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आनंद पटवर्धन की फिल्म 'राम के नाम' को यूट्यूब ने किया बैन
पटवर्धन लिखते हैं, 'यूट्यूब 'राम के नाम' को बैन कर हिंदुत्व के गुंडों की चाहत को पूरा कर रहा है, जो सभी धर्मनिरपेक्ष सामग्री को सोशल मीडिया से हटा देना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने मेरी फिल्म 'राम के नाम' पर "आयु प्रतिबंध" लगाया है...
जनज्वार। अंतरराष्ट्रीय फेम फिल्ममेकर आनंद पटवर्धन की दो दशक से भी पुरानी फिल्म 'राम के नाम' पर यूट्यूब ने बैन लगा दिया है। यह जानकारी खुद आनंद पटवर्धन ने सोशल मीडिया पर शेयर की है और अपील की है कि इसके खिलाफ आवाज उठाई जाए।
स्क्रॉल वेबसाइट पर छपी एक खबर के मुताबिक YouTube ने 18 वर्ष से कम आयु के उपयोगकर्ताओं के लिए आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री 'राम के नाम' को ब्लॉक कर दिया है, जिसके खिलाफ सोशल मीडिया पर आक्रोश देखने को भी मिल रहा है। खुद आनंद पटवर्धन ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यूट्यूब पर फिल्म बैन किए जाने की खबर साझा करते हुए वीरा साथीदार लिखते हैं, 'जिस समय यह फिल्म देखना सबसे ज्यादा जरूरी है, ठीक उसी समय कोई बहाना बनाकर नागरिकों से फिल्म को दूर किया जा रहा है।'
गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की पृष्ठभूमि पर आनंद पटवर्धन ने 'राम के नाम' फिल्म नब्बे के दशक के बाद बनाई थी। तब राम जन्मभूमि के नाम पर भाजपा और आरएसएस समेत उसके आनुशांगिक हिंदुवादी संगठनों ने धार्मिक कट्टरता का बिगुल छेड़ रखा था।
जब अयोध्या में राम जन्मभूमि के मुद्दे को भाजपा और हिन्दू संगठनों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए भुनाया, उसी को आधार बनाकर आनंद पटवर्धन ने 'राम के नाम' फिल्म बनायी, जो उस पूरे हिंसक घटनाक्रम को बयान करती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे विश्व हिन्दू परिषद जैसी संस्थाओं ने बाबरी मस्जिद को गिराने का अभियान चलाया और कैसे भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने के खोखले सपने ने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया।
आनंद पटवर्धन ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, 'यूट्यूब 'राम के नाम' को बैन कर हिंदुत्व के गुंडों की चाहत को पूरा कर रहा है, जो सभी धर्मनिरपेक्ष सामग्री को सोशल मीडिया से हटा देना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने मेरी फिल्म 'राम के नाम' पर "आयु प्रतिबंध" लगाया है। जबकि इस फिल्म को सीबीएफसी से 'यू' प्रमाणपत्र हासिल है। गौरतलब है कि 'राम के नाम' को एक राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल हो चुका है और उच्च न्यायालय द्वारा इसके टेलीकास्ट के आदेश दिए जाने के बाद दूरदर्शन पर प्राइम टाइम यानी रात 9 बजे को 1996 में इसका प्रसारण भी हो चुका है। सबसे बड़ी बात कि यह फिल्म 28 साल पुरानी है।
'राम के नाम' को बेस्ट इनवेस्टिगेटिव डॉक्यूमेंट्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। यह फिल्म अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर बनाने के विश्व हिंदू परिषद के एजेंडे की पड़ताल करती है, जिसे उग्र हिंदुत्ववादी अपने आदर्श राम का जन्मस्थान घोषित करते हैं। यह डॉक्टयूमेंट्री उन कारणों की भी पड़ताल करती है, जिसके कारण 6 दिसंबर को हिंदू अतिवादियों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहा दी, इस दौरान हुई हिंसा में लगभग 2,000 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।
अब जबकि चुनाव नजदीक हैं, राम के नाम पर फिर से भाजपा एक बार अपनी राजनीति भुनाने को आतुर हैं, वैसे में 'राम के नाम' जैसी फिल्म जब भाजपा हिंदुवादी अवसरवादियों की असलियत दिखा देती है तो यू ट्यूब द्वारा 18 साल से कम के युवाओं के लिए इसे बैन कर दिया, बल्कि यह सर्वविदित है कि जब भी किसी तरह के धार्मिक दंगे होते हैं उसमें शामिल होने वाली भीड़ का अधिकांश युवाओं का होता है। जब भाजपा के अंदरखाने की राजनीति को युवा समझ ही नहीं पाएंगे तो एक बार फिर वो मंदिर के नाम पर आंदोलित हो कुछ भी करने से गुरेज नहीं करेंगे।
अपनी फेसबुक पोस्ट में पटवर्धन ने अपने फॉलोवर्स और साथियों से अपील की है कि यूट्यूब की इस तानाशाही के खिलाफ गूगल को विरोध पत्र लिखें। बकौल पटवर्धन 2011 में भी उनकी डॉक्यूमेंट्री 'जय भीम कॉमरेड' को भी इसी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था। 'जय भीम कॉमरेड' फिल्म में पटबर्धन ने 1997 में मुंबई के रमाबाई नगर में हुई हत्याओं की पड़ताल करते हुए वहां के दलितों का जीवन सामने रख दिया था। गौरतलब है कि तब बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति तोड़ने के बाद हुई हिंसा में 10 दलित पुलिस गोलीबारी का शिकार हुए थे। फिल्म इनके कारणों और असलियत की पड़ताल करती है।