Uttarakhand news : उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों की खौफनाक दास्तां, जहां हवा में ट्रॉली और हथेली पर रहती है जान!
Uttarakhand news : उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों की खौफनाक दास्तां, जहां हवा में ट्रॉली और हथेली पर रहती है जान!
Uttarakhand news : अपने आप में अनुपम सौंदर्य समेटे हुए उत्तराखंड राज्य में यदि आपको उफनाती हुई नदी के ऊपर से तारों के सहारे टंगी किसी लोहे की ट्रॉली से जान हथेली पर रखकर लोग नदी पार करते दिखें तो इसे उनका स्टंट समझने की भूल न करें। ऐसा करना न तो उनका शौक है और न वह किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे होते हैं। यह उनकी मानसून सत्र के चार महीनों की जिंदगी का वह हिस्सा है, जिसे हर हाल में जीने के लिए यह अभिशप्त हैं।
भौगोलिक परिस्थितियों के कारण राज्य के कई इलाकों में यह स्थिति देखी जा सकती है, लेकिन राज्य का नाकारा सिस्टम जब हर समय की स्वास्थ्य जैसी जरूरी जरूरत ही ठीक से पूरी न कर पा रहा हो तो इस मानसून सत्र की समस्या का समाधान करे, यह सोचना ही ज्यादती होगी।
उत्तराखंड के भारत-चीन सीमा से सटे क्षेत्र का पिथौरागढ़ जिला सीमांत जिला है। यह जिला ही सीमांत है, लेकिन इसकी समस्याओं का कोई अंत नहीं है। वह अनंत हैं। बरसात के चार महीने इस जिले पर हमेशा से भारी पड़ते आए हैं। जिले की कई नदियों और बरसाती गधेरों पर बने अस्थाई पुल इन दिनों पानी के बहाव में बह जाते हैं, जिस वजह से इन दिनों में इन नदी-गधेरों को पार करने के लिए स्कूली बच्चों, घायलों और बुज़ुर्गों को उफनती नदी पार करने के लिए जान हथेली पर रखकर हाथ की बनी ट्रॉली में बैठकर जाना होता है।
मुनस्यारी क्षेत्र के गोल्फा गांव के निवासियों को यह संकट वर्ष 2013 के उस समय से झेलना पड़ रहा है, जब इस साल की विनाशकारी आपदा में लोहे का पुल बह गया था। इस आपदा के बाद यहां लकड़ी का अस्थाई पुल बनाया गया था जो 2020 में ही बह गया था। मुनस्यारी स्थित गोल्फा गांव में पड़ने वाली गोल्फा गाड़ (बरसाती नाले को पहाड़ में गाड़ बोला जाता है) में बरसात के दौरान तेज बहाव रहता है। इस गाड़ के दोनों तरफ रहने वाले घरूड़ी, गोल्फ़ा, तोमिक, टांगा की मुख्य बाजार और सेराघाट के 600 से अधिक लोग हर रोज आने-जाने के लिए इस गाड़ को ट्रॉली के माध्यम से ही पार करते हैं।
इस नदी पर बना पुल पहली बार 2013 की आपदा में पूरी तरह से बह गया था, जिसके बाद इस पर आवाजाही के लिए लकड़ी का पुल बनाया गया। वर्ष 2020 की आपदा ने इस लकड़ी के पुल को भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था। परेशानी को देखते हुए प्रशासन ने ग्रामीणों के लिए अस्थाई व्यवस्था के रूप यहां हाथ से चलने वाली ट्रॉली लगा दी। इसी ट्रॉली से अब स्कूली बच्चे, घायल, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और आमजन को गोल्फा गाड़ नाले के आर-पार आना-जाना पड़ता है।
इसी पिथौरागढ़ जिले की एक विधानसभा है धारचूला। कांग्रेस के हरीश धामी यहां से एक बार फिर जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। इस विधानसभा के बंगापानी क्षेत्र में भी गोरी नदी की उफनती लहरों को इसी तरह पार कर ग्रामीण अपने घरों को पहुंचते हैं। स्कूली बच्चों को भी इन दिनों स्कूल पहुंचने के लिए रोज ट्रॉली में लटककर जाना पड़ता है। इस नदी पर बना सस्पेंशन पुल भी 2013 की आपदा में बह चुका है। साल 2020 में यहां इस ट्रॉली सिस्टम से नदी पार करते हुए नीचे गिरने की वजह से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। जबकि पिछले साल नवंबर में कक्षा 6 में पढ़ने वाली दीपा चंद ट्रॉली से गिरकर घायल हो चुकी है।
बंगापानी क्षेत्र के घुरुंडी, मनकोट, भयाला और घांघली गांव के लोग वैसे भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। उस पर नदी पार करने की दुश्वारी। नतीजा यह है कि यहां युवाओं की शादी को लेकर भी दिक्कतें आ रही हैं। लोग अपने बच्चों की शादी घुरुंडी, मनकोट, भायला और घांघली जैसे रिमोट गांवों में करने से कतराते हैं, नहीं करना चाहते। इसका कारण है कि इन गांवों तक पहुंचने के लिए उन्हें एक जोखिम भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है।
गोरी नदी के ऊपर 100 मीटर केबल पर दो सीटों वाली इस लोहे की ट्रॉली के ठीक नीचे छोटे-छोटे चट्टानों से गुजरती लहराती हुई नदी को देखकर लोग अपने बच्चों की शादी घुरुंडी, मनकोट, भयाला और घांघली जैसे गांवों में नहीं करना चाहते। कुछ लोगों ने इन गांवों में शादियां तय कीं लेकिन जब उन्हें पता चला कि धागे में बंधी दो सीटों वाली ट्रॉली पर बैठकर नदी पार करने के बाद वे उस गांव में पहुंच सकेंगे, तो उन्होंने वहां ब्याह कराने का ख्याल छोड़ दिया।
एक ग्रामीण का कहना है कि अगर उस इलाके में बारात ले जाई जाती है तो सिर्फ नदी पार करने में ही चार घंटे से ज्यादा लग जाएंगे, क्योंकि ट्रॉली में एक बार में सिर्फ दो लोग जा सकते हैं। अक्सर हम वर पक्ष के लोगों से कह देते हैं कि बारात को 20-25 लोगों में समेटकर रखें। कुछ हैं जो बात मानते हैं। कुछ लोग नहीं मानते तो रिश्ता नहीं होता है।
पिथौरागढ़ जिले से ही सटा उत्तराखंड का एक और जिला है बागेश्वर। इस जिले के आठ गांवों के सैंकड़ों बच्चे स्कूल पढ़ने के लिए पिथौरागढ़ के नाचनी कस्बे में आते हैं। इन गांवों के लोगों का बाजार भी नाचनी ही है। इन ग्रामीणों को नाचनी आने के लिए जो रामगंगा नदी पार करनी होती है, उसकी भी कमोवेश यही कहानी है। इन 8 गांवों के बच्चों को जान हथेली पर रखकर रामगंगा नदी को पार करना पड़ रहा है।
इन गांवों के अभिभावक भी हर रोज दो वक्त ट्राली के भारी भरकम रस्से अपने हाथों से खींचकर अपने बच्चों को एक पार से दूसरे पार नदी पार कराकर भेजते हैं। मानसून काल के दौरान इन लोगों को रामगंगा नदी पर लगी ट्राली के जरिए पिथौरागढ़ पहुंचना होता है। ट्राली भारी भरकम रस्सों के जरिए खींची जाती है। इस क्षेत्र के लोग भी वर्षों से रामगंगा नदी पर पुल बनाए जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन आज तक न तो बागेश्वर जनपद ने और नहीं पिथौरागढ़ जनपद ने इस दिशा में कोई पहल की है।