मंदिर शिलान्यास की फाइनल लिस्ट तैयार - आडवाणी, जोशी और कल्याण सिंह नहीं होंगे शामिल
अयोध्या। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए बुधवार को 'भूमि पूजन' समारोह में आमंत्रित हर अतिथि को प्रसाद के रूप में चांदी का एक सिक्का भेंट किया जाएगा।
चांदी के सिक्के के एक तरफ राम दरबार की छवि है, जिसमें भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान हैं और दूसरी तरफ ट्रस्ट का प्रतीक चिन्ह है।
अतिथियों को 'लड्डू' का डिब्बा और राम दरबार की तस्वीर भी दी जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक, 5 अगस्त को अयोध्या के निवासियों और अन्य लोगों को 'रघुपति लड्डू' कहे जाने वाले 1.25 लाख से अधिक लड्डू बांटे जाएंगे।
सभी अतिथि जो अन्य जिलों या राज्य से आ रहे हैं, उन्हें मंगलवार 4 अगस्त की शाम तक अयोध्या पहुंचने के लिए कहा गया है, क्योंकि शाम को जिले की सीमाओं को सील कर दिया जाएगा।
भूमिपूजन के लिए कुल 175 लोगों को श्री राम मंदिर ट्रस्ट से आमंत्रित किया गया है, जिसमें लगभग 135 संत शामिल हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों से आएंगे। हर निमंत्रण कार्ड पर एक कोड है, जिसे सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
पूर्व उप प्रधानमंत्री एल.के. आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समारोह में शामिल नहीं होंगे।
बाबरी मस्जिद ध्वस्तीकरण और राममंदिरआंदोलन की नींव बीजेपी के जिन नेताओं ने रखी, उनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहरजोशी, उमा भारती, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह प्रमुख नाम रहे हैं। रथयात्रा हो या हिंदू भावनाओं को भुनाने का काम, वो भी इन नेताओं ने बखूबी किया था, मगर यही लोग इसके सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम शिलान्यास का हिस्सा नहीं रहेंगे।
मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी को शिलान्यास समारोह में आमंत्रित न करने का कारण उनकी बढ़ती उम्र बतायी जा रही है। मगर असल कारणों पर विश्लेषक बात करने लगे हैं। ये वही लोग हैं जो बाबरी विध्वंस के बाद अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए प्रमाण जुटा रहे हैं।
गौरतलब है कि राममंदिर मंदिर निर्माण आंदोलन के लिए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष आडवाणी ने 1990 में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथयात्रा शुरू की थी। हालांकि एलके आडवाणी को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर जिले में गिरफ्तार करवा लिया था। जब पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया था, तब आडवाणी ने इस बात पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह बड़ी बात है कि ईश्वर ने उन्हें इस आंदोलन से जुड़ने का मौका दिया। आडवाणी ही वे इंसान थे जिनकी अगुवाई में बीजेपी ने 1992 के बाद से लगातार बढ़त बनाई। भाजपा ने केंद्र में दिवंगत पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई और आडवाणी उप प्रधानमंत्री बने। बाद में मोदीयुग आने के बाद आडवाणी धीरे-धीरे नेपथ्य में चले गए और फिलहाल नाममात्र के लिए पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं।
दूसरी तरफ ऐसा ही कुछ हाल कभी भाजपा के कद्दावर नेता रहे मुरली मनोहर जोशी का भी है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुरली मनोहर जोशी ने मंदिर आंदोलन के लिए योजनाएं बनाईं और उसे पूरी ताकत के साथ भाजपा के लिए जमीन पर उतारा भी। मंदिर आंदोलन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जोशी की जुगलबंदी की तस्वीरें आज भी गाहे—बगाहे मीडिया दिखाता रहता है, लेकिन जोशी भी मंदिर के भूमि पूजन में सशरीर उपस्थित नहीं रहेंगे, क्योंकि उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया गया है। 2014 में मोदीयुग का आरंभ होने के बाद से जोशी भी धीरे-धीरे पार्टी में पर्दे के पीछे चले गए हैं। अभी जोशी भी मात्र पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं।
राममंदिर से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का भी गहरा नाता रहा है। छह दिसंबर 1992 को यानी जिस दिन बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था, तब यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ही थे। कल्याण सिंह पर आरोप लगे कि उनकी पुलिस और प्रशासन ने जान-बूझकर कारसेवकों को नहीं रोका। बाद में कल्याण सिंह ने भाजपा से अलग होकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई, लेकिन वो फिर भाजपा में लौट आए। कल्याण सिंह का नाम उन 13 लोगों में शामिल था, जिन पर मस्जिद गिराने क साजिश का आरोप लगा था। यानी यह भी मंदिर निर्माण की नीव रखने वालों में प्रमुख हैं, मगर यह भी शिलान्यास कार्यक्रम का हिस्सा नहीं होंगे।