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स्वास्थ्य

Blood Cancer in Hindi: ब्लड कैंसर क्‍या है? ब्लड कैंसर के कितने प्रकार हैं? जानिए ब्लड कैंसर के प्रमुख लक्षण और क्या है इलाज?

Janjwar Desk
16 March 2022 5:55 PM GMT
Blood Cancer in Hindi: ब्लड कैंसर क्‍या है? ब्लड कैंसर के कितने प्रकार हैं? जानिए ब्लड कैंसर के प्रमुख लक्षण और क्या है इलाज?
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Blood Cancer in Hindi: रक्त कोशिकाओं यानी ब्लड सेल्स में हुए कैंसर को ल्यूकेमिया या ब्लड कैंसर कहते हैं। ब्लड सेल्स में लाल रक्त कोशिकाएं (RBC)श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC) और प्लेटलेट्स आते हैं।

मोना सिंह की रिपोर्ट

Blood Cancer in Hindi: रक्त कोशिकाओं यानी ब्लड सेल्स में हुए कैंसर को ल्यूकेमिया या ब्लड कैंसर कहते हैं। ब्लड सेल्स में लाल रक्त कोशिकाएं (RBC)श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC) और प्लेटलेट्स आते हैं। सामान्य तौर पर ल्यूकेमिया या ब्लड कैंसर का मतलब डब्ल्यूबीसी या श्वेत रक्त कोशिकाओं के कैंसर से होता है। डब्ल्यूबीसी हमारे इम्यून सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। डब्ल्यूबीसी शरीर को किसी भी वायरस बैक्टीरिया या फंगल या दूसरे इंफेक्शन से बचाता है। ल्यूकेमिया की स्थिति में डब्ल्यूबीसी सामान्य की अपेक्षा बहुत तेजी से विभाजित होकर संख्या में बढ़ते हैं और नॉर्मल डब्ल्यूबीसी कोशिकाओं की जगह ले लेते हैं। ब्लड कैंसर आरबीसी डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स के उत्पादन और कार्य को प्रभावित करता है। ब्लड कैंसर सामान्यतः बोनमैरो से शुरू होता है। बोनमैरो में ही ब्लड सेल्स का उत्पादन होता है।

ब्लड कैंसर के प्रकार

ब्लड कैंसर मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं।

1- ल्यूकेमिया

यह कैंसर बोन मैरो में विकसित होता है और सामान्य ब्लड सेल्स के कार्य और उत्पादन को प्रभावित करता है। ल्यूकेमिया भी दो प्रकार के होते हैं। एक्यूट ल्यूकेमिया और क्रॉनिक ल्यूकेमिया। एक्यूट यानी तीव्र ल्यूकेमिया (acute leukemia) में अपरिपक्व ब्लड सेल्स की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जाती है। इस वजह से बोन मैरो पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ ब्लड सेल्स का उत्पादन नहीं कर पाता और हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स की संख्या कम होती जाती है। ये बहुत तेजी से फैलने वाला ल्यूकेमिया है। ये ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है। इसमें तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है।

वहीं, क्रॉनिक ल्यूकेमिया में परिपक्व लेकिन असामान्य डब्ल्यूबीसी का अत्यधिक उत्पादन होता है। ये धीरे-धीरे कई सालों में फैलता है। यह ल्यूकेमिया ज्यादातर अधिक उम्र 60 से 70 वर्ष के लोगों में होता है। हालांकि, ये किसी भी आयु वर्ग में हो सकता है।

2- लिंफोमा

इसकी शुरुआत लिंफेटिक सिस्टम से होती है। और यह इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है। लिंफोमा भी दो प्रकार के होते हैं। हजकिन और गैर हजकिन लिंफोमा। ये दोनों ही लिंफोसाइट से लिंफेटिक सिस्टम में विकसित होते हैं।

3- मायलोमा

यह प्लाज्मा कोशिकाओं में विकसित होता है और ब्लड और हड्डी को प्रभावित करता है। इसके अलावा ब्लड कैंसर के अन्य प्रकार भी हैं, जिनमें ये कैंसर आते हैं। मायलोमा का एक प्रकार मल्टीपल मायलोमा (multiple myloma) भी होता है। ये ब्लड प्लाजमा सेल से शुरू होता है।

ब्लड कैंसर के लक्षण

वैसे तो अलग-अलग तरह के ब्लड कैंसर के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन यहां कुछ सामान्य लक्षण के बारे में हम चर्चा कर रहे हैं। जिनसे ब्लड कैंसर होने का अनुमान लगाया जा सकता है। अक्सर बुखार आना और ठंड लगना। लगातार थकान और कमजोरी महसूस होना। भूख न लगना और बिना किसी कारण के वजन कम होना। रात को पसीना आना। हड्डी और जोड़ों में अक्सर दर्द होना। पेट से संबंधित रोगों का होना। सिर दर्द की शिकायत रहना। सांस लेने में परेशानी होना। त्वचा में खुजली और लाल चकते होना। गर्दन, अंडर आर्म्स और कमर के लिंफ नोड्स में सूजन का होना।

ब्लड कैंसर के कारण

यदि पहले किसी प्रकार के कैंसर के उपचार के लिए कीमोथेरेपी या रेडिएशन का प्रयोग किया गया है, तो उसके बाद कई बार ब्लड कैंसर होने की संभावना हो सकती है। डाउन सिंड्रोम जैसे अनुवांशिक रोग से ग्रसित होने पर भी ब्लड कैंसर की संभावना होती है। बेंजीन नामक रसायन के बार-बार संपर्क में आने से भी इसका खतरा बढ़ जाता है। बेंजीन सिगरेट के धुंए में पाया जाता है। इसके अलावा अगर किसी के परिवार में ल्यूकेमिया है तो उसके किसी सदस्य को भी ल्यूकेमिया होने की संभावना रहती है। माईलाइट्स प्लास्टिक सिंड्रोम नामक ब्लड डिसऑर्डर का होना भी ब्लड कैंसर का एक प्रमुख कारण है। इस सिंड्रोम को प्री-ल्यूकेमिया (Preleukemia) भी कहा जाता है। हाई रेडिएशन वेव से किसी भी प्रकार संपर्क में आने पर भी ब्लड कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है।

ब्लड कैंसर की कैसे होती है जांच

ब्लड कैंसर का शक होने पर डॉक्टर सबसे पहले हेल्थ हिस्ट्री के साथ सामान्य शारीरिक जांच करवाते हैं। इसमें लिंफ नोड्स की जांच की जाती है। लिंफ नोड्स हमारे शरीर में गर्दन, अंडरआर्म्स और जांघों के आसपास वाले हिस्से में होते हैं। जहां सूजन हो जाती है। इसके अलावा किसी भी प्रकार के संक्रमण और चोट की जांच भी की जाती है। इसके साथ ही बायोप्सी, स्कैनिंग और ब्लड की जांच भी शामिल है। बोन मैरो की जांच भी की जाती है।

बायोप्सी से जांच

बायोप्सी की प्रक्रिया में डॉक्टर कैंसर प्रभावित क्षेत्र से शरीर की कुछ कोशिकाओं को लेकर जांच करते हैं। ब्लड कैंसर के केस में लिम्फ नोड्स से और बोन मैरो से सैंपल लेकर जांच की जाती है। बोन मैरो के सैंपल कूल्हे की हड्डी और ब्रेस्टबोन से निकालने के लिए बोन मैरो एस्पिरेशन टेक्निक का इस्तेमाल किया जाता है। फिर सैंपल की प्रयोगशाला में जांच करके असामान्य कोशिकाओं और अनुवांशिक परिवर्तन की जांच की जाती है।

इमैजिंग स्कैनिंग से जांच

ब्लड कैंसर की जांच में इमेजिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है। इमेजिंग से बढे हुए लिंफ नोड्स को आसानी से देखा जा सकता है। बढा हुआ लिंफ नोड लिंफोमा का लक्षण है। ल्यूकेमिया की जांच में स्कैनिंग उपयोगी नहीं है। लेकिन स्कैन की मदद से यह पता किया जा सकता है, कि कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों को कितना प्रभावित कर चुका है। कैंसर के लिए किए जाने वाले स्कैन में मुख्य रूप से कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी ) स्कैन, एमआरआई पोजिट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी), एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड शामिल है।

ब्लड टेस्ट से जांच

सीबीसी (पूर्ण रक्त परीक्षण) द्वारा ब्लड में मौजूद डब्ल्यूबीसी, आरबीसी और प्लेटलेट्स की संख्या का पता किया जाता है। ब्लड टेस्ट की जांच में कुछ प्रोटीन के असामान्य स्तर की भी जांच की जाती है। लिंफोमा की जांच के लिए लेक्टेट डिहाईड्रोजेनसे एंजाइम के स्तर का पता किया जाता है। और मल्टीपल मायलोमा में ब्लड में कैल्शियम के स्तर की जांच की जाती है। इन सब के साथ ही कैंसर की स्टेज का पता करने के लिए स्टेजिंग नामक प्रक्रिया भी की जाती है। इस प्रक्रिया में कैंसर के मूल स्थान, प्रकार और यह कितना फैला है, इसका पता किया जाता है। अलग-अलग तरह के रक्त कैंसर की स्टेजिंग भी अलग-अलग तरह से की जाती है।

ब्लड कैंसर का इलाज

कीमोथेरेपी : ल्यूकेमिया के प्रकार के आधार पर एक साथ कई दवाइयों के कॉम्बिनेशन का उपयोग असामान्य या ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारने के लिए किया जाता हैं।

रेडिएशन थेरेपी : ल्यूकेमिया कोशिकाओं के विभाजन को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसे बॉडी के कुछ खास एरिया में या फिर जरूरी होने पर पूरे शरीर पर भी किया जा सकता है।

स्टेम सेल थेरेपी : इसमें स्टेम सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है। स्टेम सेल वे कोशिकाएं होती हैं, जो किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदलने की क्षमता रखती हैं। स्टेम सेल गर्भनाल से या फिर बोन मैरो से प्राप्त की जाती हैं। स्वस्थ स्टेम सेल्स को जब रोग ग्रस्त बोन मैरो या अस्थि मज्जा में ट्रांसप्लांट किया जाता है तो रोग ग्रस्त बोन मैरो स्वस्थ हो जाती है। स्टेम सेल्स जब मरीज के शरीर से लेकर उसी मरीज के बोन मैरो में ट्रांसप्लांट की जाती है, तो इसे ऑटोलॉगस ट्रांसप्लांट कहते हैं। वहीं, दूसरे स्वस्थ इंसान से स्टेम सेल्स लेकर जब मरीज में ट्रांसफर किया जाता है तो इस प्रक्रिया को एलोजेनिक ट्रांसप्लांट कहते हैं।

इम्यूनोथेरेपी : इसमें शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जाता है। ताकि इम्यून सिस्टम कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर उन पर हमला कर सके।

टारगेटेड थेरेपी : इसमें चिकित्सा दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। जो सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करके नष्ट करती हैं। और उनके आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं को कोई क्षति नहीं पहुंचाती हैं। उदाहरण के लिए इमैटिनीब नामक दवा का उपयोग क्रॉनिक मुएलॉयड ल्यूकेमिया में किया जाता है। जितनी जल्दी ल्यूकेमिया का पता चलता है और इसका इलाज शुरू किया जाता है उसके ठीक होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है। NCI यानी नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के अनुसार, 2009 से 2018 के बीच ल्यूकेमिया से होने वाली मौतों की संख्या में 1.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से गिरावट हुई है। और 2011 से 2017 के आंकड़ों के अनुसार इलाज के बाद न्यूनतम 5 साल तक जिंदा रहने की दर में 65% की वृद्धि हुई है। इन आंकड़ों में सभी आयु वर्ग और सभी तरह के ल्यूकेमिया के मरीजों की संख्या शामिल है।

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