Bundelkhand : कभी चंबल के बीहड़ों में आतंक का दूसरा नाम रही मुन्नीबाई का अब रोते हुए क्यों कट रहा बुढ़ापा?
पूर्व दस्यु सुंदरी मुन्नीबाई (image/socialmedia)
Bundelkhand : 80 के दशक में लोग मुन्नीबाई (Munnibai) के नाम से खौफ खाते थे। चंबल के बीहड़ों में इस नाम का ऐसा खौफ था कि मजाल नहीं कोई आंख उठाकर देख ले। हम बात कर रहे हैं कि पूर्व दस्यु सुंदरी मुन्नीबाई की, जो इन दिनों अपने हक के लिए संघर्ष कर रही है। 1983 में दस्यु जीवन के बाद सुधार की ओर कदम रखते हुए मुन्नीबाई ने गिरोह के 25 सदस्यों के साथ आत्मसमर्पण किया था।
मुन्नीबाई को शासन की तरफ से जीवन को नए ढंग से जीने के लिए चार बिस्वा जमीन दी गई थी। 10 साल जेल काटने के बाद वो बाहर आई तब से अब तक शासन की तरफ से दी गई जमीन पर मकान नहीं बना सकी। इस जमीन पर कुछ दबंगों ने कब्जा कर लिया है जो कि मकान नहीं बनाने दे रहे हैं। 17 साल की उम्र में इंदुर्खी गांव के बाबू खां से मुन्नीबाई का निकाह हुआ था। बाबू खां भी आगे चलकर डकैत बन गया और घनसा बाबा गिरोह में शामिल हो गया था।
डकैत गिरोह के सफाए को लेकर मुन्नीबाई पर पुलिस ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसी बात से मुन्नीबाई तंग आ गई और वो चंबल की बीहड़ में बंदूक का सहारा लेने को मजबूर हो गई। इस तरह से वो भी घनसा बाबा गिरोह की सदस्य बनी थी। लगभग 7 साल तक मुन्नीबाई ने गिरोह में रहकर कई वारदातों में हिस्सेदारी निभाई। कई लोगों की पकड़ से फिरौती भी वसूली।
मुन्नीबाई ने कहा कि उसके गिरोह में 25 लोग थे। सबके अपने-अपने काम बंटे हुए थे। डकैती डालने के दौरान पुरूष डकैत महिलाओं पर हाथ नहीं डालते थे। घर में घुसकर महिलाओं के साथ मारपीट करना और जेवर लूटने का जिम्मा हुआ करता था। सन् 1983 में गिरोह के सदस्यों ने रौन में आत्मसमर्पण किया। इस दौरान शासन की ओर से लहार के चिरौली के पास मुझे 4 बिस्वा जमीन पुनर्वास के लिए दी गई थी।
पूर्व दस्यु सुंदरी मुन्नीबाई ने कहा कि दस साल तक ग्वालियर-इटावा और भिंड की जेल में रही। जेल से वापस आने के बाद इतने पैसे नहीं थे, इसलिए स्वयं का मकान बनवा सकूं। इंदुर्खी गांव का पैतृक मकान को बेचकर बेटी की शादी मछंड कस्बे में की और बेटी के घर ही जीवन यापन करने लगी। इकलौती बेटी के घर में रहकर मकान बनवाने का विचार बनाया तो दबंगों ने दस साल से मकान नहीं बनने दिया।
मुन्नीबाई का कहना है कि अब 60 साल से ज्यादा उम्र हो चुकी है। जमीन के टुकड़े को पाने के लिए कई बार कलेक्ट्रेट और लहार एसडीएम दफ्तर गई हूं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।