Arvind Kejriwal ने Yogi Adityanath को बताया झूठी वाहवाही करने वाला निर्दयी और क्रूर शासक
(योगी आदित्यनाथ और केजरीवाल में वाया ट्वीटर जुबानी जंग)
Kejriwal V/S Yogi: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जोर आजमाइश जारी है। इधर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने ट्वीट कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर निशाना साधा। तो दूसरी तरफ केजरीवाल ने योगी के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए उन्हें झूठी वाहवाही करने वाला क्रूर व निर्दयी शासक बताया है।
इस बीच लोग कमेंट कर रहे कि, दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों की भाषा है। एक दुसरे के लिए। इनसे आप उम्मीद कर सकते हैं कि प्रदूषण, कोरोना और लॉकडाउन से निपटने के लिए ये कभी साथ आ सकते हैं। एक महंत और एक आईआईटी करे शख़्स को अपनी बात रखने के लिए ऐसे शब्दों का चुनाव करना पड़ रहा है।
योगी आदित्यनाथ का ट्वीट
सुनो केजरीवाल, जब पूरी मानवता कोरोना की पीड़ा से कराह रही थी, उस समय आपने यूपी के कामगारों को दिल्ली छोड़ने पर विवश किया। छोटे बच्चों व महिलाओं तक को आधी रात में यूपी की सीमा पर असहाय छोड़ने जैसा अलोकतांत्रिक व अमानवीय कार्य आपकी सरकार ने किया। आपको मानवताद्रोही कहें या...
सुनो केजरीवाल,
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) February 7, 2022
जब पूरी मानवता कोरोना की पीड़ा से कराह रही थी, उस समय आपने यूपी के कामगारों को दिल्ली छोड़ने पर विवश किया।
छोटे बच्चों व महिलाओं तक को आधी रात में यूपी की सीमा पर असहाय छोड़ने जैसा अलोकतांत्रिक व अमानवीय कार्य आपकी सरकार ने किया।
आपको मानवताद्रोही कहें या...
योगी के इस ट्वीट को केजरीवाल ने रिट्वीट कर उत्तर दिया कि, सुनो योगी, आप तो रहने ही दो। जिस तरह UP के लोगों की लाशें नदी में बह रहीं थीं और आप करोड़ों रुपए खर्च करके Times मैगज़ीन में अपनी झूठी वाह वाही के विज्ञापन दे रहे थे। आप जैसा निर्दयी और क्रूर शासक मैंने नहीं देखा।
सुनो योगी,
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 7, 2022
आप तो रहने ही दो। जिस तरह UP के लोगों की लाशें नदी में बह रहीं थीं और आप करोड़ों रुपए खर्च करके Times मैगज़ीन में अपनी झूठी वाह वाही के विज्ञापन दे रहे थे। आप जैसा निर्दयी और क्रूर शासक मैंने नहीं देखा। https://t.co/qxcs2w60lG
बता दें कि यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दल एक दूसरे को नीचा दिखाने और खुद को जनता का सबसे बड़ा हितैषी बताने कि कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस दौरान जो भाषा की मर्यादा होनी चाहिए वह लगातार गिरती हुई देखने को मिल रही है। कोई संत है तो कोई पढ़ा लिखा अफसर, तब हालत यह है।