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डिजिटल इंडिया के नारे के बीच इंटरनेट बंदी में विश्वगुरु बना भारत, 2022 में कश्मीर में सबसे ज्यादा बार की गयी नेटबंदी

Janjwar Desk
1 March 2023 10:38 AM GMT
डिजिटल इंडिया के नारे के बीच इंटरनेट बंदी में विश्वगुरु बना भारत, 2022 में कश्मीर में सबसे ज्यादा बार की गयी नेटबंदी
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file photo

स्वतंत्र आवाजों को दबाने के लिए लगातार ऑनलाइन सेंसरशिप और इन्टरनेट बंदी का सहारा लिया जा रहा है, यह अमानवीय है और मानवाधिकार का हनन भी, जम्मू कश्मीर में इन्टरनेट बंदी के सफल परीक्षण के बाद तो अब पूरे देश में यह प्रयोग चालू है इसीलिए तो मोदीराज में हम इंटरनेट बंदी में विश्वगुरु बन चुके हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

India is the global leader in internet shutdowns and suspension of mobile internet continuously for the past 5 years. इन्टरनेट बंदी के मामले में भारत पिछले 5 वर्षों से विश्वगुरु है। हाल में ही इन्टरनेट के सभी मामलों पर पैनी नजर रखने वाली न्यूयॉर्क स्थित संस्था, एसेस नाउ के अनुसार वर्ष 2022 के दौरान दुनिया के कुल 35 देशों में इन्टरनेट बंदी के 187 मामले दर्ज किये गए। इसमें से इन्टरनेट बंदी के सर्वाधिक 84 मामले, भारत में दर्ज किये गए। इसमें से अधिकतर मामले कश्मीर में दर्ज किये गए, जहां की खबरों को सत्ता किसी भी कीमत पर दबाना चाहती है।

हमारे प्रजातंत्र की माँ वाले और अमृतकाल में डूबे देश में सरकारी तौर पर किस कदर अभिव्यक्ति की आवाज और विरोधियों के स्वर कुचलने के लिए इन्टरनेट बंदी को घातक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, इसका सटीक आकलन इस रिपोर्ट से होता है। वर्ष 2022 में कुल 87 इन्टरनेट बंदी के साथ पहले स्थान पर भारत के बाद महज 18 इन्टरनेटबंदी के मामलों के साथ दूसरे स्थान पर घोषित निरंकुश देश ईरान है, जो पिछले वर्ष लगातार आन्दोलनकारियों का दमन करता रहा।

तीसरे स्थान पर सैनिक शासन वाला देश म्यांमार है, जहां इन्टरनेटबंदी महज 7 बार की गयी। रूस ने कुछ मौकों पर अपने देश में भी इन्टरनेटबंदी की, पर अपने देश से अधिक यानि 22 बार यूक्रेन के अपने कब्जे वाले क्षेत्रों में किया, जिससे इन क्षेत्रों के नागरिकों तक सही खबरें नहीं पहुँच पायें।

वर्ष 2022 में इन्टरनेटबंदी कुल 35 देशों में की गयी, देशों की यह संख्या वर्ष 2016 के बाद से सबसे अधिक है। एसेस नाउ वर्ष 2016 से लगातार वैश्विक स्तर पर इन्टरनेटबंदी का लेखा-जोखा प्रकाशित करता रहा है। वर्ष 2021 में दुनिया के कुल 34 देशों में इन्टरनेट बंदी के 182 मामले सामने आये, जिसमें अकेले भारत का योगदान 106 बार इन्टरनेट बंदी का रहा और इससे सरकारी खजाने को 60 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। इस 106 बंदी में से 85 बंदी अकेले जम्मू कश्मीर क्षेत्र में की गयी। भारत और दूसरे देशों में इन्टरनेट बंदी के मामलों में व्यापक अंतर रहता है। वर्ष 2021 में दूसरे स्थान पर 15 बंदी के साथ म्यांमार था, इसके बाद तीसरे स्थान पर 5 बंदी के साथ ईरान और सूडान थे। कोविड 19 के वर्ष 2020 में यह संख्या 159 थी।

इन्टरनेट बंदी का मुख्य कारण निरंकुश सत्ता द्वारा विरोध के स्वर दबाने, मानवाधिकार हनन और जनता के दमन को छुपाने और आन्दोलनों को कुचलने के लिए किया जाता है। कभी-कभी चुनावों के समय की खबरों को छुपाने के लिए और परीक्षाओं के से भी इसका उपयोग किया जाता है। एसेस नाउ के अनुसार वर्ष 2022 के दौरान कुल 5 देशों ने ही चुनावों के दौरान इन्टरनेट बंदी की, जबकि वर्ष 2021 में ऐसा 12 देशों ने किया था। रिपोर्ट के अनुसार इस घटती संख्या से हमें खुश नहीं होना चाहिए, क्योंकि अनेक देशों में इस वर्ष चुनाव होने हैं, जिन्होंने पिछले चुनावों के दौरान इन्टरनेटबंदी की थी। ऐसे देशों में पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, ग्वाटेमाला और ज़िम्बाब्वे प्रमुख हैं।

जनवरी 2023 में इन्टरनेट बंदी पर नजर रखने वाली संस्था सर्फशार्क वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क ने भी अपने वार्षिक विश्लेषण को प्रकाशित किया था। इसके अनुसार वर्ष 2022 में देश के जम्मू कश्मीर क्षेत्र में 24 बार इन्टरनेट की सेवायें सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गईं, जो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सर्वाधिक है और पूरी दुनिया में जितनी इन्टरनेट बंदी की गयी, उसका 31 प्रतिशत है।

इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया की आधी से अधिक आबादी, यानि लगभग 4.2 अरब आबादी ने इन्टरनेट बंदी का सामना किया है। इसमें भारत के बाद रूस और इरान सबसे आगे हैं। रूस ने यूक्रेन युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया है, साथ ही सोशल मीडिया और मोबाइल नेटवर्क को भी बंद या बाधित किया है। रूस की सरकार ने यह सब अपने नागरिकों तक यूक्रेन युद्ध की सटीक जानकारी को रोकने के लिए किया है। दूसरी तरफ ईरान में सरकार के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन के बाद से इन्टरनेट सेवायें अधिकतर क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर क्षेत्र को छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में वर्ष 2022 के दौरान 10 बार इन्टरनेट बंदी की गयी। देश में इन्टरनेट बंदी का सरकारी कारण जनता को अफवाह से बचाना बताया जाता है, पर वास्तविकता यह है कि इसके कारण सामाजिक नहीं, बल्कि विशुद्ध तौर पर राजनीतिक होते हैं, और इनका उपयोग सरकार के विरुद्ध सामाजिक प्रतिरोध और आन्दोलनों को दबाने के लिए किया जाता है।

जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता वर्ष 2019 में छीनने और इसे राज्य से केंद्र-शासित प्रदेश में परिवर्तित करने के बाद से ही वहां इन्टरनेट पर लगभग लगातार प्रतिबन्ध रहा है। 5 अगस्त 2019 से पूरे क्षेत्र में इन्टरनेट के साथ ही मोबाइल और टेलीफोन सेवा भी स्थगित कर दी गयी थी। जनवरी 2020 में मोबाइल इन्टरनेट और 2-जी सेवा बहाल की गयी, पर हाईस्पीड इन्टरनेट की सेवा 18 महीनों बाद फरवरी 2021 में बहाल की गयी। दुनिया के किसी भी निरंकुश तानाशाही वाले देश में भी इतनी लम्बी इन्टरनेट बंदी कभी नहीं की गयी।

सरकार लगातार जम्मू कश्मीर में बेहतर स्थिति और सामाजिक बदलाव की बात करती है, पर इन्टरनेट बंदी को बार बार लागू करने का सरकारी निर्णय ही इस दावे की पोल खोल देता है। जाहिर है सरकार वहां के लोगों को देश की आबादी से अलग रखना चाहती है और वहां की स्थिति को दुनिया के सामने किसी भी स्थिति में नहीं लाना चाहती है। इन्टरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत सरकार स्वतंत्र आवाजों को दबाने के लिए लगातार ऑनलाइन सेंसरशिप और इन्टरनेट बंदी का सहारा लेती है – यह अमानवीय है और मानवाधिकार का हनन भी। जम्मू कश्मीर में इन्टरनेट बंदी के सफल परीक्षण के बाद तो अब पूरे देश में इसका व्यापक प्रयोग किया जाने लगा है।

यह एक विचित्र तथ्य यह है कि वर्ष 2014 के बाद से सत्ता में काबिज बीजेपी सरकार हरेक सरकारी सुविधा और योजनायें ऑनलाइन कर चुकी है, या फिर करने की प्रक्रिया में है और यही सरकार इन्टरनेट बंदी के सन्दर्भ में भारत को विश्वगुरु बना चुकी है। हमारे प्रधानमंत्री जी इन्टरनेट की 5-जी सेवा बड़े तमाशे से शुरू करते हैं, इसे देश की उपलब्धि बताते हैं। बताते हैं कि इससे फ़िल्में कितने सेकंड में अपलोड हो जायेंगी – पर इन्टरनेट सेवा बंद करने का ख़याल भी सबसे अधिक उन्हीं को आता है।

हमारे देश में न्यायालयों के आदेशों की धज्जिया कैसे खुले आम उडाई जाती हैं यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण भी है। सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2020 में कहा था कि इन्टरनेट सेवा नागरिकों का मौलिक अधिकार है और बिना किसी उचित कारण के इसे ठप्प नहीं किया जा सकता है, और ना ही अनिश्चितकाल के लिए यह सेवा कहीं प्रतिबंधित की जा सकती है। पर, सरकारें लगातार ऐसा ही कर रही हैं।

हमारा देश दुनिया के उन चुनिन्दा 18 देशों में शामिल है जो मोबाइल इन्टरनेट सेवा भी प्रतिबंधित करते हैं। हमारे देश में वर्ष 2012 से 2022 के बीच 683 बार इन्टरनेट बंदी की गयी है, जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। वर्ष 2022 के पहले 6 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में किये गए इन्टरनेट बंदी के मामलों में से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले भारत में थे।

हमारे देश में इन्टरनेट बंदी चुनावों, आंदोलनों, धार्मिक त्योहारों और यहाँ तक कि परीक्षाओं के नाम पर भी की जाती है। पर आज तक कोई भी अध्ययन यह नहीं बता पाया है कि इन्टरनेट बंदी का कोई भी असर क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर पड़ता है। जाहिर है इन्टरनेट बंदी का उपयोग हमारे देश में सत्ता द्वारा जनता के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर किया जा रहा है, एक ऐसा हथियार जिसकी आवाज नहीं है पर निशाना अचूक है।

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