आन्ध्र प्रदेश के एक दलित ने राष्ट्रपति से लगाई गुहार: कुछ कीजिए वरना बन जाऊंगा नक्सली!
आंध्र प्रदेश से मनसा चेन्नप्राग्दा की रिपोर्ट
आंध्र प्रदेश में पश्चिम गोदावरी ज़िले के वेदुल्लापल्ली गाँव के 22 वर्षीय युवक वारा प्रसाद ने 10 अगस्त को भारत के राष्ट्रपति के नाम एक ख़त लिखा। ख़त में उसने राष्ट्रपति महोदय से गुज़ारिश की है वो उसे इन्साफ हासिल करने की ख़ातिर माओवादियों में शामिल होने की इजाज़त दें।
लिखा गया ख़त इस प्रकार है -
महामहिम,
श्रीमान राम नाथ कोविंद जी,
माननीय भारत के राष्ट्रपति
आदरणीय राष्ट्रपति जी,
मैं दलित समुदाय (मादिगा) का 22 वर्षीय युवक प्रसाद हूँ। आपका ध्यान इस ओऱ दिलाना चाहता हूँ कि मेरे साथ घटी एक घटना को लेकर मैं बहुत दुखी और व्यथित हूँ। यह मामला मानवाधिकार के उल्लंघन और उत्पीड़न का है।
महोदय मैं एक गरीब परिवार से हूँ और अपने इलाके के ऊंची जाति के खनन माफियाओं द्वारा बुरी तरह से प्रताड़ित किया जाता हूँ। उच्च सरकारी अधिकारियों के कहने पर एक ड्यूटी इन्स्पेक्टर ने मुझे गंजा कर दिया और पुलिस एवं स्थानीय माफिआ ने मुझे बुरी तरह पीटा। मेरा कसूर बस इतना सा था कि मैंने दोस्त के जन्मदिन पर गैर-कानूनी खनन पर सवाल खड़ा कर दिया था।
यह घटना 21 जुलाई 2020 को घटित हुयी थी। 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन और डीजीपी गौतम सावंग ने ट्वीट किया कि इस मुद्दे को लेकर सरकार गंभीर है।
सूचकांक क्रम अ-1 से लेकर अ-7 के नाम वालों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज़ कर ली गई है। इस क्रम में अ-1 से अ-6 तक बालू खनन माफिया के लोग हैं और अ-7 पुलिस अधिकारी फ़िरोज़ है। उसे निलंबित कर गिरफ्तार कर लिया गया है और जेल में डाल दिया गया है। लेकिन अभी तक अ-1 से अ-6 तक क्रमांक वाले घटना के मुख्य अपराधियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
मुझे नहीं लगता कि 48 घंटे पहले ही नई पोस्टिंग में आये अ-7 वाले पुलिस अधिकारी के पास मुझे प्रताड़ित करने का कोई व्यक्तिगत कारण होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि सत्ता में बैठे लोगों ने ही मुझ पर अत्याचार करने के लिए थानाध्यक्ष को कहा होगा और इसके बदले मनचाहे थाने में पोस्टिंग का लालच दिया होगा क्योंकि वो पुलिस अधिकारी अभी प्रशिक्षण-काल में है।
महोदय, अ-1 से लेकर अ-6 तक के सभी लोग सत्ताधारी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। आज 10 अगस्त 2020 को मैं ये ख़त लिख रहा हूँ। अभी तक कोई भी नहीं गिरफ्तार किया गया है और पुलिस अधिकारी की फोन कॉल्स का ब्यौरा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है ताकि असली अपराधियों को नेपथ्य में डाल दिया जाए।
राजमुंदरी की पुलिस अधीक्षक आईपीएस सेयुशी और जिलाधिकारी आईएएस मुरलीधर रेड्डी ने इस भेदभाव को गंभीरता से नहीं लिया है। कलक्टर द्वारा अभी तक मुझे कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। मैं कह सकता हूँ कि कलक्टर ने संविधान को गंभीरता से नहीं लिया है।
सत्तारूढ़ पार्टी के अनेक मंत्री मुझसे मिलने आये और अपनी पार्टी के सदस्यों को बचाने के लिए केस खत्म करने के बदले में मुझे पैसे देने का लालच भी दिया लेकिन किसी ने भी अपराधियों के खिलाफ गंभीर कार्रवाई करने का वादा नहीं किया। मैं डीजीपी और प्रधान सचिव(गृह ) के पास भी गया लेकिन मुझे न्याय नहीं मिला।
जब आतंकी कसाब पकड़ा गया तो भारत सरकार ने उसे हिरासत में ले कर जेल भेज दिया। उसका अपराध साबित होने पर उसे फांसी दे दी गयी लेकिन उसको प्रताड़ित नहीं किया गया क्योंकि वो पाकिस्तानी नागरिक था। ये है हमारे देश की महानता ! चूंकि मैं एक दलित हूँ इसलिए मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है और मेरे साथ भेदभाव किया जा रहा है लेकिन अभी तक न्याय नहीं दिया गया है।
माननीय राष्ट्रपति महोदय, मुझे अनुमति दें ताकि मैं नक्सलियों में शामिल हो जाऊं। हां महोदय, क्योंकि जब कानून-व्यवस्था न्याय करने में असफल रही है तब मैं अपने सम्मान की रक्षा की खातिर कोई दूसरा रास्ता अपनाना चाहता हूँ।
जय हिन्द
प्रसाद
प्रताड़ित दलित लड़का
मुनिकुडाली गाँव
सीतानगरम मंडल
राजनगरम संसदीय क्षेत्र
द लीड से बात करते हुए वारा प्रसाद ने कहा कि 18 जुलाई को उसके और स्थानीय वाईएसआर कांग्रेस नेता कवाला कृष्ण मूर्ती के बीच कहा-सुनी हो गयी। वाईएसआरसी आंध्र प्रदेश में सत्ता में है। इलाके में हुई एक मौत की वजह से वारा प्रसाद ने बालू से भरी ट्रकों को अपने घर के पास की गली से जाने से रोक दिया था।
प्रसाद ने बताया, 'अगले दिन स्थानीय वाईएसआरसी विधायक के कहने पर सीथानगरम का सब-इन्स्पेक्टर शेख फ़िरोज़ शाह दो कॉन्स्टेबल के साथ गॉव में आया और जाँच-पड़ताल के नाम पर दो अन्य लोगों के साथ मुझे पुलिस चौकी ले गया। वहां उन्होंने बेल्ट से हमें बुरी तरह पीटा और बाद में एक नाई को बुला कर मेरी मूंछ और सिर मुड़वा दिया।'
उसने आगे बताया, 'घटना की जानकारी होने पर जब स्थानीय दलित संगठनों ने विरोध-प्रदर्शन किया तब स्थानीय डीएसपी पी.एस.एन. राव मुझसे मिलने हॉस्पिटल आये और तहकीकात करी।' सात लोगों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज़ हो चुकी है। इनमें से 6 वाईएसआरसी के नेता हैं। एफ़आईआर में आखिरी नाम सब-इन्स्पेक्टर शाह का है।
डीएसपी राव ने सब-इन्स्पेक्टर शाह और एक कॉन्स्टेबल को निलंबित करने की घोषणा कर दी। ऐसा उन्होंने इंडियन पीनल कोड की धाराओं 324,323,506 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत किया। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
प्रसाद बोला, 'लेकिन अभी तक इस घटना के मुख्य आरोपी वाईएसआरसी नेताओं की गिरफ्तारी नहीं हुई है और वे लोग उस पुलिस वाले पर दोषारोपण कर मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं जिस पुलिस वाले की तैनाती ४८ घंटे पहले ही हुयी थी और जिसका मुझे प्रताड़ित करने का कोई इरादा नहीं था।'
प्रसाद ने आरोप लगाया कि शासक दल के कई मंत्री उसके पास आए और केस वापिस लेने के लिए पैसे का लालच भी दिया। लेकिन किसी ने भी अपराधी के खिलाफ गंभीर कार्रवाई करने का वादा नहीं किया।
उसने कहा, 'मैं डीएसपी और प्रधान सचिव (गृह) के पास भी फ़रियाद लेकर गया लेकिन मेरे साथ न्याय नहीं किया जा रहा है। चूंकि मेरे सम्मान की रक्षा की ख़ातिर कोई भी न्यायपूर्ण कदम नहीं उठाया गया है, मैंने सोचा है कि नक्सलवाद अपना कर मैं अपने सम्मान की रक्षा करूँ। इसीलिये मैंने इन्साफ हासिल करने के लिए माओवादियों के साथ शामिल हो जाने की अनुमति माँगते हुए एक खत भारत के राष्ट्र्पति को लिखा।'
प्रसाद आगे बोला, 'मुझे ख़ुशी है कि राष्ट्रपति महोदय ने 24 घंटे के भीतर मेरी गुज़ारिश को संज्ञान में लिया और इस केस की जांच करने के लिए उप-सचिव जनार्दन बाबू की नियुक्ति कर दी।' द लीड से बात करते हुए सीथानगरम पुलिस के एक अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, 'एक एफ़आईआर दर्ज़ कर ली गई है और तहकीकात जारी है। वर्तमान में सभी आरोपी भागे हुए हैं। हम जल्दी ही उन्हें पकड़ लेंगे।'
द लीड ने वाईएसआरसी नेता कवला कृष्ण मूर्ती से बार-बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस विषय पर बोलने से उसने मना कर दिया। सामाजिक कार्यकर्ता लुबना सर्वाथ ने द लीड से कहा कि प्रत्येक भारतवासी की शिकायत राष्ट्रपति को खत लिख कर नहीं सुलझाई जा सकती है।
वो बोली, 'इस घटना में जब एस पी ने 2 पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था तब केस के निपटारे की गति तेज होनी चाहिए थी। वाईएसआर कांग्रेस ने अनेक स्तरों और प्रत्येक गांव में बहुत सारी समितियां बनाने और स्वैछिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की घोषणा की थी। चूंकि उन लोगों की नियुक्ति वाईएसआर पार्टी द्वारा की गई थी तो क्या वे अपने आदमियों को न्याय दिलाने के खिलाफ काम करेंगे?
ज़रुरत व्यवस्था को मजबूत बनाने की है। हर कोई यह कहते हुए राष्ट्रपति को खत नहीं लिख सकता कि वो नक्सलियों में शामिल हो जाएगा या फिर आत्महत्या कर लेगा। पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने कानून का सहारा लिया और पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया। तो फिर वो इसी तरह की कार्रवाई शासक दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ क्यों नहीं कर सकता है?
अपराधियों के भागे हुए होने की बात कह कर पुलिस बहानेबाज़ी कर रही है। जब उन्हें पता है कि अपराधी शासक दल से हैं तो फिर उन्होंने गृह मंत्री की मदद ले कर इस प्रक्रिया को तेजी से आगे क्यों नहीं बढ़ाया?"
(मनसा चेन्नप्राग्दा की यह रिपोर्ट साभार 'द लीड' से ली गई है।)