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रोना विल्सन के लैपटॉप में 10 नहीं 32 डॉक्यूमेंट डाले गए थे, वॉशिंगटन पोस्ट का दावा
![रोना विल्सन के लैपटॉप में 10 नहीं 32 डॉक्यूमेंट डाले गए थे, वॉशिंगटन पोस्ट का दावा रोना विल्सन के लैपटॉप में 10 नहीं 32 डॉक्यूमेंट डाले गए थे, वॉशिंगटन पोस्ट का दावा](https://janjwar.com/h-upload/2021/04/23/462044-rona-wilson.jpg)
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय का विश्लेषण
जनज्वार। भीमा कोरेगांव काण्ड के नाम पर मोदी सरकार के नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी ने मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में खड़े लीगों को, जिसमें बहुत बुजुर्ग और अशक्त लोग भी हैं, लम्बे समय से जेल में डाला है। उन्हें आतंकवादी बताया गया और कहा गया कि इन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या का षड्यंत्र रचा। रोना विल्सन के लैपटॉप से ई-मेल भी अचानक बरामद कर लिए गए, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के हत्या की साजिश रचने की बात कही गयी थी।
रोना विल्सन शुरू से ही कहते रहे थे कि उन्हें ई-मेल की और सम्बंधित फाईलों की जानकारी नहीं है और इसे किसी और ने उनके लैपटॉप में डाला है। फरवरी में अमेरिका के मेस्सचुस्सेट्स स्थित प्रतिष्ठित डिजिटल फोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने जांच के बाद पाया था कि विल्सन के लैपटॉप में 10 फाईलें मैलवेयर द्वारा डाली गईं थीं, इन दस फाईलों में वह बहुचर्चित ई-मेल भी शामिल था, जिसमें एनआईए के अनुसार प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश बात कही गयी थी। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार इन फाईलों को लैपटॉप में किसने डाला यह पता नहीं किया जा सका है। इस समाचार को सबसे पहले अमेरिका के प्रतिष्ठित समाचारपत्र वाशिंगटन पोस्ट ने उजागर किया था, पर हमारे देश में ऐसी खबरों का क्या हश्र होता है, यह सभी जानते हैं।
वाशिंगटन पोस्ट ने 20 अप्रैल को फिर से इस विषय में समाचार प्रकाशित किया है, Further evidence in case against Indian activists accused of terrorism was planted, new report says। इस समाचार के अनुसार आर्सेनल कंसल्टिंग ने एनआईए कोर्ट में 27 मार्च को अपनी दूसरी रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार पहले की 10 फाईलों के अतिरिक्त 22 दूसरे डॉक्यूमेंट भी रोना विल्सन के लैपटॉप में मैलवेयर के माध्यम से डाले गए थे।
रिपोर्ट के अनुसार यह काम किसने किया है, इसका पता नहीं चल पाया है। इस रिपोर्ट से यह चिंता तो स्वाभाविक है की मोदी सरकार अपने विरोधियों का दमन करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ शुरू से ही इस मुकदमे को मोदी सरकार की साजिश बताते रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार मोदी के भारत में विरोध का दायरा संकुचित हो चला है, विरोध करने वाले पत्रकारों, एक्टिविस्ट और आंदोलकारियों को या तो जेल में ठूंस दिया जाता है, या फिर तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है।
भीमा कोरेगांव के नाम पर अब तक एक शिक्षाविद, एक अधिवक्ता, एक जनकवि, एक जूरिस्ट पादरी और दो गायकों को जेल में डाला गया है, जहां तीन साल भी इस मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं की गयी है। जेल में बंद सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज के सबसे पिछड़े वर्ग के बीच काम करने के लिए जाने जाते हैं और सरकार की नीतियों के मुखर विरोधी रहे हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के वकील ने फरवरी में ही आर्सेनल की पहली रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत कर दी थी, पर इस पर सुनवाई अब तक नहीं की गयी है।
एनआईए की प्रवक्ता जया रॉय के अनुसार एनआईए को अपनी जांच में मैलवेयर से समन्धित कोई जानकारी नहीं मिली, और किसी प्राइवेट कंपनी की जांच के आधार पर हम फिर से जांच नहीं करेंगे। दूसरी तरफ वाशिंतों पोस्ट ने अपनी तरफ से पहली रिपोर्ट को मैलवेयर और डिजिटल फोरेंसिक के तीन अमेरिकी विशेषज्ञों से और दोनों रिपोर्ट की जांच एक अलग विशेषज्ञ से कराई और हरेक विशेषज्ञ ने इसे सही माना।
हमारा देश इस दौर में मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में अतुलनीय है, यहाँ तक कि चीन और रूस भी हमारे तुलना में बहुत पीछे छूट गए हैं। यहाँ मानवाधिकार कार्यकर्ता सबसे पहले आतंकवादी, माओवादी और देशद्रोही बताकर बिना किसी आरोप या सबूत के ही जेल में डाल दिए जाते हैं। मीडिया और सोशल मीडिया उन्हें तरह तरह से अपराधी करार देने की साजिश रचता है। फिर पुलिस और जांच एजेंसियाँ उनके विरुद्ध आरोपों का आविष्कार फेक वीडियो, फेक सीडी, फेक फोनकॉल्स या फिर लैपटॉप में अपनी तरफ से कुछ डाक्यूमेंट्स डाल कर करती हैं। फिर सालोंसाल सुनवाई में लगते हैं। इनमें से कुछ आरोपी तो बिना सुनवाई के ही जेल में बंद रहते दम तोड़ देते हैं, शेष अनेक वर्ष बाद सबूतों के अभाव में बरी हो जाते हैं। इस न्यू इंडिया में ऐसी लम्बी फेहरिस्त है।