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विमर्श

Film Review 'THAR': हिंसा की इस अति को लगाम लगाना जरूरी

Janjwar Desk
18 May 2022 11:28 PM IST
Film Review THAR: हिंसा की इस अति को लगाम लगाना जरूरी
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Film Review 'THAR': हिंसा की इस अति को लगाम लगाना जरूरी

Film Review 'THAR': थार फिल्म में एक ही खास बात है जो ध्यान खींचने लायक है, वह है इसका छायांकन। फिल्म में छायांकन श्रेया देव दुबे का है जिन्होंने साल 2020 में आई एक शॉर्ट फिल्म 'बिट्टू' में भी छायांकन किया था।

समीक्षक - हिमांशु जोशी

Film Review 'THAR': थार फिल्म में एक ही खास बात है जो ध्यान खींचने लायक है, वह है इसका छायांकन। फिल्म में छायांकन श्रेया देव दुबे का है जिन्होंने साल 2020 में आई एक शॉर्ट फिल्म 'बिट्टू' में भी छायांकन किया था। बिट्टू फिल्म वर्ष 2021 के ऑस्कर अवॉर्ड में 'लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म' के लिए नामित हुई थी और इस श्रेणी में शीर्ष दस के अंदर जगह बनाने में कामयाब भी रही थी।

थार फिल्म की शूटिंग के लिए अजमेर जिले की पहाड़ियों को चुना गया है और श्रेया ने इसके कोने-कोने को बखूबी अपने कैमरे पर उतारा है। जब बार-बार एक मरी हुई भैंस पर कैमरा जा टिकता है तो फिल्म में थोड़ी रोचकता आने की उम्मीद बंधती है। ऐसे ही बुजुर्ग के चेहरे के जरिए निर्देशक को उसकी बेचारगी झलकाने में कामयाबी मिली है। अंधेरे से उजाले के तरफ जाने वाले दृश्य भी आंखों को स्वतः ही आकर्षित कर देते हैं।

कई हत्याओं से शुरू हुई कहानी में पुलिस अफसर बने अनिल कपूर पर इन हत्याओं रोकने का जिम्मा है। अनिल कपूर की डील डौल के सामने अब भी बॉलीवुड के कई युवा अभिनेता पानी मांगते नजर आ सकते हैं। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के बाद किसी अभिनेता की दमदार आवाज है तो वह अनिल कपूर ही हैं पर इस फिल्म में उन्होंने अपनी उस आवाज को गालियां देने में ही बर्बाद किया है, यह सोचने वाली बात है कि अपने कैरियर के इस पड़ाव पर अनिल को इतनी गालियों की जरूरत क्यों पड़ी।

फिल्म की कहानी ड्रग्स और पाकिस्तान से भी जुड़ती जाती है। सतीश कौशिक अनिल कपूर के साथ ही एक पुलिसकर्मी बने हैं और अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं। हर्षवर्धन कपूर इस फिल्म में बोले कम हैं और दिखे ठीक हैं, बिना बोले बॉलीवुड में अपना सफर कहां तक तय किया जा सकता है ये बात हर्षवर्धन को भी पता है। एक बात जरूर है कि उन्होंने इस फिल्म के जरिए बॉलीवुड में अपने बेहतर भविष्य की उम्मीद जरूर जगाई है।

दंगल गर्ल फातिमा साना शेख एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं पर इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता का बिल्कुल भी उपयोग नही किया गया है और उन्हें सिर्फ सौंदर्य उत्पाद की तरह पेश कर दिया गया है। उस दौर में जहां अभिनेत्रियों के लिए जबरदस्त कंटेंट लिखे जा रहे हैं, फातिमा को सिर्फ चेहरा दिखाने के लिए फिल्म में रखना समझ से परे है।

निर्देशक राज सिंह चौधरी, साल 2021 में एक नए विषय पर आई फिल्म 'शादिस्तान' के निर्देशक थे और साल 2009 में आई चर्चित फिल्म गुलाल की कहानी भी उन्होंने ही लिखी थी पर इस फिल्म से सभी को निराश किया है। बॉलीवुड के एक और बड़े नाम अनुराग कश्यप ने इस फिल्म के संवाद लिखे हैं और उनके काम को हम इस संवाद के जरिए समझ सकते हैं 'हुक्म, अंग्रेजी पिक्चर का हीरो लागे है'।

फिल्म की पटकथा भी कई जगह पटरी से उतरी हुई लगती है, अनिल कपूर के परिवार और नौकरी से जुड़ी कई बातों को खुलकर नही दिखाया गया है। राजस्थान की इतनी गर्मी में अनिल कपूर का जैकेट पहनना- उतारना अखरता है। गांव में मुरझाए चेहरों के बीच फातिमा का इतना सुंदर चेहरा अजूबा जैसा लगता है। राजस्थानी बैकग्राउंड का संगीत सुनने में अच्छा लगता है और पर साउंड डिजाइन फिल्म के कई हिस्सों में ठूंसा हुआ सा लगता है।

निर्देशक ने फिल्म में जातिवाद जैसे विषय को उठाया है पर घरेलू हिंसा के दृश्य दिखा उस सामाजिक सन्देश पर अपना किया धराया खुद ही खत्म भी कर दिया। फिल्मों के एक-एक दृश्य का अनुकरण समाज द्वारा किया जाता है, फिल्म में पक्षियों का शिकार करने वाला दृश्य इन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नजर रखने वाली संस्थाओं की आंखों में क्यों नही आया यह बड़े अचरज की बात है।

अचरज यह भी है कि आजकल की फिल्मों में जो हिंसा, गाली परोसी जा रही है, उन पर लगाम क्यों नही लग रही। पहले हम हॉलीवुड की 'रॉन्ग टर्न' और 'सॉ' जैसी फिल्मों में ही अति हिंसा देखते थे पर उन्हें देखने से बचा जा सकता था। ओटीटी के इस जमाने में कोई भी कंटेंट बच्चों की पहुंच से दूर नही है।

अगर निर्देशक, निर्माता इन्हें ही फिल्मों या वेब सीरीज की सफलता का पैमाना मानते हैं तो इतिहास गवाह है कि बॉलीवुड की साफ सुथरी फिल्में ही कमाई के मामले में आगे रही हैं। लगान, रंग दे बसंती, थ्री इडियट्स जैसी फिल्मों में ऐसी अति हिंसा दिखाने की जरूरत नही पड़ी। हमारे आसपास बहुत से ऐसे मामले भरे पड़े हैं, जहां हत्याओं और लूट की योजना फिल्मों को देखकर ही बनी हैं और अगर इन फिल्मों को देखकर भी कोई अपराध करेगा तो क्या कोई उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार होगा! कान, उंगली काटने और जिंदा जलाने के दृश्यों से समाज को क्या दिखाने की कोशिश करी जाती है!

अपने परिवार के साथ राह चलते आप जब किन्हीं अनजान बच्चों को वो शब्द बोलते सुनते हैं जो आप अपने घर में गलती से भी बोलते, तो आप शर्म से पानी हो ही जाते हैं। लेकिन याद कीजिए ऐसे ही शब्दों को ओटीटी पर सुनना शायद धीरे-धीरे आपका शौक बन गया है और शायद उन बच्चों का भी।

फिल्म- थार

निर्देशक- राज सिंह चौधरी

छायांकन- श्रेया देव दुबे

कॉस्ट्यूम डिजाइन- प्रियंका अग्रवाल

अभिनय- अनिल कपूर, हर्षवर्धन कपूर, फातिमा साना शेख

ओटीटी- नेटफ्लिक्स

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