विस्तार के साथ ही मोदी Govt ने बनाया नया मंत्रालय 'मिनिस्ट्री ऑफ कोऑपरेशन': जनता की आंखों में धूल झोंकने की एक और कोशिश

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार डेस्क। जिस समय देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा देने और भारत को सीरिया, इराक, सूडान आदि पिछड़े देशों की कतार में शामिल कर देने का गुनाह कबूल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस्तीफा दे देना चाहिए, उस समय वे ताश के पत्तों की तरह अपने कैबिनेट के प्यादों को फेंटते हुए जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कैबिनेट विस्तार के साथ ही एक नए मंत्रालय का गठन किया है। सरकार ने 'सहकार से समृद्धि' के नजरिए के साथ अलग से सहकारिता मंत्रालय का गठन किया है।
पीएम मोदी मंत्रालय चाहे जीतने बना लें यह हकीकत पूरी दुनिया जानती है कि किसी भी मंत्रालय को कोई आजादी नहीं मिली हुई है और मंत्रियों को केवल जी हुज़ूरी करते हुए अपने कार्यकाल को पूरा करना है या अपने आका के समर्थन में और राहुल गांधी के विरोध में दिन-रात ट्वीट करते रहना है। चूंकि लोकतंत्र का आवरण ही बचा रह गया है और सत्ता की सारी ताकत केवल दो व्यक्तियों के नियंत्रण में रह गई है, इसीलिए मोदी के ऐसे करतबों से कोई फर्क पड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
सहकारी मंत्रालय के बारे में दावा किया गया है कि यह सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए अलग प्रशासनिक, कानूनी, नीतिगत ढांचा उपलब्ध कराएगा। सहकारी मंत्रालय सहकारिता के लिए कारोबार को आसान बनाने की प्रक्रिया को कारगर करने का काम करेगा।
मोदी सरकार का तर्क है-नए मंत्रालय के माध्यम से सहकारी समितियों का जमीनी स्तर तक विस्तार हो सकेगा। एक सच्चे जन आधारित आंदोलन को विस्तार देने में भी मदद मिलेगी। देश में सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है जहां प्रत्येक सदस्य जिम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है। मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए कारोबार में सुगमता के लिए प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्यीय सहकारी समितियों (एमएससीएस) के विकास लिए काम करेगा।
पृथक मंत्रालय के गठन से बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की गई एक और घोषणा भी पूरी हो सकेगी। इस कदम को किसानों को सशक्त करने के एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है। मोदी सरकार ने इससे पूर्व जल शक्ति मंत्रालय के रूप में एक नए व पृथक मंत्रालय का गठन किया था। जो भी दावे किए जा रहे हैं वे खोखले ही साबित होने वाले हैं। अतीत के अनुभवों से इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है। जब भी मोदी सरकार किसान या आम लोगों की भलाई की कोई बात करती है तो हकीकत में वह केवल कारपोरेट की भलाई कर रही होती है।
आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मंत्रालय जमीनी स्तर तक पहुंचने वाले एक सच्चे जन-आधारित आंदोलन के रूप में सहकारी समितियों को गहरा करने में मदद करेगा। सरकार ने कहा है, "हमारे देश में, सहकारी आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है जहां प्रत्येक सदस्य जिम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है।"
मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए 'व्यापार करने में आसानी' के लिए प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (एमएससीएस) के विकास को सक्षम बनाने के लिए काम करेगा। जरूर इस घोषणा के पीछे पूंजीपतियों की झोली को आसानी से भरने का गुप्त लक्ष्य छिपा हुआ है। शब्दों की लफ्फाजी करने में माहिर मोदी सरकार की हर घोषणा सात सालों में छलावा ही साबित होती रही है।
बयान में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने समुदाय आधारित विकास साझेदारी के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता का संकेत दिया है। इसमें कहा गया है कि अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन वित्त मंत्री द्वारा की गई बजट घोषणा को भी पूरा करता है।
इतना तय है कि इस नए मंत्रालय का वजूद भी कागज पर ही सीमित रहने वाला है। निरंकुश शासन प्रणाली में विश्वास करने वाले मोदी अब तक तमाम मंत्रालयों को अप्रासंगिक बना चुके हैं। उनके कैबिनेट के मंत्री उनके लिए रबर स्टैम्प का काम करते हैं, चूंकि हर मामले के फैसले मोदी और शाह ही करते हैं।











