कुंडा अनोखी सीट, जहां एक हत्या के 2 आरोपी हैं सियासी मैदान में, जानिए क्या है DSP मर्डर केस और बाहुबलियों का इतिहास?
इस बार कुंडा विधानसभा सीट पर एक ही हत्या के 2 आरोपी सियासी मैदान में।
प्रतापगढ़। इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ( UP Election 2022 ) कई मायनों में अहम है। जहां सपा और रालोद गठबंधन ने कड़ी टक्कर देकर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है, वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) ने कुंडा सीट से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ( Raghuraj Pratap Singh alias Raja Bhaiya ) के खिलाफ गुलशन यादव को पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर सियासी माहौल को गरम कर दिया है। खास बात यह है कि 20 साल बाद समाजवादी पार्टी ने राजा भैया के सामने अपना प्रत्याशी उतारा है, जिससे दोनों के बीच तनातनी बढ़ गई है।कुंडा सीट पर चौंकाने वाली बात यह भी है कि दोनों प्रत्याशी यानि राजा भैया और गुलशन यादव ( Gulshan Yadav ) वहां के सीओ रहे जिया उल हक की हत्या के मामले में आरोपी हैं। सीओ जियाउल हक की हत्या 2 मार्च 2013 में हुई थी।
2002 में सपा ने आखिरी बार कुंडा सीट पर उतारा था प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी ने इससे पहले साल 2002 के विधानसभा चुनाव में कुंडा ( Kunda ) विधानसभा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारा था। मोहम्मद शमी को सपा का तब उम्मीदवार बनाया गया था। 2007 से 2017 तक तीन विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राजा भैया को कुंडा विधानसभा सीट पर समर्थन दिया, लेकिन पिछले दिनों अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच तनातनी बढ़ गई है। तनातनी और मतभेदे का ही नतीजा है कि सपा ने गुलशन यादव को चुनावी मैदान में उतार कर राजा भैया के सामने चुनौती पेश कर दी है।
सीओ हत्याकांड के आरोपी हैं दोनों प्रत्याशी
कुंडा के सीओ रहे जिया उल हक की हत्या ( Zia ul Haq murder case ) के मामले में गुलशन यादव ( Gulshan Yadav ) और राजा भैया ( Raja Bhaiya ) का नाम सामने आया था। यह घटना 2 मार्च 2013 की है। उस समय बलीपुर गांव के प्रधान नन्हे यादव की सरेशाम गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटना से आक्रोशित नन्हे यादव के परिजन और उनके समर्थक विरोधी गुट के संजय सिंह उर्फ गुड्डू के घर की तरफ बढ़ रहे थे। मामले की जानकारी मिलने पर पहुंचे तत्कालीन सीओ जिया उल हक ने उन्हें रोकने की कोशिश की। नाराज सुरेश यादव ने सीओ जिया उल हक पर बंदूक की बट से हमला कर दिया। इस दौरान बंदूक से गोली चली और सुरेश यादव को लगी और प्रधान नन्हे यादव का भाई की मौत हो गई। इससे नाराज भीड़ ने जिया उल हक पर हमला कर दिया। आक्रोशित भीड़ ने पीट-पीटकर उन्हें पहले बेदम किया। इसके बाद सीओ की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या के बाद उनकी पत्नी परवीन आजाद ने राजा भैया और गुलशन यादव समेत अन्य पर मामला दर्ज कराया। देश भर में चर्चित इस मामले की सीबीआई जांच हुई, जिसमें आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई। लेकिन सीओ जिला उल हक की पत्नी परवीन ने सीबीआई की रिपोर्ट के खिलाफ कोर्ट में अर्जी डाल दी। अर्जी के आधार पर कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट खारिज कर दी। उसके बाद से इस मामले की जांच नए सिरे से जारी है।
राजा भैया के करीबियों में से एक हैं गुलशन यादव
दरअसल, कुंडा का नाम आते ही सभी के दिमाग में बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ( Raghuraj Pratap Singh alias Raja Bhaiya ) का नाम आ जाता है। वह 1993 से लगातार कुंडा ( Kunda ) सीट से निर्दलीय विधायक चुने जाते रहे हैं। वहीं गुलशन यादव ( Gulshan Yadav ) एक दौर में राजा भैया के बेहद करीबियों में गिने जाते थे। माना तो यह भी जाता है कि राजा भैया की वजह से ही गुलशन यादव को राजनीति में नाम और पहचान मिली। गुलशन यादव पर 2013 में कुंडा के डीएसपी जिया उल हक की हत्या का आरोप लगा था। इसके अलावा, कई संगीन आपराधिक मामले उनके खिलाफ दर्ज हैं।
बसपा के साथ गठबंधन के बाद से बढ़ी थी तकरार
कुंडा के राजा यानि रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और अखिलेश यादव के बीच तकरार सपा और बसपा के बीच लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के बाद से बढ़ी थी। बसपा के साथ महागठबंधन से राजा भैया नाराज हो गए थे। अखिलेश यादव के साथ भी उसी समय से राजा भैया के रिश्ते खराब होने शुरू हुए। गठबंधन के बाद राज्यसभा चुनाव 2019 के दौरान दोनों नेताओं के रिश्तों में कड़वाहट घुल गई। अखिलेश यादव चाहते थे कि राजा भैया गठबंधन के तहत राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को वोट दें। इसके उलट उन्होंने मायावती के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी को वोट दे दिया। इसके बाद से अखिलेश यादव नाराज चल रहे हैं। अब उन्होंने कुंडा से उम्मीदवार कर साफ कर दिया है कि राजा भैया के प्रति उनकी नाराजगी कम नहीं हुई है।
कौन थे सीओ जिला उल हक?
सीओ जिला उल हक उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के गांव नूनखार टोला जुआफर के रहने वाले बेहद मिलनसार पुलिस अधिकारियों में से एक थे। जिला उल हक की 2012 में बतौर सीओ कुंडा तैनाती हुई थी। कुंडा तैनाती के बाद से ही जिला उल हक पर कई तरह के दबाव आने लगे थे।