प्रधानमंत्री मोदी सरकार की तुगलकी सोच का नतीजा है सेंट्रल विस्टा परियोजना
(हाईकोर्ट ने न सिर्फ याचिका खारिज की थी बल्कि दोनों याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी किया था।)
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
दुनिया के इतिहास में जितने तानाशाह हुए हैं सभी अपनी सनक के लिए कुख्यात रहे हैं। इस कड़ी में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी जुड़ गया है जो अपनी प्रजा के जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए दिन रात नए तरीके आजमाते रहते हैं। जिस समय देश में हाहाकार मचा हुआ है, उस समय मोदी सरकार पुरानी संसद को तोड़कर नई संसद बनाने की योजना को साकार करने में जुट गई है।गरीबी,बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवा की दयनीय स्थिति आदि बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए भले ही मोदी सरकार के खजाने में पैसे की किल्लत है, लेकिन फर्जी राष्ट्रवाद का स्मारक बनाकर इतिहास में मोदी को अमर बनाने के लिए पैसे की कोई किल्लत नहीं है।
सेंट्रल विस्टा बनाने का प्रस्ताव एक बड़े घोटाले की तरह लगता है। इसका कोई विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) नहीं है, जिस पर खुली चर्चा हो सकती थी। इसके अलावा, यह पूरी प्रक्रिया - निविदा से लेकर आर्किटेक्ट को चुनने के लिए भूमि को बदलने तक--अपारदर्शी है। प्रस्ताव में पर्यावरण नियमों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है। इसके अलावा, मूल भूमि कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है और यह 1961 के दिल्ली मास्टर प्लान के साथ-साथ 2021 के मास्टर प्लान के हिसाब से विरोधाभासी है।
सेंट्रल विस्टा के प्रस्तावों को सार्वजनिक नहीं किया गया। डीपीआर की अनुपस्थिति में, परियोजना के वास्तुकार को मानदंडों का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग से चुना गया है। सरकारी कार्यालय के स्थान की सटीक आवश्यकताओं का कोई पूर्ववर्ती अध्ययन प्रदान नहीं किया गया है और न ही लागत विश्लेषण किया गया है।
अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के 69 सेवानिवृत्त अधिकारियों के एक समूह ने मंगलवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुले पत्र में लिखा है कि सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना जिस तरह से आगे बढ़ रही है, उसको लेकर वे चिंतित हैं और सरकार से इसकी संपूर्ण समीक्षा करने का आग्रह करते हैं।
संवैधानिक आचरण समूह के बैनर तले समूह ने कहा कि जिस तरह से सरकार और मोदी ने 'सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के मामले में कानून के नियम की पूरी तरह से अवहेलना करने का रवैया' अपनाया है, उससे उनको चिंता हो रही है।
उन्होंने कहा डिजाइनों को आमंत्रित करने से लेकर अनुमोदन प्राप्त करने के लिए एक सलाहकार का चयन करने तक परियोजना के विभिन्न पहलुओं में मनमानी की गई है।
पत्र में कहा गया, 'खासकर चिंता की बात है कि जिस तरीके से योजना के लिए पर्यावरण मंजूरी हासिल की गई, उसमें सेंट्रल विस्टा के हरित स्थानों और विरासत भवनों को महात्वाकांक्षा से प्रेरित लक्ष्यों की उपलब्धि में अनावश्यक अड़चन माना गया है।'
सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने कहा कि सरकार उस समय नई संसद परियोजना के साथ आगे बढ़ रही है, जबकि मामला अदालत में विचाराधीन है। मोदी ने 10 दिसंबर को इस परियोजना की आधारशिला रखी थी।
'हम मानते हैं कि जब परियोजना की मूल बातों को ही चुनौती दी गई है तब अमर्यादित रवैया अपनाया गया। जब मामला विचाराधीन था, तब सरकार को इसके परिणाम का इंतजार करना था। क्या सरकार को ऐसे फितूर को पेश करने की योजना है जिसे उल्टा करना मुश्किल होगा?'
उन्होंने इस समारोह में राष्ट्रपति की जगह कार्यपालिका के प्रमुख के रूप में प्रधान मंत्री की मौजूदगी पर सवाल उठाया। 'संसद के दोनों सदनों को समायोजित करने वाली इमारत के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा आधारशिला रखना उपयुक्त प्रोटोकॉल हो सकता था। यह संवैधानिक औचित्य के उल्लंघन का एक स्पष्ट उदाहरण था,' उन्होंने कहा।
सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने कहा कि यह निराशाजनक है कि सरकार उस समय परियोजना में बड़ी राशि का निवेश करने जा रही है जब अर्थव्यवस्था में गिरावट है और कोविड-19 महामारी लाखों लोगों को प्रभावित कर रही है।
'हमारे पास एक ऐसा सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा है जो सार्वजनिक संसाधनों के निवेश के लिए तरस रहा है जो सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए योजनाबद्ध राशि से काफी हद तक लाभान्वित हो सकता है। सरकार के लिए ऐसा लगता है कि वह इस बेकार और अनावश्यक परियोजना को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सामाजिक प्राथमिकताओं से अधिक जरूरी समझती है,' उन्होंने कहा।
उन्होंने सरकार से परियोजना की समीक्षा करने का आग्रह करते हुए कहा कि उनका मानना है कि इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए।
'हालांकि, भले ही सरकार सिद्धांत रूप में आगे बढ़ने का फैसला करती है, लेकिन परियोजना को नागरिकों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा महत्वपूर्ण जांच के अधीन होना चाहिए; पर्यावरण और विरासत संरक्षण मानकों के अनुरूप बनाने के लिए योजनाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए और ऐसी परियोजनाओं से संबंधित कानून की उचित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए।'
सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने कहा कि असहमत लोगों की दलीलों को नजरअंदाज करने की सरकार की आदत बन चुकी है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना के तहत, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने राजपथ के दोनों ओर एक नई संसद, आम केंद्रीय सचिवालय, प्रधान मंत्री कार्यालय, प्रधानमंत्री आवास और उपराष्ट्रपति के निवास का निर्माण करने का प्रस्ताव दिया है।
वरिष्ठ वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने मोदी सरकार पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के पास संकट काल से जूझते भारत में मोदी सरकार के पास शिक्षकों और नौकरियों के लिए पैसा नहीं है, लेकिन नए सेंट्रल विस्टा की संशोधित रकम 13,450 करोड़ रुपए है। प्रशांत भूषण ने कहा कि इस खर्च में नई संसद भवन बनाने में जो 1000 करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं उसे नहीं जोड़ा गया है।
प्रशांत भूषण ने एक अखबार की खबर को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, '13,450 करोड़ रुपए नए सेंट्रल विस्टा के लिए संशोधित रकम है। इसमें नई संसद के एक हजार करोड़ रुपए की रकम शामिल नहीं है! ऐसा तब हो रहा है, जब कोरोना संकट सिर पर है। ऊपर से 20% बेरोजगारी है, जबकि सरकार कह रही है कि उसके पास टीचरों और सरकारी नौकरियों के लिए पैसे नहीं हैं! मोहम्मद बिन तुगलक और नीरो याद आए?
इसी मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, 'हमारा देश जब वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, तब इस तरह से बड़ी रकम को बर्बाद करना आपराधिक कृत्य होगा। और वह भी किसलिए?'
दिग्विजय सिंह ने लिखा, 'इस बात पर संसद में क्यों चर्चा नहीं हुई? कौन आर्किटेक्ट है? कैसे उसे चुना गया? क्या क्रेडेंशियल्स हैं? जनता के बीच यह आइडिया क्यों नहीं लाया गया? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट में प्रख्यात टाउन प्लैनर्स की समिति क्यों नहीं बनाई?'