किसान आंदोलन के बाद अब होगा बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ एक व्यापक युवा-आंदोलन
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एक तरफ़ जहाँ रोज़गार के लिए युवा सड़क पर हैं, वहीं 24 लाख से ज़्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं और सरकार इनको भरने की बजाए पदों को ख़त्म कर रही है...
जनज्वार। युवा-हल्लाबोल आंदोलन ने 27 जनवरी को दिल्ली में एक ऐतिहासिक "यूथ समिट" बुलाई है, जिसमें बेरोज़गारी के मुद्दे पर संघर्ष कर रहे देश के कोने कोने से युवा नेताओं और प्रतिनिधियों का जमावड़ा लगेगा। 27 जनवरी को देशभर से आए युवा नेताओं के अलावा सभी चयन आयोग और भर्ती बोर्डों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ रहे समूह भी एकजुट होंगे। राजधानी दिल्ली में होने जा रहे इस "यूथ समिट" के माध्यम से नौकरियों में अवसरों की लगातार हो रही कमी और नियुक्तियों में भ्रष्टाचार पर सरकारों की पोल खोल के अलावा रोज़गार के मुद्दे पर सरकार को जवाबदेह बनाया जाएगा।
मंगलवार 8 जनवरी को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में देशभर के पचास युवा समूहों ने एकजुट होकर (https://yuvahallabol.in/constituent-groups) युवा-हल्लाबोल के माध्यम से "जॉब चाहिए, जुमला नहीं!" का नारा देकर आंदोलन के आगे की रूपरेखा, योजना और मांगपत्र मीडिया के समक्ष रखा।
युवाओं ने अपनी मांगों को लेकर चेंज डॉट ऑर्ग पर एक ऑनलाईन पेटिशन (https://yuvahallabol.in/petition/) चलाया है, जिसमें युवा-हल्लाबोल के मांगों की पूरी सूची है। उम्मीद की जा रही है कि इस पेटिशन को सोशल मीडिया पर देशभर के बेरोज़गार युवाओं का भरपूर समर्थन मिलेगा।
इसी मौके पर युवा-हल्लाबोल का वेबसाईट www.yuvahallabol.in लॉन्च करते हुए अनुपम ने जानकारी दी कि आने वाले समय में यह वेबसाईट बेरोज़गारी के सवाल पर देशभर में चल रहे संघर्षों की सूचना और जानकारी का सबसे विश्वसनीय स्रोत ही नहीं, बल्कि बेरोज़गार युवाओं के इस मुहिम से जुड़कर योगदान देने का महत्वपूर्ण माध्यम भी बनेगा।
लगातार हो रहे प्रश्नपत्रों के लीक पर चिंता जताते हुए युवा-हल्लाबोल ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि पेपर लीक की ख़बरें अब इतनी आम हो गयी हैं कि मुख्यधारा की मीडिया और देशवासियों का इसपर ध्यान जाना भी बंद हो गया है। पेपर लीक की घटनाओं में आई बेतहाशा वृद्धि से युवाओं का चयन प्रणाली पर से भरोसा उठता जा रहा है। एक सूची जाती करते हुए युवा हल्लाबोल ने बताया कि वर्ष 2018 में ही कम से कम 24 परीक्षाओं के पर्चे लीक हो गए। (The Dark Regime of Paper Leaks)
बेरोज़गारी पर लगातार काम कर रहे युवा शक्ति संगठन के गौरव ने कहा कि सालाना एक करोड़ नौकरी देने का वादा करने वाली मोदी सरकार रोज़गार के पैमाने पर पूर्णतः विफ़ल रही है। पहले की सरकारों की विफलता के कारण ही 2014 में देश के युवाओं ने इस सरकार का साथ दिया था जिससे ये सत्ता में आए, लेकिन अपने वादे पूरे करना तो आज देश में नौकरियों में कमी आ रही है और भ्रष्टाचार धांधली की खबरों में वृद्धि आ गयी है। अभी हाल में आये सीएमआईई की रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 में ही 1.1 करोड़ नौकरियां कम हो गयी हैं। इसलिए आज ज़रूरी है कि सरकार रोज़गार गारंटी कानून बनाये ताकि हर शिक्षित युवा को देश के विकास में भागीदारी देने का अवसर मिले।
यूथ फॉर स्वराज के संयोजक मनीष कुमार ने कहा कि युवा-हल्लाबोल आंदोलन का जन्म मार्च 2018 में हुए देशव्यापी एसएससी प्रदर्शनों के दौरान हुआ, जिसके बाद लगभग सभी भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ियां पर हमने जमकर सड़क से लेकर अदालत तक सनघर्ष किया। पिछले दस महीनों में युवा-हल्लाबोल सरकारी नौकरियों में कमी और धांधली के ख़िलाफ़ एक बुलंद और असरदार आवाज़ बन गयी है। अब तो देशभर के पचास से ज़्यादा संगठन और युवा समूह भी बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ जंग को पूरी ऊर्जा से लड़ने के लिए एकजुट हो गए हैं (https://yuvahallabol.in/constituent-groups)
पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र में बेरोज़गार युवाओं के हक़ की लड़ाई लड़ रहे स्वराज्य सेना के अध्यक्ष योगेश जाधव ने कहा कि एक तरफ़ जहाँ रोज़गार के लिए युवा सड़क पर हैं, वहीं 24 लाख से ज़्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं और सरकार इनको भरने की बजाए पदों को ख़त्म कर रही है। आज यूपीएससी से लेकर प्रदेश के चयन आयोगों तक हर जगह वेकेंसी में कमी की जा रही है। जहाँ वर्ष 2014 में यूपीएससी की सिविल सेवा में 1364 पदों के लिए परीक्षा हुई वहीं 2018 आते आते इसे घटाकर 782 कर दिया गया है। युवा-हल्लाबोल की स्पष्ट मांग है कि इन रिक्त पड़े 24 लाख पदों को तुरन्त भरा जाए।
यूनाईटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े नदीम खान ने देश में व्याप्त बेरोज़गारी पर चिंता जताते हुए कहा कि यह सरकार मुद्दे पर काम करने की बजाए उन आंकड़ों को ही छिपाने कि कोशिश में लगी है। सरकार ने लेबर ब्यूरो के उस सर्वे को ही रुकवा दिया है जिससे देश में बेरोज़गारी डर के तिमाही आंकड़े आते थे। ऊपर से ईपीएफओ के आधार पर देश को गुमराह करने की कोशिश हो रही है। इस सरकार की पहचान बन गयी है कि किसी समस्या के समाधान की बजाए मीडिया मैनेजमेंट और आंकड़ों से खिलवाड़ करने कगे जाती है चाहे वो किसान ख़ुदकुशी के आंकड़ें हो या युवा बेरोज़गारी के।
युवा-हल्लाबोल के गोविंद मिश्रा कहते हैं, एक तरफ तो नौकरियां दी नहीं जा रहीं और ऊपर से जो थोड़े बहुत अवसर हैं भी उनकी चयन प्रणाली अत्यंत धीमी है। कहने को तो केंद्र सरकार की डीओपीटी मंत्रालय ने जनवरी 2016 में अधिसूचना जारी करके निर्देश दिया था कि कोई भी डायरेक्ट रिक्रूटमेंट 6 महीने में पूरी होनी चाहिए। लेकिन सरकार अपनी ही घोषणा को लागू करना तो दूर प्रक्रिया पूरी होते होते सालों बीत जाते हैं। पिछले साल सुमित नाम के छात्र ने एसएससी उत्तीर्ण कर लेने के बावजूद जब नियुक्ति के लंबे इंतज़ार में आत्महत्या कर ली तो यही कारण था।
इसी के समाधान के लिए युवा-हल्लाबोल ने एक 'मॉडल एग्ज़ाम कोड' का प्रस्ताव दिया है जिसके तहत विज्ञापन जारी होने से लेकर नियुक्ति तक की प्रक्रिया अधिकतम 9 महीने में पूरी होगी। गोविंद ने कहा कि जब चुनावों में मॉडल कोड लागू हो सकता है तो युवाओं के भविष्य से संबंधित परीक्षाओं के लिए क्यूँ नहीं? 'मॉडल एग्ज़ाम कोड' को भी अपनी मांगों का हिस्सा बताते हुए युवा-हल्लाबोल ने नारा दिया - "मॉडल कोड लागू करो, 9 महीने में नौकरी दो"
बिहार में छात्रों युवाओं के बीच शिक्षा रोज़गार जैसे मुद्दों पर काम कर रहे मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रौशन मैथिल ने कहा कि ये समझ से परे है कि सरकार बेरोज़गार युवाओं से आवेदन भरवाने के नाम पर करोड़ों करोड़ क्यूँ इक्कट्ठा करती है। युवा-हल्लाबोल की मांग है कि आवेदन के नाम पर लिए जा रहे शुल्क को बंद किया जाए ताकि हर तबके के छात्रों को बराबर अवसर मिले।
मध्यप्रदेश में युवाओं के बीच संघर्ष कर रहे बेरोज़गार सेना के सत्य प्रकाश त्रिपाठी ने युवाओं के एकजुट होने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि आज देशभर में कई युवा संघर्ष चल रहे हैं लेकिन हर संघर्ष अंजाम तक नहीं पहुँच पा रहा। सरकार ने युवाओं को बांट रखा है और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ लड़ाई सबके एकजुट होकर आंदोलन करने से आएगी। इसलिए युवा-हल्लाबोल आंदोलन आज देश की बड़ी ज़रूरत है।
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए अनुपम ने कहा कि युवाओं में आज अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और असुरक्षा का भाव है। रोज़गार के अवसरों में लगातार कमी की जा रही है। युवा सड़क पर हैं एयर 24 लाख पद खाली पड़े हैं। नौकरियां निकलती भी हैं तो परीक्षा नहीं होती। परीक्षा हो भी जाएं तो पेपर लीक हो जा रहा। छात्रों की शिकायत है कि मेरिट या मेहनत से नहीं बल्कि पैसे या पैरवी से ज़्यादातर नौकरियां मिल रही हैं। और अगर परीक्षा पूरी हो भी जाये तो नियुक्ति देने में भी सालों साल लगा दिया जाता है। इसी अवसाद में झारखंड के सुमित जैसे युवा चयनित होने के बाद भी आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसे में युवा-हल्लाबोल अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए देश के युवाओं की बुलंद आवाज़ बनकर बेरोज़गारी के हर आयाम को जनता के बीच ले जाएगा।
आगामी 27 जनवरी को दिल्ली में होने जा रहे "यूथ समिट" की जानकारी देते हुए अनुपम ने कहा कि 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस पर देशभर के दो दर्ज़न से ज़्यादा शहरों में युवा-पंचायत का आयोजन होगा जिसमें युवा-हल्लाबोल के मांगपत्र पर चर्चा और 27 जनवरी के लिए तैयारी की जाएगी।