Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

मोदीराज में आजादी का अमृत महोत्सव हो चुका है पूरी तरह इवेंट में तब्दील, तिरंगे के साथ सेल्फी आजादी का प्रतीक

Janjwar Desk
15 Aug 2023 4:36 PM IST
मोदीराज में आजादी का अमृत महोत्सव हो चुका है पूरी तरह इवेंट में तब्दील, तिरंगे के साथ सेल्फी आजादी का प्रतीक
x

मोदीराज में आजादी का अमृत महोत्सव हो चुका है पूरी तरह इवेंट में तब्दील, तिरंगे के साथ सेल्फी आजादी का प्रतीक

हमने आजादी को वर्षों में तोलना शुरू कर दिया है, अमृत वर्ष मनाने लगे हैं और इसे पूरी तरह एक इवेंट में तब्दील कर दिया है। तिरंगा हरेक घर पर फहराने का आह्वान स्वयं प्रधानमंत्री करते हैं, फोन उठाते ही तिरंगे के साथ सेल्फी खींचकर अपलोड करने का लंबा सा मैसेज सुनाई देता है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Just think about it on Independence Day – are we really free? स्वाधीनता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्रपति ने अपने भाषण के शुरू में ही इस दिन को पूरे देश का उत्सव बताया। पर बड़ा सवाल है - क्या मणिपुर की आबादी को यह दिन उत्सव जैसा प्रतीत होगा, क्या वहां के लोग भी स्वाधीनता दिवस के दिन उतने ही खुश रहेंगें जितने शेष भारत के लोग? क्या आजादी हरियाणा के नूंह और गुड़गाँव के उन लोगों को भी उतनी ही उत्सव जैसी प्रतीत होगी जिन्हें खुलेआम पुलिस वालों के सामने शहर छोड़ने की हिंसक धमकी दी गयी है? क्या बाढ़, फ्लैश फ्लड, भारी बारिश और भूस्खलन से प्रभावित लोग भी बाढ़ में डूबे अपने घरों पर तिरंगा लहरायेंगे?

दरअसल, हमने आजादी को वर्षों में तोलना शुरू कर दिया है, अमृत वर्ष मनाने लगे हैं और इसे पूरी तरह एक इवेंट में तब्दील कर दिया है। तिरंगा हरेक घर पर फहराने का आह्वान स्वयं प्रधानमंत्री करते हैं, फोन उठाते ही तिरंगे के साथ सेल्फी खींचकर अपलोड करने का लंबा सा मैसेज सुनाई देता है। हमारी सत्ता के अनुसार आप भूखे हों, बेरोजगार हों, बाढ़ में डूब रहे हों, दंगों में झुलस रहे हों या देश की नई क़ानून-व्यवस्था के अनुसार आप का घर/दुकान बुलडोजर से ढहाया जा रहा हो – पर अब तिरंगे को घरों पर आड़े-तिरछे लटकाना ही आजादी का प्रतीक है और यही सरकारी आदेश है।

आजादी एक एहसास है, आजादी एक दायित्व है, आजादी एक कर्तव्य है – पर हमारी सरकार के लिए यह एक इवेंट है, महज एक तिरंगा है और स्वाधीनता दिवस के अगले दिन तमाम चैनलों पर बताया जाएगा कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि उनके आह्वान पर देश के करोड़ों घरों पर तिरंगा लटकाया गया। इसके बाद देश की सारी समस्याएं ख़त्म हो जायेगीं और देश सोने की चिड़िया बन जाएगा।

दरअसल देश में मोदी सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज का ओवर-एक्सपोज़र कर दिया है, अब लगभग हरेक जगह और हरेक समय ऊंचा और विशालकाय राष्ट्रीय ध्वज नजर आता है। हरेक जगह और हमेशा नजर आने के कारण अब राष्ट्रीय ध्वज का प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा – पहले जब राष्ट्रीय ध्वज कभी-कभी दिखता तो गर्व होता था, आजाद होने का एहसास होता था।

अब तो तिरंगा यात्रा भी निकालने लगी है जिसमें सभी ट्रैफिक नियमों की खुलेआम धज्जियां उडाई जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय ध्वज तो एक धर्म-विशेष के धार्मिक आयोजनों से पूरी तरह से जुड़ गया है। कांवड़ यात्रा में राष्ट्रीय ध्वज, शोभा यात्रा में राष्ट्रीय ध्वज, तमाम कथाओं में राष्ट्रीय ध्वज और दूसरे धार्मिक आयोजनों का भी यही हाल है। एक धर्म-निरपेक्ष देश में केवल एक धर्म विशेष के तथाकथित धार्मिक आयोजनों में राष्ट्रीय ध्वज के उपयोग/दुरूपयोग पर किसी का ध्यान नहीं जाता। तमाम शोभायात्राओं में हथियारों से लैस हाथों में राष्ट्रीय ध्वज नजर आता है। देश की आजादी का मतलब तो संसद के हरेक सत्र में हरेक दिन नजर आता है।

हाल में ही मणिपुर हिंसा पर अविश्वास प्रस्ताव में तो आजादी के साथ ही प्रजातंत्र की भी धज्जियां उड़ गईं। मणिपुर से सम्बंधित अविश्वास प्रस्ताव में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री समेत पूरे सत्ता पक्ष के वक्तव्यों में बस एक विषय पूरी तरह से गायब था – मणिपुर। उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री या गृह मंत्री अपनी नाकामियों के लिए करुणा रस और फिर स्थितियों को बदलने के लिए वीर रस का वक्तव्यों में उपयोग करेंगें – पर घंटों चले वक्तव्यों में यही दो रस नहीं थे। इसके बदले सत्ता पक्ष के वक्तव्यों में हास्य, भयानक, रौद्र और वीभत्स रस के साथ ही फ्लाइंग किस भी मौजूद था। अब तो संसद में मोदी-मोदी और जय श्री राम का जयकारा राष्ट्रगान की तरह सुनाई देता है।

देश का एक बड़ा तबका भले ही अपने आप को आजाद मान कर खुश हो रहा हो, पर एक दुखद तथ्य यह है कि यही तबका पूरी तरह मानसिक तौर पर गुलामी की जंजीरों में जकड गया है, और पूरी तरह से विवेक-शून्य हो चला है। इसका उदाहरण हाल में ही तब नजर आया था, जब रेलवे पुलिस का एक जवान जिसका काम यात्रियों की हिफाजत करना था – वही जवान एक ही धर्म के लोगों को ट्रेन की तमाम बोगियों में खोजकर ह्त्या कर रहा था और मोदी-योगी के नारे लगा रहा था। बहुत संभव है कि कुछ वर्षों बाद वही जवान भाजपा का सांसद बन जाये।

मानसिक गुलामी का आलम यह है कि अब तो मेनस्ट्रीम आबादी देश की सभी आर्थिक-सामाजिक समस्याओं को देश का विकास साबित कर रही है। यह आबादी हमें समझा रही है कि महंगाई देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है और बेरोजगार युवा अब तो लोगों को रोजगार देने लगे हैं, पुलिस के फर्जी एनकाउंटर देश के लिए जरूरी हैं और भीड़-हिंसा हमारे इतिहास का अभिन्न अंग है। अपने सगे सम्बन्धियों को कोविड 19 के दौर में ऑक्सीजन की कमी से मरता हुआ देखने वाले भी सत्ता के पक्षधर बन गए हैं। मानसिक गुलामी का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि सत्ता के विरोध की हरेक आवाज अब लोगों को अपना दुश्मन लगने लगी है, जिसे किसी भी तरीके से कुचलने का अधिकार एक समूह को है।

स्वाधीनता दिवस के दिन उत्सव मनाइये, पर एक बार अपनी आजादी का आकलन जरूर करें। एक बार सोचिये कि आप जिसे आजादी समझ रहे हैं वह वाकई आपकी आजादी है, आपके समाज की आबादी है या फिर केवल सत्ता की आजादी है। एक निरंकुश सत्ता हमेशा आजादी का मतलब अपने अनुरूप तय करती है, फिर एक भ्रमजाल बनाती है जिसमें बड़ी आबादी को फंसाकर आजादी की मरीचिका दिखाती है।

एक बार सोचिये – क्या समाज के ध्रुवीकरण या विभाजन से आपको सचमुच कोई फायदा हो रहा है या फिर आप केवल सत्ता की विचारधारा के कारण ऐसा कर रहे हैं। दरअसल मीडिया का काम जनता को सही और गलत बताना है, पर हमारे देश की मीडिया पतित है और अपनी भूमिका भूल चुकी है। जाहिर है, ऐसे में मीडिया को नहीं बल्कि आपको खुद विचार करना होगा कि क्या सही है और क्या गलत है। इस स्वाधीनता दिवस कम से कम आप इतने आजाद तो हो सकते हैं कि अपने मस्तिष्क को हरेक पूर्वाग्रह से मुक्त कर दें और हरेक विषय को सत्ता के नजरिये से नहीं बल्कि समाज के नजरिये से देखें। यह जरूरी नहीं कि केवल अंग्रेज ही हमें गुलाम बना सकते हैं – हमारे अपने भी हमारी आजादी छीन सकते हैं।

Next Story

विविध