बागेश्वर में भुखमरी से जूझती जोशीगांव की महिला ने 3 बच्चों के साथ सल्फास खाकर दी जान, सुसाइड नोट में 13 साल की बच्ची ने लिखी हृदयविदारक बातें
बागेश्वर में भुखमरी से जूझती जोशीगांव की महिला ने 3 बच्चों के साथ सल्फास खाकर दी जान, सुसाइड नोट में 13 साल की बच्ची ने लिखी हृदयविदारक बातें
इंद्रेश मैखुरी की टिप्पणी
उत्तराखंड के बागेश्वर शहर से लगे हुए घिरौली जोशीगांव में बीते दिनों एक हृदयविदारक घटना सामने आई. एक घर के अंदर एक महिला और उसके तीन बच्चों के शव बेहद खराब हालत में 16 मार्च को मिले. अब नयी जानकारी सामने आ रही है कि मरने वालों में 13 साल की अंजलि का लिखा हुआ सुसाइड नोट मिला. उक्त सुसाइड नोट में अंजलि ने लिखा कि उसकी माँ और बाकी परिवार, उस कर्ज का तगादा करने वालों से बहुत परेशान था, जो उसके पिता ने अलग-अलग लोगों से लिया हुआ था. कर्ज चुकाने का तगादा करने वालों से बचने के लिए पिता भी लगभग 15 दिनों से परिवार से अलग रह रहा था.
विडंबना देखिये कि उक्त परिवार के पास न खाने के लिए खाना था, न पकाने के लिए सिलेंडर. मृतका 13 वर्षीय अंजलि के सुसाइड नोट का जो ब्यौरा सामने आया है, उसके अनुसार आर्थिक हालत बिगड़ने पर वे जिससे मदद मांगने की कोशिश करते, पता चलता कि उससे पिता ने पहले ही कर्ज लिया हुआ है. सिलेंडर भरवाने गए तो पता चला कि पुराने पैसा नहीं चुकाया गया है.
एक ऐसे समय में जब प्रदेश की हर गली, हर नुक्कड़, उन सरकारी विज्ञापनों से पटा हुआ है, जो बता रहे हैं कि इस सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का होगा, जब बजट, नकल कानून से लेकर अभिभाषण तक का उत्सव मनाया जा रहा है, सबके लिए आभार रैली हो रही, तब एक परिवार भूख से मरा नहीं बल्कि भूख से इस कदर विकल हुआ कि उस परिवार की मां नंदी देवी ने अपने हाथों से अपने 13 साल की बेटी और सात व डेढ़ साल के दो बेटों को सल्फास देकर अपनी और बच्चों की जीवन लीला समाप्त कर ली!
उज्ज्वला गेस सिलेंडर और 85 करोड़ देशवासियों को मुफ्त राशन के विज्ञापन कर्ता हुक्मरानों बताओ कि तुम्हारा उज्जवला का सिलेंडर और मुफ्त राशन चौराहे पर टंगे फ़्लेक्स से उतर कर कर्ज में डूबे परिवार तक क्यूँ नहीं पहुँच सका? जितना ज़ोर विज्ञापनी शोशेबाजी और खुद ही स्वयं का आभार प्रकट करने के लिए रैली करने और उसके लिए भीड़ जुटाने में लगाते हो, उसका अंश भर भी वास्तविक जरूरत मंदों को खोजने पर लगाते तो शायद एक लाचार, बेबस मां को अपने बच्चों के साथ जहर नहीं खाना पड़ता!
विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है, तुम्हारी, बूथ नहीं पन्नों के प्रमुख बनाए हैं तुमने, क्या केवल उत्पात करने के लिए ? कोई भूख से तड़पता हुआ जान लेने को विवश हो जाता है तो न पन्ने के प्रमुख को पता चलता है और न राज्य के प्रमुख को, हद है, लानत है!
और यह क्या पहली बार भूख से मरने की घटना है? जी नहीं, अप्रैल 2017 में अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया के ग्राम सभा खजुरानी में एक 17 वर्षीय युवती की भुखमरी से मौत होने की बात सामने आई थी. उक्त युवती गंभीर तंत्रिका रोग और विकलांगता से ग्रसित थी. उस परिवार में लगातार भूख लगने की बीमारी से मौत होने का एक सिलसिला था. परिवार गरीब था, इसलिए भूख के रोग का इलाज न कर सका और फलतः युवती की मौत हुई.
तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने उक्त युवती की मौत को भूख से हुई मौत मानने से इंकार किया था. लेकिन उस समय के द्वाराहाट के भाजपाई विधायक महेश नेगी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उसे भुखमरी से हुई मौत लिखा था.
2017 वह साल था, जब उत्तराखंड ने डबल इंजन का नारा पहली बार सुना और उसे साकार भी कर दिखाया था. अब हम 2023 में हैं तो डबल इंजन का नारा दूसरी बार साकार हुआ है. इसके साथ ही भूख से जान गंवाने का डबल भी डबल इंजन ने हासिल कर लिया है ! इस उपलब्धि का जश्न मनाया जा सकता तो वे जरूर मनाते! उनके लिए हर चीज जश्न है, ज़िम्मेदारी कुछ नहीं है! इसका न सही, वे फिर किसी घटना का जश्न मानना शुरू कर देंगे, इसलिए भी ताकि इस घटना पर से ध्यान हटाया जा सके!
वे भूख नहीं पहचानते और न ही भूख से जीवन गंवाने वालों को पहचानते हैं! वे यदि किसी भूख को पहचानते हैं तो वो है सत्ता की भूख और उस भूख को मिटाने के लिए वे किसी भी हद के पार जा सकते हैं! आवाम की भूख के प्रति सत्ताधीशों के नज़रिए पर दुष्यंत कुमार लिख ही गए हैं :
“भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में ज़ेर-ए-बहस है ये मुद्दआ”
(इंद्रेश मैखुरी भाकपा (माले) उत्तराखंड के राज्य सचिव हैं।)