सिर्फ ट्वीटर-कम्प्यूटर से नहीं चलती कांग्रेस - गुलाम नबी आजाद को दिग्विजय सिंह ने दिया भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का न्यौता
‘सिर्फ ट्वीटर-कम्प्यूटर से नहीं चलती कांग्रेस’ -पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद को दिग्विजय सिंह ने ललकारते हुए दिया भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का न्यौता
शुभम शर्मा की रिपोर्ट
Congress Bharat Jodo Yatra : कांग्रेस पार्टी आजादी के 75वें वर्ष में पहली बार सड़कों पर है। भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से कांग्रेस ने अपने अस्तित्व की लड़ाई (कन्याकुमारी) तमिलनाडु से शुरू कर दी है। इस यात्रा के प्रभारी और रणनीतिकार माने जाने वाले दिग्विजय सिंह ने एक बयान देकर भूतपूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को इस यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि आजाद साहब कहते थे कि यह पार्टी सिर्फ ट्विटर और कंप्यूटर से चलती है, देखिए अब हम सड़कों पर है।
उनकी यह टिप्पणी कांग्रेस की उस छवि को सुधारने की कवायद दिखती है, जहाँ कांग्रेस जमीन और जनता की पहुंच से दूर की पार्टी दिखती है। क्या वास्तव में भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए इमेज बदलने वाली यात्रा साबित होगी? इस सवाल का जवाब दक्षिण भारत से उत्तर भारत की तरफ यात्रा के आने पर साफ होगा।
समय की आवश्यकता है सामूहिकता
कांग्रेस में इस समय सामूहिकता समय की आवश्यकता है, पार्टी में एक परिवार और उसके चंद सिपहसलार सारे राज्यों में तैनात दिखते हैं। पिछले 8 सालों में कांग्रेस अपने गढ़ों और नेताओं में सामूहिकता की ताकत को खोती नजर आई। पार्टी में सभी को अपने.अपने अस्तित्व का खतरा नजर आता है इसलिए पार्टी को भारत जोड़ो यात्रा और उसके सामूहिकता सहित अन्य उद्देश्यों का समर्थन करने वाले व्यापक दर्शन पर चिंतन करने की और भी अधिक आवश्यकता है। उद्देश्य लोगों को सोचने और प्रतिबिंबित करने के लिए होना चाहिए।
कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी पार्टी है। 1885 से आज तक इस पार्टी में देश के सबसे लोकप्रिय और जनता का नेतृत्व करने वाले लोग शामिल रहे हैं। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी से लेकर पीवी नरसिम्हा राव तक इस पार्टी में नेतृत्व का संकट कभी नहीं रहा है। 2014 तक देश की सत्ताधारी पार्टी अब खुद के दम पर सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सत्ता में है, कांग्रेस के पास अभी मुख्य विपक्षी दल की सर्वसम्मति का भी अभाव है। ऐसे में यह यात्रा अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए कांग्रेस का एक अंतिम प्रहार कहा जा सकता है।
समरसता फैलाना बताया गया है उद्देश्य
कांग्रेस पार्टी ने इस यात्रा के माध्यम से सामाजिक समरसता का प्रचार.प्रसार उद्देश्य बताया है। पार्टी के अनुसार इसका औचित्य नफरत और भय की राजनीति से विभाजित लोगों को एक साथ लाना है। फिर भी यह वास्तव में कैसे पूरा होने जा रहा है? यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि यात्रा शुरू करने वाली पार्टी का दर्शन क्या है। यदि कांग्रेस का नेतृत्व यह मानता है कि यात्रा के दौरान पूरे भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के साथ औपचारिक और अनौपचारिक आदान.प्रदान से दिल बदल जाएगा तो यह निराशा का कारण हो सकता है, क्योंकि बदले में लोग पूछे कि आप हमें क्या दे सकते हैं? तो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के फेर में उलझी पार्टी का उत्तर अस्पष्ट ही होगा।
जमीन तलाशने की कवायद
यह यात्रा कांग्रेस के लिए लाभकारी भी हो सकती है, जैसे पार्टी की मंशा और जनता की सोच जानने का यह एक अच्छा अवसर है। आगामी चुनाव के लिए पार्टी का घोषणापत्र अच्छी तरह से आकार ले सकता है। यह वातानुकूलित सम्मेलन कक्षों में नहीं, बल्कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों में, बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में, शहरों में जहां छोटे बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है, निराशाजनक झोपड़ी वाले शहर में जहां लोग लक्ज़री अपार्टमेंट के साथ गाल-दर-जोल रहते हैं, ऐसा कर सकते हैं।
भारत जोड़ो नहीं कांग्रेस जोड़ो
अभी कांग्रेस के एक भूतपूर्व नेता ने इस यात्रा पर निशाना साधते हुए कहा था कि दल को 'भारत जोड़ों की नहीं कांग्रेस जोड़ो' की जरूरत है। अगर इस यात्रा से राहुल गांधी देशभर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह संचारित करने में सफल होते हैं, तो आगामी विधानसभा चुनावों में उसका इसर दिख सकता है, लेकिन यह सोचना कि इससे जनता एकदम से कांग्रेसी दुपट्टा पहन कर प्रधानमंत्री मोदी के सामने राहुल को विकल्प मानेगी तो यह अभी दूर की कौड़ी है।