आम आदमी के नेता राघव चड्ढा की आलीशान शादी से और बढ़ेगी मध्यवर्गीय और निम्नमध्वर्गीय तबकों में कुंठा
आम आदमी के नेता राघव चड्ढा की आलीशान शादी से और बढ़ेगी मध्यवर्गीय और निम्नमध्वर्गीय तबकों में कुंठा
अजय प्रकाश की तल्ख टिप्पणी
Raghav Chadha luxurious wedding : आज आम पार्टी के सबसे नौजवान सांसद राघव चड्ढा फिल्म अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा के साथ शादी के बंधन में बंध गये हैं। उनको उनकी बराबरी और रुतबे वाले लोग बधाई भी दे रहे होंगे।
लेकिन हम उनकी शादी के आलीशान होने पर सवाल लेकर आए हैं। हो सकता है आप में से कुछ लोगों को यह अमानत में खयानत लगे, लेकिन मेरे मन में सवाल है, इसलिए रख दे रहा हूं।
यह मानकर चला जाता है कि सबके मन में अपनी शादी को लेकर एक रूमानियत रहती है, रोमांच रहता है, तो यह बात राघव चढ्ढा के साथ भी होगी ही। उनके भी शादी को लेकर सपने होंगे, अपनों के साथ जलसा मनाने का भी मन होगा। सो वह मना भी रहे हैं।
मगर यह शादी किसी पूंजीपति की नहीं, किसी दलाल और सूदखोर की नहीं, बल्कि खुद को आम जनता की पार्टी कहने वाली 'आप' के एक नेता की है। एक ऐसे नेता की जिसकी पार्टी अपने को ईमानदारी की प्रतिमूर्ति मानती है और कहती है कि वह गांधी, भगत सिंह और अंबेडकर के रास्तों पर चलकर नया भारत बनाने जा रही है। यह पार्टी हम सबके सामने बनी है, उसका संविधान बना है और उसके नेता बने हैं, नेता से मंत्री बने हैं, यह हम सबने देखा है।
ऐसे में मेरा सवाल है आलीशान होने वजह से क्या यह शादी अश्लील नहीं लग रही?
क्या पैसे और ताकत का यह नंगा नाच देश के उन करोड़ों परिवारों को मुंह नहीं चिढ़ा रहा जिनकी बेटे और बेटियों की शादी शिक्षा, रोजगार और निर्धनता की वजह से नहीं हो पाती या बेमेल होती है। आपको लगता है कि जो नेता इस कदर दिखावे में मतांध है, वह भारत को प्रगतिशील राष्ट्र की ओर ले जाएगा। कभी नहीं।
एक नेता का सार्वजनिक जीवन लोगों को प्रभावित करने वाला होता है, उससे युवा सीखते और अपनाते हैं। शादियों में दिखावे की प्रवृत्ति भारत में एक बड़ी समस्या है। आम लोग कर्ज लेकर, जमीन बेचकर या जमा पूंजी लगाकर शादियों के दिखावे का भुगतान करते हैं। समस्या इतनी बड़ी है कि तमाम जातिवादी संगठन भी इसके विरोध में खड़े होते हैं।
मगर हमारे युवा नेता राघव चड्ढा ने क्या उदाहरण प्रस्तुत किया? राघव स्मार्ट, गोरे और सफल युवा हैं, ऐसे में इसका असर हमारे समाज के मध्यवर्गीय और निम्नमध्वर्गीय तबकों की कुंठा को दो कदम और बढ़ाएगा।
हमारे देश में कोई गोरा हो, उस पर छरहरा हो, फिर स्मार्ट भी हो और सफल हो, तब तो आंख का अंधा भी वैसा ही बनना चाहता है। कहने का मतलब यह कि ये नेता देश और जनता को कुछ सकारात्मक तो दे नहीं पाते, अलबत्ता समय-समय पर बीमारी को बढ़ाने का ही काम करते हैं।
हर मौके पर गांधी के नाम की माला जपने वाले राघव चड्ढा जैसे नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि गांधी ने एक महिला के पास कपड़े का अभाव देख खुद सूट-बूट पहनना छोड़ दिया था और सादगी को जीवन का मूल मंत्र बना लिया था।