अतीक अहमद का वकील पहले ही कह चुका था अतीक का गुजरात से यूपी ट्रांसफर करना दरअसल मौत का वारंट
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Atique Ahmed Custodial murder : भाकपा (माले) ने कहा है कि प्रयागराज में पुलिस हिरासत में 15 अप्रैल की रात उत्तर प्रदेश के सजायाफ्ता नेता अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की टीवी कैमरों के सामने हुई हत्यायें खुल कर कह रही हैं कि भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में कानून के राज का कोई स्थान नहीं है।
राज्य सचिव सुधाकर यादव ने रविवार 16 अप्रैल को जारी बयान में कहा कि मुख्यमंत्री योगी लगातार अपनी सरकार के निर्देशों पर एनकाउन्टर के नाम में की जा रही गैरन्यायिक हत्याओं को शेखी के साथ अपराध के खिलाफ प्रभावी कदम कहते रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि अतीक और अशरफ को इतने करीब जाकर गोली मारी गई तो पुलिस चुपचाप देखती रही और हत्यारों को उनका काम खत्म करके आत्मसमर्पण करने का इंतजार करती रही।
कामरेड सुधाकर ने कहा कि मुख्यमंत्री ने माफियाओं को मिट्टी में मिला देने की धमकी दी थी जिसके बाद अतीक अहमद ने सर्वोच्च न्यायालय में सुरक्षा देने की अपील की थी। अतीक के वकील ने अदालत से कहा था कि उनके मुवक्किल का गुजरात से उप्र स्थानान्तरण दरअसल मौत का वारंट है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुरक्षा की उस अपील को खारिज करते हुए उम्मीद जताई थी कि चूंकि वह पहले से ही पुलिस हिरासत में है इसलिये राज्य सरकार सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी करेगी। आज हम सब देख रहे हैं कि राज्य सरकार ने किस प्रकार अपनी जिम्मेदारी पूरी की। झांसी में अतीक के बेटे की गैरन्यायिक हत्या के तुरंत बाद अतीक और अशरफ की हत्यायें चौंकाने वाली हैं।
माले नेता ने कहा कि 2006 में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद थे, तब संसद में उन्होंने स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के सामने रोते हुये उत्तर प्रदेश में उनके साथ हो रहे तथाकथित उत्पीड़न की शिकायत की थी। आज वे सत्ता में हैं, उनकी सरकार ने विरोधियों के खिलाफ खुलेआम आतंक, बदले की कार्यवाही और उत्पीड़न-दमन का राज कायम कर दिया है। अतीक अहमद, जो खुद भी आदित्यनाथ की तरह साल 2004 से 2009 तक फूलपुर से संसद के सदस्य थे, की हत्या से स्पष्ट है कि प्रदेश में कानून के राज की कोई जगह नहीं बची है और आतंकी बुल्डोजरों तथा गैरन्यायिक ‘एनकाउन्टरों’ के सहारे शासन के नाम पर अराजकता को संस्थाबद्ध कर दिया गया है।
राज्य सचिव ने कहा कि कानून के राज के खात्मे के कारण सभी धर्मों और जातियों के नागरिक प्रदेश में दिनोंदिन और ज्यादा असुरक्षित जीवन जीने को अभिशप्त हो गये हैं। 29 सितम्बर 2018 को लखनऊ में पुलिस द्वारा ऐप्पल के मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव विवेक तिवारी की हत्या, 20 जुलाई 2020 को गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या और 12 अप्रैल 2023 को सहारनपुर में ट्रांसपोर्ट मैनेजर शिवम जौहरी की लिंचिंग तीन ऐसी ही गंभीर घटनायें थीं, जिन्होंने पहले भी स्पष्ट कर दिया था कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का शासन वस्तुतः आतंक का शासन बन चुका है।