे पिता ने न कभी तेरी मां की इज्जत की और न उन औरतों की जिनसे शादी के बाद उनको मोहब्बत थी।

मेरी मां जब कभी निश्चिंत रहती या काम—धाम हल्का होता तो मुझे वह घुमाने ले जातीं। शहर के अलग—अलग हिस्सों में। कई बार इस दौरान मेरी मां के एक दोस्त होते। वह कभी—कभी आते। पर जब वह आते तो हमारे घर की रौनक बढ़ जाती। उन्हें आप मेरी मां का सबसे बड़ा हितैषी समझ सकते हैं। लेकिन हमारे घर में खुशी की तरह आते। मैंने बड़े होने पर कई बार गौर किया कभी मां ने उनसे एक रुपए की मदद नहीं ली।

आज जब मैं अपनी मां का याद कर रहा हूं, यह सब बारीक बातें बता रहा हूं तो मैं आप सबसे यह चाहता हूं कि आप उसे ही सही मानें जो मैं कह रहा हूं। मेरी मां का यही विश्लेषण भी है, अलग से बैठे—ठाले दिमाग न भिड़ाएं।

आपको बता दूं कि मेरी मां भगवान को न के बराबर मानती थी पर वह मेरे लिए भगवान की तरह थी। वह जब नहीं है, मैं दूसरे मर्दों और नौजवानों का अपने घरों में व्यवहार, पत्नियों को लेकर रुख, औरतों के प्रति रवैया देखता हूं तो लगता है कि हर घर में मेरी मां जैसी एक मां होनी चाहिए, जो अपने बच्चों को अपने बापों जैसा न बनने दे। (फोटो प्रतीकात्मक)

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