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समाज

Holy Cows Or Cash Cows : गाय का धर्मशास्त्र या अर्थशास्त्र : 20 साल में बदल गया सबकुछ

Janjwar Desk
1 April 2022 9:50 AM GMT
Holy Cows Or Cash Cows : गाय का धर्मशास्त्र या अर्थशास्त्र : 20 साल में बदल गया सबकुछ (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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Holy Cows Or Cash Cows : गाय का धर्मशास्त्र या अर्थशास्त्र : 20 साल में बदल गया सबकुछ (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Holy Cows Or Cash Cows : मैं दूध लेने काशीनाथ के पास गया तो काशीनाथ वही भजन गा रहे थे। चुनावों को लेकर काशीनाथ बोले भाईसाहब इस देश में अब तो तानाशाही होनी चाहिए, ये लोकतंत्र फोकतंत्र बेकार की बात है, अब तो ऐसा आदमी हो जो एक बार में सबको ठीक कर दे, मोदी कुछ-कुछ वैसे लग रहे हैं...

विवेक कुमार राय की रिपोर्ट

Holy Cows Or Cash Cows : "हरे राम हरे हरे राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे", बनारस (Varanasi) के गिलट बाजार राजराजेश्वरी कालोनी में खाली पड़े प्लाटों में गाय पालकर दूध बेचते काशीनाथ राय इस भजन को गाते हुए अपनी गाय का दूध निकालने की तैयारी में थे। भजन की आवाज मेरे कानों में पड़ते ही मुझे अपने बाबा (दादा) की याद आई। करीब 20 साल पहले स्वर्गवासी हुए मेरे दादा ब्रह्मदेव राय भी गोरखपुर (Gorakhpur) के अपने गांव में भोर होते ही इसी भजन को गाते हुए सभी पालतू जानवरों को खूँटे पर लगाते थे और गाय (Cow) को दुहते थे। काशीनाथ शहर में हैं और बाबा गाँव में थे। गाँव और शहर के इन 20 सालों के सफर में भजन के शब्दों छोड़कर बाकी सब बदल चुका है, यहाँ तक कि गाय की स्थिति भी।

उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजों ने गाय प्रेमी योगी (Yogi Adityanth) को एक बार फिर सत्तानशीं कर दिया। काशीनाथ का मानना है कि गाय को लेकर जो काम इस सरकार (UP Govt) ने किया वो कोई सरकार नहीं कर सकी और चुनाव में उसे इसका फायदा भी मिला। पर गाय के लिए ऐसा क्या किया है सरकार ने, जबकि प्रदेश में लगभग सभी जगहों पर छुट्टे जानवरों से किसान परेशान हैं? 'गाय का प्रचार' काशीनाथ राय ने एक वाक्य में जैसे चुनाव का सार निकाल कर रख दिया।

बात करते-करते मैंने ध्यान दिया कि काशीनाथ के पास 6 गाय हैं और सभी दूध देती हैं पर किसी भी गाय का बच्चा नहीं दिख रहा। मैंने उत्सुकतावश यह बात काशीनाथ से पूछी तो व हंस कर टाल गए और मेरे दूध के बर्तन में दूध नापने लगे। मैंने और ज़ोर डाला पर वे नहीं फूटे और फिर वही भजन गुनगुनाने लगे "हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे"।

एक आदमी शहर में दूध बेचने का काम करता है और उसके पास खाली प्लॉट है फिर भी किसी गाय का बच्चा नहीं। काशीनाथ दूधिया दूध में मिलावट नहीं करता और न ही किसी प्रकार का इन्जेक्शन ही वो गाय को लगाता है, ऐसी बातें काशीनाथ के लिए उनके ग्राहक कहते हैं जिनमे से उसी मोहल्ले में रहने वाली एक मेरी अपनी बहन भी शामिल है। गाय को पालने और पूजने वाले अपने दादा से दूधिया के बारे में एक बात हमेशा सुनता था 'दूधिया दूध में पानी न मिलाए तो पानी नहीं उतरता उसके गले से नीचे', पर ये दूधिया ऐसा करते दिखा नहीं और दूध के दाम भी बाजार भाव के मुताबिक ही हैं। बाबा की कही बात गलत साबित होती दिख रही थी पर बाबा पर बना भरोसा कहता रहा कि ऐसा हो नहीं सकता, जरूर बात और है।

शाम को पास की दूसरी गौशालाओं में जाकर देखने का प्रयास किया तो पाया कि वहां भी गाय के बच्चों के हालात कमोबेश ऐसे ही हैं पर किसी ने भी इसके पीछे का कारण नहीं बताया। मैदागिन से गोदौलिया होता हुआ पैदल-पैदल मैं रास्ता भटककर एक अंधेरी गली में पहुंच गया। गली पार करते ही एक छोटा सुनसान मैदान मिला जहां कुछ आवारा कुत्ते अपनी मां से बिछड़कर अलग हुए छोटे से गाय के बच्चे को दौड़ा रहे थे। मैंने पत्थर उठा कर कुत्तों को भगाया और सुरक्षित मुख्य सड़क की तरफ बढ़ गया। मेरे दूर जाने के बाद कुत्तों की आवाज फिर से आने लगी।

अगली सुबह मैं दूध लेने काशीनाथ के पास गया तो काशीनाथ वही भजन गा रहे थे। चुनावों को लेकर काशीनाथ बोले, 'भाईसाहब इस देश में अब तो तानाशाही होनी चाहिए, ये लोकतंत्र फोकतंत्र बेकार की बात है, अब तो ऐसा आदमी हो जो एक बार में सबको ठीक कर दे, मोदी कुछ-कुछ वैसे लग रहे हैं। पर योगी को राज करना नहीं आता, ठाकुरवाद फैलाए हुए हैं बस। काशीनाथ जी आपने सपा को वोट नहीं दिया, आप तो बिहार से हैं, वहाँ तो अहीर लोग राय लगाते हैं न? नहीं जी, मैं भूमिहार हूं वो भी बिहार का पर काफी पहले बनारस आ गया था तो सिंह हटा कर राय कर लिया। यहां तो सिंह लोग ठाकुर होते हैं न, और तभी से कुछ गाय खरीद कर दूध बेचने का काम करता हूं'। आपको अहीर लगा क्योंकि आपके यहां दूध का काम यादव ही करते हैं। जी हां, इसीलिए, मैंने कहा। नहीं जी हम असली जमीदार किसान हैं और गाय का लालन पालन हमसे ज्यादा क्या करेगा कोई।

गाय की बात छेड़ते ही मैंने फिर गाय के बच्चे को लेकर सवाल किया तो काशीनाथ ने कहा कि पुराने जमाने में गाय दूसरे किस्म की होती थी जो बिना बच्चे को पिलाए दूध नहीं देती थी पर अब ये मिक्स ब्रीड की गाय हैं जो बच्चे के बिना भी दूध दे देती हैं। काशीनाथ ने मुझे शहरी गंवार समझ कर शायद ये बात कह कर पिंड छुड़ाने का प्रयास किया। हाँ, पर बच्चा तो पैदा होता है न, वो है कहाँ? राम-कृष्ण के उसी भजन ने काशीनाथ को सवाल के ताप से बचा लिया जिसे गाते हुए काशीनाथ बाल्टी का पानी गाय के थनों पर फेक कर उन्हे गीला करने लगे।

दूध दुहने के बाद जब कुछ और लोग दूध के बर्तन लेकर जुट गए तो काशीनाथ ने मुझसे कहा; 'आप तो दिल्ली रहते हैं वहाँ तो बहुत पहले ही लोहे की गाय से दूध मिलता था और अब प्लास्टिक के पैकेट में मिलता है, पर इसके पीछे एक अर्थशास्त्र है जिसे आप नहीं समझ सकते। काशीनाथ ने ये कहकर सबको एक सरसरी नजर से देखा और एक अनकहा संदेश सब तक पहुंचाया कि देखो ये युवक कितना बेवकूफ है। काशीनाथ का अनकहा संदेश सबकी आंखों से होता हुआ मुझ तक आया जिसे दूध लेने आए लोगों की नजरों में मैं साफ-साफ पढ़ सकता था कि अरे लड़के तुम बेवकूफ हो। पर काशीनाथ जानता था कि वहां खड़े लोगों और मुझमे कुछ अंतर है जिस पर वो भीड़ का वजन डाल कर दबाने की कोशिश में असफल रहा।

मैंने कहा, थोड़ा समझाइए। देखिए, पहले भूसा गांव में गेहूं कटने के बाद मिल जाता था पर अब मशीन से कटता है तो भूसा भी नहीं मिलता और बड़ी बात ये है कि अब गांव में कोई जानवर तो पालता नहीं तो भूसे की जरूरत गांव में समाप्त हो गई। हम जैसे दूध की डेरी वाले भूसा लेने को परेशान है और जिनके पास भूसा है वे जानते हैं इस बात को, सो भूसा मिलता है 12 रुपये किलो। 6 गाय हैं, सब मिलकर एक दिन में 30 किलो भूसा खा जाती हैं और इतना ही अनाज भी। अब आप हिसाब लगा लीजिए कि कितना खर्च है और कितने रुपये में मैं दूध देता हूँ। इस बीच में अगर बच्चे को पालूँ तो दूध का दाम कितना होगा और आप खुद ही मुझे गरियाने लगेंगे कि लूटता है। ये कह कर काशीनाथ ने सबकी तरफ देखा और सबके मुह से निकला 'सही बात है भइया'।

मैं अपने सवाल पर टिका रहा कि वो सब ठीक है पर बच्चा कहां भेजते हो? काशीनाथ चिढ़कर बोले किसी दोस्त यार को दे देते हैं। आपके दोस्त क्यों लेते हैं वो क्या करते हैं? अब भगवान जाने क्या करते हैं हम ये सब थोड़े न पूछते हैं। ये कहते हुए दूध का डब्बा मेरे हाथ में देकर काशीनाथ ने भजन की ओट ले ली। काशीनाथ की बात सही थी, गाँव से पलायन और शहरों में जगह की कमी ने दूध के अर्थशास्त्र को बदल डाला है। इसकी पुष्टि भारत सरकार के आंकड़ों से भी होती है।

कृषि कल्याण मंत्रालय के तहत डिपार्ट्मन्ट ऑफ एनिमल हसबेन्डरी, डेयरिंग एण्ड फिशर्स और नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक आजादी बाद 1951 में लाइव स्टॉक सेंसस से ज्ञात हुआ कि देश में लगभग 155 मिलियन गौवंश था जिसमें गाय की संख्या 54.4 मिलियन थी। यह संख्या 2019 में बढ़कर 192.5 मिलियन और 81.4 मिलियन क्रमश: हो गई है। भैंस की संख्या 43.4 मिलियन थी जो बढ़कर 109.9 मिलियन हो गई। बकरी 47 मिलन से 149 मिलियन और अंडे देने वाले पालतू जीवों की संख्या 73.5 मिलियन से बढ़कर 2019 में 850 मिलियन हो गई है। आबादी के अनुपात में देखें तो 1951 में जहां 2.32 लोगों पर एक गौवंश उपलब्ध था, वह 2019 में 7.29 व्यक्तियों पर एक गौवंश हो गया।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में गौवंश की संख्या 19.6 मिलियन थी जो 2019 में 3.93% घटकर 18.8 मिलियन हो गई जबकि देश में भाजपा सरकार है जिसने गाय के नाम पर इंसानी ज़िंदगी तक से मूँह फेर लिया है। पर भैंस जो कि 2012 में 7.8 मिलियन थी उसकी संख्या में 30.6% का उछाल आया और बढ़कर 33 मिलियन हो गई। गायों की संख्या में कमी होती जा रही है वह भी तब जब उत्तर प्रदेश में गाय के नाम से स्पेशल एक्ट बना हुआ है। । इन सबके बीच गाँव से लोगों का पलायन शहरों की तरफ बेहिसाब हो रहा है। खेती बेशक पूंजीपति के हाथ में जा कर अपना नाम बचाए हुई है पर किसानी समाप्त हो रही है तो जाहिर है अब प्रेमचंद के गोदान के होरी को गाय को खूँटे में बांधने का गर्व नहीं होगा।

अगली सुबह फिर दूध लेने गया तो काशीनाथ के पास कल वाली भीड़ मुझसे पहले आ चुकी थी। मुझे देखते ही सबकी कुटिल मुस्कान ने बता दिया कि मैं उनके बीच एक बेवकूफ से ज्यादा कुछ नहीं। क्या सर आप योगी जी को जीत दिए, काशीनाथ बोले। आप बताइए आप वोटर हैं बनारस के, मैंने कहा। हम तो मोदी जी को ही जिताएंगे न चाहते हुए भी। क्यों भई ऐसा क्यों? देखिए हम जानते हैं कि भाजपा बहुत खराब पार्टी है, ये सिर्फ छोटी जात वालों को फायदा देती है, कभी अनाज कभी पैसा। मध्यम वर्ग को तो बस महंगाई ही मिलती है चाहे कोई भी सरकार हो, सरसो तेल 200 और पेट्रोल 100 रुपये। पर इससे क्या फ़र्क पड़ता है, जो भी आएगा यही होगा मध्य वर्ग के साथ। योगी ठाकुरवाद करेंगे ही, वे हम ब्राह्मण भूमिहारों से तो और चिढ़ते हैं पर फिर भी अगर मुसलमानों को ठीक करना है और उनकी संख्या को कम रखना है तो भाजपा को ही देश में लाना होगा।

आपको मुसलमानों से इतनी नफरत क्यों है? मेरे इस सवाल पर काशीनाथ ने फिर से सबकी ओर देखते हुए सबको वही संदेश भेजा और अपनी काली गाय पर हाथ फेरते हुए कहा; 'देखिए हम हिन्दू जिस गौ माता को पूजते हैं और उसी को वो साले काटकर खाते हैं। गाय मेरे लिए मां है और मैं रोज दूध दुहने से पहले इनको पूजता हूँ। अब आप ही बताइए जिसे आप पूजनीय मानते हैं उसे कोई काट कर खा जाए तो आप बर्दाश्त कर सकेंगे, नहीं न? इसीलिए मजबूरी में भाजपा को लाना है।

दूध लेने आए दो अन्य लोगों में से एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति जिनको लोग शुक्ला जी पुकार रहे थे ने तल्खी में कहा कि आप भी तो गाय का दूध लेने आए हैं, देखिए गाय हमें दूध देती है, दही, मक्खन, जलावन और तो और गाय आक्सिजन तक देती है, वो भी मुफ्त और जो इसे मारे उसको तो मारना ही चाहिए।

काशीनाथ ने गाय की बात की तो मैंने फिरसे अपना सवाल दागा, आपने बताया नहीं गाय माता के बच्चे कहां हैं? इस बार मेरी आंखों में सवाल की जगह जवाब देख कर काशीनाथ समझ गया कि मैं उतना भी बेवकूफ़ नहीं जितना उसने जनता को अपनी आँखों के संदेश से समझाया था। काशीनाथ ने सबसे पहले मेरे दूध के बर्तन में दूध डाला और पूछा, और कितने दिन रहना है बनारस? आज शाम की शिवगंगा से वापसी है। अरे इतना जल्दी जाइएगा, बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर काफी जानने को मिला। मुझसे आंखे चुराते काशीनाथ के हाथ से दूध का बर्तन पकड़ते हुए मैंने शुक्ला जी से कहा, "शुक्ला जी गाय हमें दूध देती नहीं हम उसके बच्चे का हक मार कर गाय से दूध ले लेते हैं, क्यों काशीनाथ जी, सही है?" काशीनाथ को मानो काटो तो खून नहीं।

'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे', काशीनाथ गुनगुनाते हुए बच निकले। शाम को मेरा भांजा मुझे कैब में स्टेशन छोड़ने साथ आया, रास्ते में वही खाली मैदान दिखा जिससे कल रात मैं गुजरा था, अचानक भांजा बोला 'देखो मामा कुछ कुत्ते गाय के मरे बच्चे को खा रहे हैं, मैंने देखा वही गाय का बच्चा था जिसे कल रात मैंने कुत्तों से बचाने का प्रयास किया था।

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