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विमर्श

कोरोना मृतकों की बलि लेकर बन रहा सेंट्रल विस्टा, ये कहना 'नए ताजमहल' के शाहजहां की तौहीन

Janjwar Desk
25 May 2021 9:55 AM GMT
कोरोना मृतकों की बलि लेकर बन रहा सेंट्रल विस्टा, ये कहना नए ताजमहल के शाहजहां की तौहीन
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मोदीराज में सेंट्रल विस्टा : आत्मनिर्भर भारत का बड़ा उदाहरण, फिर चाहे देश आखिरी सांसें ही क्यों न गिन रहा हो

ऐसे ही थोड़े ना मोदी जी कहते हैं आत्मनिर्भर बनो, वो करके भी दिखाते हैं, देखो ना क्या प्रोजेक्ट बना है सेंट्रल विस्टा, क्यों बैठें वो अंग्रेजों के बनाये हुए पार्लियामेंट में, खुद ही बनवाएंगे, शिलान्यास करेंगे तब जाकर बैठेंगे....

डॉ. अंजुलिका जोशी की टिप्पणी

जनज्वार। शाहजहाँ ने ताजमहल अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। लेकिन नये भारत के नये बादशाह के पास यह सुविधा नहीं है तो उन्होंने खुद के लिये ही नया महल बनाने की ठानी है। सुना है ताजमहल बनाने में सैकड़ों कारीगरों के हाथ काटे गये थे। नया महल भी हज़ारों लाशों की नींव पर ही तामीर होता प्रतीत हो रहा है।

बड़े दिनों से समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सेंट्रल विस्टा क्यों बन रहा है। बड़े सोच विचार के बाद समझ आया कि जहाँ नेहरू जैसा देशद्रोही बैठता था, वहां अमित शाह, अनुराग ठाकुर, प्रज्ञा साध्वी जैसे सीधे-सादे देशभक्त नेता कैसे बैठ सकते हैं? और हमारे 56 इंच की छाती वाले देशभक्त फ़क़ीर प्रधानमंत्री जी वहां बैठेंगे ? तौबा तौबा ! पहले ही सात साल गुरू घंटालों के साथ बैठ-बैठ कर 56 इंच की छाती 36 इंच की हो गयी है। "और नहीं बस, और नहीं गम के प्याले और नहीं"।

ऐसे ही थोड़े ना मोदी जी कहते हैं आत्मनिर्भर बनो, वो करके भी दिखाते हैं। देखो ना क्या प्रोजेक्ट बना है सेंट्रल विस्टा। क्यों बैठें वो अंग्रेजों के बनाये हुए पार्लियामेंट में ? खुद ही बनवाएंगे, शिलान्यास करेंगे तब जाकर बैठेंगे और सबको दिखा देंगे कि कैसे आत्मनिर्भर बना जाता है। क्या हुआ अगर इसका बजट 20 हजार करोड़ है? जो आदमी 8500 करोड़ के हवाईजहाज पर उड़ता हो वो इतना भी खर्च नहीं करेगा ? और हाँ जरा सोचिये अभी मोदी जी कहाँ रहते हैं ? लोक कल्याण मार्ग और लोक कल्याण से तो उनका दूर-दूर तक नाता नहीं है। ऊपर से वो प्रधान संचालक केंद्रीय सरकार के प्रधान संचालक जो ठहरे। फिर उनका ऑफिस कहाँ होना चाहिए ? दिल्ली के केंद्र में। आखिर वही तो कर रहे हैं, फिर इतना हो हल्ला क्यों, बस एक ही चीज़ की चिंता है कि यह वंडरलैंड जाड़ों में दिखेगा कैसे ? क्योंकि दिल्ली में जनतंत्र से भी बड़ा संकट है प्रदूषण। केजरीवाल जी ने तो कुछ किया ही नहीं इसे रोकने के लिए, इसीलिए तो दिल्ली की सत्ता राज्यपाल को दे दी गयी है। देखिएगा कैसे सब कुछ ठीक कर देंगे वो मोदी जी की तरह चुटकी बजाते ही।

अब इन विपक्षी पार्टियों को क्या कह सकते हैं ? उनका तो काम ही है, हो हल्ला मचाना। अब बताइये वो कह रहे हैं मेडिकल कॉलेज बनवाइये। वो 150 करोड़ में बन जाता है और इतने रुपये में तकरीबन 130 स्टेट ऑफ़ आर्ट हॉस्पिटल बन जायेंगे। 7.14 लाख वेंटीलेटर आ जायेंगे। अब कौन समझाए ऐसे मूर्खों को? जब हमारे पास कोरोना से लड़ने की अचूक दवा है तो फिर हॉस्पिटल क्यों ? बताया है न साध्वी प्रज्ञा जी ने सुबह गोमूत्र सेवन करिये और कोरोना छू मंतर, और नहीं तो गली-गली में हवन का धुआं कर देंगे फिर देखिये कोरोना ऐसे गायब होगा जैसे गधे के सिर से सींग।

कहते हैं कि लोग मर रहे हैं अरे वो तो मरेंगे ही कोई अमरता की बूटी खा कर थोड़े ही आये हैं ? और अर्थव्यवस्था का क्या है, वो तो ऊपर नीचे होती ही रहती है। दो चार दिन की बात है। एक बार ताली और थाली बजवा दी तो सब चार दिन में भूल जायेंगे। वैसे भी हिन्दुस्तानी बहुत भोले होते हैं। राम मंदिर का चूरन चटा देंगे, बुलेट ट्रेन के सपने दिखा देंगे, स्मार्ट सिटी का झुनझुना बजा देंगे और फिर भी कुछ न हुआ तो लच्छेदार बातें कर के मन की बात में कोई सकारात्मक कहानी सुना देंगें । ये सब तो बाएं हाथ का खेल है।

3 हजार करोड़ रूपये सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति, 3500 करोड़ से छत्रपति शिवा जी की मूर्ति, 2500 करोड़ का राम मंदिर, 7000 करोड़ की बुलेट ट्रैन, 2 लाख करोड़ का 100 स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और भी न जाने क्या क्या बन रहा है आपके टैक्स के पैसे से। उसका इतना अच्छा उपयोग पिछले 70 सालों में क्या किसी भी सरकार ने किया है? उन्होंने तो सिर्फ और सिर्फ देश को धरातल में ही धकेला है। पेट्रोल,डीज़ल के दाम में वृद्धि भी दूरदर्शिता की निशानी है। जनाब आप पैदल चलेंगे तो स्वस्थ रहेंगे, ऊपर से पर्यावरण का संरक्षण भी। इसे कहते हैं आम के आम और गुठलियों के दाम

सबसे ज़्यादा देशभक्ति की नदी तो मोदी जी के राज में ही बही। हर तरफ जय श्री राम। यहाँ तक कि जगहों के नाम भी बदल दिए गए। क्या यह आसान काम है? शहरों के नाम, गावों के नाम या किसी मार्ग का नाम भी हम क्यों किसी बाहरी व्यक्ति या शक्ति के नाम पर रखेँ? देशभक्ति भी आखिर कोई चीज़ होती है। नाम बदलने में कुछ करोड़ रुपये ही तो लगते हैं। अब बताइये भला रुपया देखें या देशभक्ति? मै तो कहती हूँ सिर्फ शहर, गाँव, मार्ग, स्टेडियम ही क्यों, देश का नाम भी हिन्दुस्तान की जगह मोदिस्तान रख दिया जाये तभी काम पूरा होगा।

(लेखिका डॉ. अंजुलिका जोशी मूलत: बायोकैमिस्ट हैं और उन्होंने NCERT के 11वीं-12वीं के बायोटैक्नोलॉजी विषय पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करने में अपना योगदान दिया है।)

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