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Uttarakhand Election 2022 : उत्तराखण्ड में अपना ही किला बचाने की जद्दोजहद में फंसे तीनों सेनापति
उत्तराखण्ड में अपना ही किला बचाने की जद्दोजहद में फंसे तीनों सेनापति
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Uttarakhand Election 2022 : राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election 2022) में सियासत के जिन दिग्गजों पर अपने दलों को जिताने की जिम्मेदारी है, वह खुद राजनैतिक चक्रव्यूह में फंस चुके हैं। दूसरी विधानसभाओं में अपने प्रत्याशियों की नैय्या पार लगाने की जो उम्मीदें पार्टी उनसे कर रही है, उन पर खरा उतरने के लिए अपनी ही विधानसभा में घिरे पार्टियों के सेनापति अपनी विधानसभा से बाहर निकलने में असहज हो रहे हैं।
खटीमा विधानसभा से चुनावी भंवर में फंसे भारतीय जनता पार्टी के सेनानायक व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) हो या लालकुआं से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) या फिर गंगोत्री विधानसभा में फिरकी बने आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरा कर्नल अजय कोठियाल (Ajay Kothiyal) हो, सब एक ही जैसी स्थिति में अपने को फंसा महसूस कर रहे हैं।
पहले बात सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) की करें तो भाजपा यह चुनाव ही युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम पर लड़ रही है। खुद धामी खटीमा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से वह लगातार दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। इस बार यहां से कांग्रेस (Congress) के भुवन कापड़ी और आप के एसएस कलेर चुनाव मैदान में हैं। धामी के सामने अपनी सीट निकालने के साथ-साथ पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने की बड़ी जिम्मेदारी भी है। जिस प्रकार से धामी यहां पहले भी जीत दर्ज कर चुके हैं। उस लिहाज से उन्हें अपनी सीट को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं होना चाहिए था। लेकिन उनके सामने "खण्डूरी है, जरूरी" का उदाहरण सामने है। जब अतिआत्मविश्वास में मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी ही पार्टी के भुवनचन्द्र खण्डूरी कोटद्वार से चुनाव हार गए थे। लिहाजा धामी कोई चूक न करते हुए पिछले कई दिनों से खटीमा में ही डटे हैं। जबकि उन्हें चुनावी रंग में प्रदेश भर में अपने प्रत्याशियों की मदद के लिए पहुंचना चाहिए था। हालांकि फुरसत मिलते ही धामी खटीमा से बाहर निकलते हैं, लेकिन ज्यादातर वह खटीमा में ही व्यस्त हैं।
उत्तराखण्ड का चुनाव कुछ विधानसभाओं को छोड़कर अमूमन पहले से ही कांग्रेस-भाजपा के बीच ही सिमटता रहा है। इस बार भी कांग्रेस भाजपा से सत्ता छीनने की आक्रमकता के साथ इस चुनाव में है। कांग्रेस प्रचार समिति के अध्यक्ष व पूर्व सीएम हरीश रावत जो पार्टी का मुख्य चेहरा हैं, इस बार लालकुआं विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। यहां उनके सामने भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट, कांग्रेस से बगावत कर संध्या डालाकोटी निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। पुष्कर धामी की ही तरह हरीश रावत पर भी प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशी की मदद का दारोमदार है। लेकिन वह भी इस बार लालकुआं से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।
इससे पहले के चुनाव में मुख्यमंत्री रहते दो-दो विधानसभाओं से अप्रत्याशित तौर पर चुनाव हारकर अपने हाथ झुलसा बैठे रावत इस बार इसी एक विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। अलबत्ता उन्होंने अपनी पुत्री को हरिद्वार ग्रामीण से पार्टी प्रत्याशी बनवा कर उन्हें स्टैंडबाई पर जरूर रखा है। लेकिन वह अपनी भी सीट से कोई चूक करने के मूंड में नहीं हैं। खास तौर से उस समय जब उन्हीं की पार्टी से बगावत करने वाली संध्या डालाकोटी के साथ वह चक्रव्यूह में फंसे हैं। अन्य दलों से तोड़-फोड़ कर संध्या के रूप में हुए नुकसान की भरपाई कर रहे रावत भी लालकुआं के अलावा हरिद्वार ग्रामीण में अपनी पुत्री अनुपमा रावत के अतिरिक्त शायद ही किसी की कोई मदद कर पा रहे हों।
विधानसभा चुनाव से पहले जोर-शोर से सियासी सर्जिकल स्ट्राइक से उत्तराखण्ड में एंट्री करने वाली आम आदमी पार्टी की मुश्किलें ठीक चुनाव के दौरान सामने आनी शुरू हुईं। अपने तीखे सवाल व दिल्ली मॉडल पर केंद्रित विकास के बूते राज्य में जड़ें जमाने की कोशिशों में लगी आप टिकट बंटवारे के बाद पशोपेश में पड़ गयी। कई मुख्य चेहरों ने पार्टी को छोड़ दिया। जो पार्टी के लिए सिर मुंडाते ही ओले पड़ने सरीखी स्थिति बन गयी। नई पार्टी जो सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ रही थी, उसमें नकारात्मकता का पक्ष भी जुड़ने लगा। लोगों का जो आप के प्रति स्वतस्फूर्त उत्साह था, वह ठंडा पड़ने लगा। जिसमें फंसकर पार्टी अपने मुख्यमंत्री चेहरे कर्नल अजय कोठियाल को छोड़कर कोई ऐसा चेहरा विकसित नहीं कर पाई। जिसका चित्र देखते ही लोगों के जहन में उसका नाम खुद आ जाये।
आप का यह मुख्य चेहरा उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री विधानसभा सीट से चुनाव में है। इस सीट से कांग्रेस के विजय पाल सजवांण और भाजपा से सुरेश चौहान चुनावी मैदान में हैं। कोठियाल पहली बार चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। उनके सामने गंगोत्री से सियासी सर्जिकल स्ट्राइक कर मिथक तोड़ने की चुनौती है। गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क करने में जुटे हैं। राजनीति से बहुत ज्यादा वास्ता न रहने की वजह से कोठियाल अभी अपनी ही विधानसभा में धरातल की राजनीति का क-ककहरा सीखने की कोशिश में हैं। इस सूरत में अपनी विधानसभा से निकलकर पार्टी के अन्य प्रत्याशियों की मदद की अपेक्षा उनके साथ ज्यादती ही होगी।
आम आदमी पार्टी अभी प्रथम पंक्ति के नेताओं का विकास भी पूरी तरह नहीं कर पाई। इसलिए यहां सेकेंड लाइन की जिक्र लायक कोई लीडरशीप नहीं है। अलबत्ता कांग्रेस-भाजपा में देखा जाए तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल श्रीनगर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में हैं। उनका मुकाबला भाजपा प्रत्याशी व कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत से है। कांग्रेस की सत्ता में वापसी और खुद का दुर्ग बचाने के लिए वे दोहरे दबाव में हैं। गोदियाल भी प्रचार के लिए अपने क्षेत्र तक में ही सिमट कर रह गए हैं।
वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के पांव भी धर्मनगरी हरिद्वार के समर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हरिद्वार सीट पर कांग्रेस से सतपाल ब्रह्मचारी चुनाव मैदान में हैं। प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन से कौशिक को कैबिनेट पद से हटाकर संगठन में बतौर प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनका यह पहला विधानसभा चुनाव है, लेकिन वे अपने दुर्ग को सुरक्षित करने में ही अधिक समय दे रहे हैं।
कुल मिलाकर उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में जिन सियासी सेनापतियों के ऊपर प्रदेश भर में अपनी सेना की हौसला अफजाई की जिम्मेदारी है। वह केवल अपने किले को बचाने की लड़ाई में ऐसे घिरे हैं कि वह चाहकर भी बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। यह स्थिति किसी एक दल के सामने नहीं, मुख्य रूप से सभी दलों के सामने है।