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Up Election 2022

UP Election 2022: आरक्षित सीटों पर जिसका कब्जा सत्ता उसके हाथ, 65 बना मैजिक अंक, जानिए, क्या कहते हैं आंकड़े

Janjwar Desk
31 Dec 2021 9:22 AM GMT
UP Election 2022: आरक्षित सीटों पर जिसका कब्जा सत्ता उसके हाथ, 65 बना मैजिक अंक, जानिए, क्या कहते हैं आंकड़े
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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव की अगले कुछ दिनों में अधिसूचना जारी होने के आसार हैं। ऐसे में चुनावी तैयारी सभी दलों ने तेज कर दी है। ऐसे में सबकी निगाहे राज्य की अनुसुचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित 86 सीटों पर है।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव की अगले कुछ दिनों में अधिसूचना जारी होने के आसार हैं। ऐसे में चुनावी तैयारी सभी दलों ने तेज कर दी है। ऐसे में सबकी निगाहे राज्य की अनुसुचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित 86 सीटों पर है। सबका मानना है कि आरक्षित सीटों में से 65 फीसदी से अधिक सीटें जीतने वाला ही यूपी में सरकार बनाता है। अर्थात सर्वाधिक आरक्षित सीटों पर कब्जा जमानेवाले के हाथ ही सत्ता की चाभी आई है। ऐसे में कह सकते हैं कि यूपी की सियासत अपने पक्ष में करने के लिए 65 प्रतिशत एक जादूई अंक है। इसे देखते हुए सत्ता से लेकर विपक्ष सभी इन सीटों पर नजर गड़ाए हुए हैं।

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं। इनमें से 84 सीटें एससी और 2 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। हर राजनीतिक दल इन सीटों के लिए अलग से रणनीति बनाता है। क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता पाने के लिए ये 86 सीटें बहुत जरूरी हैं। पिछले कई चुनावों के परिणाम का आकलन करने पर यह कयास सच साबित होता है।

2017 के चुनाव में विधानसभा चुनाव में रिजर्व सीटों की संख्या 86 हो गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूपी में पहली बार दो सीटें एसटी के लिए आरक्षित की गई थीं। दोनों सीटें सोनभद्र जिले में हैं। बीजेपी ने इनमें से 70 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसने एससी वर्ग की 69 और एसटी वर्ग की 1 सीट जीती थी। वहीं सपा ने 7, बसपा ने 2 और 1 सीट निर्दलीय ने जीती थी। अपना दल ने 3 सीटें जीती थीं। इनमें से 2 एससी और 1 एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सीट थी। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अपना दल और एसबीएसपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इस तरह बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने 88 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज की थी।

इसके पहले वर्ष 2012 के चुनाव की बात करें तो, उस समय विधानसभा में 85 सीटें रिजर्व थीं। उस चुनाव में सपा ने इनमें से 58, बसपा ने 15, कांग्रेस ने 4, बीजेपी ने 3, आरएलडी ने 3 और निर्दलियों ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। सपा ने इस चुनाव में रिजर्व कैटेगरी की 68 फीसदी सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में अपने दम पर बहुमत लाकर पहली बार सरकार बनाई थी।

वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में एससी के लिए 89 सीटें रिजर्व थीं। उस साल के चुनाव में बसपा ने 61 रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज की थी। सपा ने 13, बीजेपी ने 7, कांग्रेस ने 5, आरएलडी ने 1, राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी ने 1 और निर्दलीय ने 1 सीट पर जीत दर्ज की थी। बसपा ने 69 फीसदी रिजर्व सीटों पर जीत दर्ज की थी और राज्य में सरकार का गठन की थी। इसी तरह वर्ष 2002 के चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक आरक्षित सीटों में से 35 पर जीत मिली थी। इसके अलावा सपा को 18 व बसपा को 24 सीट पर विजय मिली थी। यूपी के वर्ष 1996 के चुनाव परिणामों की बात करें तो आरक्षित कुल 93 सीटों में से भाजपा के हिस्से 36 व बसपा के हिस्से 20 सीटें आई थी। जबकि सपा को 18 सीटों से संतोष करना पड़ा था। ऐसे में भाजपा सरकार गठन करने में पहली बार कामयाब हुई थी। इसी क्रम में वर्ष 1993 के चुनावी नतीजों के मुताबिक भाजपा को 38,सपा व बसपा को 23-23 सीटें मिली थी। हालांकि बसपा से गठबंधन कर सपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।

आरक्षित सीटों को लेकर सभी दलों की अपनी रणनीति

यूपी के पूरब व पश्चिमी हिस्से को बाट कर आकलन करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 21 आरक्षित सीटों की संख्या है। जिस पर अपने पक्ष में समीकरण साधने में राजनीतिक दल जुट गए हंै। ब्राह्मण-अनुसूचित जाति का समीकरण साधने के लिए बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सम्मेलन कर चुके हैं। रामपुर मनिहारन, सहारनपुर ग्रामीण, पुरकाजी, खैर, इगलास, जलेसर, नहटौर, नगीना, धनौरा, हापुड़,हस्तिानपुर, खुर्जा, आगरा देहात, आगरा कैंट, टूंडला, किशनी, बलदेव, फरीदपुर, पूरनपुर, पुवायां सीट पर विशेष नजर है। इन सभी सीटों पर जहां दलितों की संख्या काफी है, तो ब्राह्मण भी इस भूमिका में हैं कि वे चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। बसपा की मंशा इन सीटों पर ब्राह्मणों को साथ जोड़ने की है ताकि उसकी मंजिल आसान हो जाए। हालांकि बसपा इन सीटों पर जाट और मुस्लिमों को भी जोड़ने की बात कर रही है, पर इन जातियों को जोड़ने के लिए बसपा के पास कोई प्रमुख चेहरा नहीं है। उधर इस पूरे अभियान में सपा रालोद के मदद से काफी मजबूती से लगी है और इसे पिछले चुनाव के अपेक्षा अच्छी सफलता की उम्मीद है। भाजपा खास तौर पर दलित मतदाताओं पर नजर गड़ाए हुए है। सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार किया तो इसका खास ख्याल रखा और दलितों को तरजीह दी। सुरक्षित सीटों से जीतकर आए विधायकों को मंत्री बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भाजपा दलितों का खास ख्याल रख रही है। भगवा खेमे की पूरी मंशा आरक्षित वर्ग के साथ वैश्य, ठाकुर, गुर्जर, ब्राह्मण, त्यागी, अति पिछड़ा वर्ग को साथ लाने की है। हालांकि किसान आंदोलन से प्रभावित रहे क्षेत्रों में भाजपा को आशातित सफलता के आसार कम नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में पासा पलटने के लिए पार्टी के सभी जनसंगठनों को प्रमुखता से जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस भी ऐसे ही समीकरण बनाने में जुटी है।लखीमपुर क्षेत्र में पंजाब के सीएम चरण सिंह चन्नी ने जिस तरह से कई बार अपनी आमद दर्ज कराई, उससे भी कांग्रेस की रणनीति साफ हो जाती है।

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