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समाज

लिंचिंग में मारे गए लोगों के परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाती सरकार?

Prema Negi
7 Aug 2018 4:03 AM GMT
लिंचिंग में मारे गए लोगों के परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाती सरकार?
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मानवाधिकार और न्यायपालिका के माननीयों को आखिर इनके हालात क्यों नहीं दिखते? क्यों नहीं वो स्वतः संज्ञान लेते हुए लिंचिंग में मार दिए गए लोगों के परिवार का आर्थिक जिम्मा उठाने का आदेश राज्य और केंद्र सरकार देते...

सुशील मानव की रिपोर्ट

पिछले तीन-चार साल में हिंदुत्व के उन्माद में उन्मादित भीड़ द्वारा पचास से भी ज्यादा लोग जान से मार या मरवा दिए गए। मारे गए लोगो में से अधिकांश अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले थे। घर के कमाऊ सदस्य की हत्या के बाद उन पर बुरी तरह निर्भर रहे परिवार आर्थिक रूप से बेहद दयनीय स्थिति में पहुँच गए हैं। उनके पास आर्थिक सुरक्षा का अब कोई आधार ही नहीं है।

इस फ़ोटो में जो औरत ग़मों के भार से सिर झुकाए बैठी दिख रही है वो मरहूम शेख़ अब्दुल हलीम की बीवी नसरीन है जबकि स्कूली ड्रेस में बैठी दोनो मासूम लड़कियाँ कहकशा और मन्तशा उन दोनो की बेटियाँ हैं।

दोनों बेटियाँ मां के पास स्कूल की शिकायत लेकर आई हैं कि पाँच महीने की फीस नहीं जमा होने के चलते स्कूल से अल्टीमेटम मिला है। बता दूँ कि नसरीन गृहिणी हैं शौहर की हत्या के बाद से उनके पास आय का कोई और जरिया नहीं बचा है। देश दुनिया से बेखबर रहने वालों के लिए पूरी कहानी एक बार फिर से सुना दे रहा हूँ-

झारखण्ड और उड़ीसा बॉर्डर के पास एक जगह है हल्दी पोखर जोकि ज़िला सराय केला में आता है। शेख अब्दुल हलीम का परिवार यहीं रहता था। कुछ साल दुबई में कमाने को बाद दो साल पहले ही शेख अजीज दुबई छोड़कर अपने गांव वापिस लौट आए थे हमेशा के लिए। वहां से आने के बाद वो बचाए हुए पैसों से पुरानी कार खरीदकर उसको पेंट पॉलिश करके बेंच देते थे। उससे जो थोड़ी-बड़ी कमाई हो जाती थी उसी से परिवार का खर्च चलता था। और फिर नसरीन की ज़िंदग़ी में आई 27 मई 2017 की वो अँधेरी रात जब अपने 3 दोस्तो नईम, सज्जू और सिराज के साथ कहीं जाने के लिए निकले थे।

उनमें से एक दोस्त नईम जानवरो को खरीदने बेचने का काम करता था। उस रात एक गाड़ी ने उनका पीछा किया और आगे कुछ लोगो ने सड़क पर एक पेड़ काट कर डाल दिया। शेख हलीम वहां से अपनी जान बचाते हुए पास में अपने बहनोई के गाँव मे छुप गए।

उस रात हज़ारों लोगो की भीड़ ने गांव घेर लिया और गाँव वालों से कहा कि उन तीनों को हमारे हवाले कर दो वरना हम इस गाँव को गुजरात बना देंगे। और फिर सबकी आखों के सामने हलीम को बच्चा चोरी का इल्जाम लगा कर जान से मार डाला गया। बाकी के तीन दोस्त भागने की कोशिश में जंगल मे पकड़कर मार डाले गए।

हलीम की बीवी नसरीन का कहना है कि न मैं वो रात भूल सकती हूँ और न उन मारने वालो को माफ कर सकती हूं। दोनों बच्चिया स्कूल में है लेकिन लड़के के स्कूल जाने के पैसे नही है। नसरीन कहती हैं इतनी लंबी ज़िन्दगी इन बच्चों की बाप की बिना कैसे कटेगी? लेकिन काटनी पड़ेगी, वो बोली मैंने अपने बेटे को अभी तक ये नही बताया कि उनका बाप नही रहा है लेकिन ये कब तक छुपाउँगी, उनके ये बोलते ही दोनों बेटियां रोने लगी। परिवार की गुरबती पर गुरबती का आलम ये है कि पूरे मामले में कोई वकील तक नहीं है, सरकारी वकील के भरोसे काम चल रहा है।

ये सिर्फ एक नसरीन की या उनके बच्चों की कहानी नहीं है। लिंचिस्तान में जन्मी सैकड़ो कहानियों में सिर्फ आंसू और अफ़सोस और बदहाली के सिवाय कुछ नही है। किसी किसी मामले में जो मीडिया में ज्यादा हाईलाइट हो गया उसमें पीड़ित परिवार को सरकार की ओर से कुछ मुआवजा मिला भी है तो वो ऊँट के मुँह में जीरा जैसा।

बिल्कुल यही कहानी इस साल के 19 जून को गौकशी के फर्जी आरोप लगाकर मार दिए गए पिलखुआ हापुड़ उत्तर प्रदेश के कासिम की पत्नी नसीम की है। नसीम रौंधे गले से बताती हैं कि, ‘हमारे घर में कासिम ही अकेला कमाने वाला था। उसकी ही कमाई से हमारा घर चलता था। मेरा और मेरे हच्चे का पेट भरता था। बड़ी बेटी ब्याह के लायक हो गई है। अब हमारा ख्याल कौन रखेगा?’बता दें कि नसीमा और मृतक कासिम के 6 बच्चे हैं। बड़ी बेटी की उम्र 18 साल है जबकि सबसे छोटे बच्चे की उम्र चार साल है।

ये तस्वीर मृतक सिराज ख़ान की बीबी शहीदुन्ननिशा की है। तस्वीर में शहीदुन्ननिशा के साथ जो चार बेनूर बच्चे दिख रहे हैं वो सिराज औऱ शहीदिन्निशा के बच्चे हैं, एक बेटा और तीन बेटियां। शहीदुन्ननिशा पूछती हैं, ‘बड़ी बेटी शादी लायक हो गई है। कैसे करूँगी उसका निकाह कैसे पालूँगी चार चार बच्चों को अकेले अब मैं, जबकि कमाने वाला ही चला गया।’ बता दें कि 17 मई 2017 को सतना मध्यप्रदेश के अमगार गाँव में हत्यारों की झुंड ने उसके साथी शकील अहमद समेत पीट पीटकर मौत के घाट उतार दिया था।

सिर्फ मुसलमान ही नहीं हिंदू भी लिंचिंग के शिकार हुए हैं। इस साल 1 जुलाई को महाराष्ट्र के धुले जिले में बच्चा चोरी की वॉट्सएप मेसेज से गुस्साए ग्रामीणों द्वारा गए राजू की जीवनसंगिनी इंदा भोसले का है जिसके पति को भीड़ ने इस साल बच्चा चोरी की अफवाह में पाँच लोगो समेत पीट-पीटकर मार डला था। इंदा के दोनो बच्चे अभी बहुत, बहुत छोटे हैं। न उसके पास कमाई का कोई साधन है न कोई संचित पूँजी। ऐसे में दो यतीम बच्चों को वो कैसे पाले। पति की हत्या के बाद अब उसके लंबे जीवन में अँधेरे ही अँधेरे बचे हैं।

जो सरकार अपने नागरिकों को उनके जीवन की सुरक्षा नहीं दे सकी। जो घर के एकलौते कमाऊ सदस्यों के प्राणों की रक्षा नहीं कर सकी। उसे लिंचिंग में मारे गए तमाम लोगो के परिवारों में बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य व शादी-ब्याह तथा मृतक के आश्रित माँ-बाप व बीवी के गुज़ारे के ताईं जीवनपर्यन्त आर्थिक भार उठाना चाहिए। और महीने के महीने उनके पास गुजारे लायक पैसे पहुँचाने का इंतजाम करना चाहिए।

राज्य और केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी नाकामी की सज़ा लिंचिंग में मारे गए लोगो के बच्चों व बीबी व बूढ़ें मा-बाप को न भुगतनी पड़े। उनके बच्चे शिक्षा, ईलाज और एक अदद अच्छी जिंदग़ी से महरूम न रहने पायें।

मानवाधिकार और न्यायपालिका के माननीयों को आखिर इनके हालात क्यों नहीं दीखते? क्यों नहीं वो स्वतः संज्ञान लेते हुए लिंचिंग में मार दिए गए लोगो के परिवार का आर्थिक जिम्मा उठाने का आदेश राज्य और केंद्र सरकार देते? तमाम पत्रकार और मीडिया के स्टार एंकर लिंचिंग में मारे गए तमाम परिवारों के जीवन झंझावत में झाँकने फिर क्यों नहीं गए? क्यों नहीं वो इन मासूमों की बदहाली को अपने स्क्रीन पर दिखाकर सरकार और न्यायपालिका पर इनका जीवनपर्यन्त आर्थिक सुरक्षा देने का दबाव बनाते हैं।

आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा देने वाले अपने बेगुनाह पिता को खोकर फटेहाली में फाँका मारते ये बच्चे कल को क्रोध और बदले की भावना लिए हुए गर अपराध की दुनिया के नागरिकता लेने लगें तो उसका जिम्मेदार और जवाबदेह आखिर कौन होगा सरकार के सिवाय?

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