गोदी मीडिया कारपोरेट पोषित तानाशाह खूंखार भेड़िये जैसा, जिसका काम है लोकतंत्र और मानवता को नष्ट करना
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस बात पर प्रसन्नता जाहिर कर रहे हैं कि हाथरस गैंगरेप की जघन्य घटना की रिपोर्टिंग करने के लिए गोदी मीडिया काफी मेहनत कर रही है। गोदी मीडिया के रिपोर्टर सीधे पुलिस वालों के मुंह में माइक सटाकर निर्भीकतापूर्वक असुविधाजनक सवाल पूछ रहे हैं। आज तक और एबीपी न्यूज जैसे बिके हुए गोदी मीडिया के ध्वजा वाहक चैनल इस बर्बर घटना को देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
कई हफ्तों से जो चैनल च्युंगम की तरह सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले के सिवा दर्शकों को कुछ और नहीं दिखा रहे थे, अब वे हाथरस की निर्भया के सबसे बड़े हमदर्द बन गए हैं। सवाल पैदा होता है कि क्या गोदी मीडिया की अंतरात्मा जाग गई है या गोदी मीडिया के मालिक ने उसे ऐसा करने के लिए इशारा किया है? अंतरात्मा जागने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता। किसी भी लोकतंत्र में इस कदर पतित मीडिया का उदाहरण देखने को नहीं मिलता है जैसा अपने देश में साल 2014 से दिखाई दे रहा है। हाथरस गैंगरेप में इस पतित मीडिया की रुचि के पीछे उग्र हिन्दुत्व की राजनीति कर सत्ता में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिदायत ही हो सकती है।
इस परिघटना को हम महाभारत के एक उदाहरण से अच्छी तरह समझ सकते हैं। गुरु द्रोणाचार्य को मारने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा की मौत की झूठी खबर दी गई थी। असल में मौत अश्वत्थामा नामक हाथी की हुई थी। यानी दुष्प्रचार का सहारा लेकर द्रोणाचार्य को ठिकाने लगाया गया था। गोदी मीडिया का मूल मंत्र दुष्प्रचार ही है। मोदी सरकार के पालतू भोंपू की भूमिका निभा रही गोदी मीडिया किसी भी हालत में निष्पक्ष, निर्भीक और लोकतांत्रिक रूप से खबरों को परोस नहीं सकती। उसे पीएमओ और नागपुर से रिमोट कंट्रोल के जरिये संचालित किया जाता है और वह पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों का टेंटुआ दबाते हुए झूठ,घृणा,ध्रुवीकरण का वातावरण बनाती रहती है।
कुछ लोग कह रहे हैं कि मोदी ने गोदी मीडिया को हाथरस घटना को कवर करने का आदेश इसीलिए दिया है, चूंकि वह योगी को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी समझते हैं और उनको बदनाम कर रास्ते से हटाना चाहते हैं। मोदी के पास गुजरात दंगे का अनुभव है, जबकि योगी घृणा और हिंसा के साक्षात अवतार ही हैं। उग्र हिन्दुत्व के पैमाने पर योगी के सामने मोदी उन्नीस ही साबित होते हैं। इतना ही नहीं, मोदी ने कभी नहीं चाहा था कि योगी मुख्यमंत्री बनें। योगी को तो नागपुर के दवाब में मुख्यमंत्री बनाया गया था। मोदी भाजपा के अंदर किसी भी ऐसे नेता को उभरते हुए देखना नहीं चाहते, जो आगे जाकर उनको चुनौती दे सके। बौनी प्रतिभाओं को ही मोदी आगे बढ़ाने में विश्वास करते हैं।
निर्भीकता का ढोंग रचाते हुए गोदी मीडिया ने जिस तरह 19 साल की दलित युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार, नृशंस हिंसा और परिवार को घर में कैद कर रात के अंधेरे में पुलिसकर्मियों द्वारा अन्त्येष्टि की घटना को विकृत करना शुरू कर दिया है, उससे साफ पता चलता है कि उसकी अंतरात्मा नहीं जागी है, बल्कि उसे भाजपा आईटी सेल का अनुकरण करते हुए इस घटना को दुष्प्रचार के दलदल में दफना देने का आदेश पीएमओ से मिला है। पूरे देश में अपराधियों और बलात्कारियों को बचाने के लिए भाजपा इसी तरह गोदी मीडिया का इस्तेमाल करती रही है।
गैंगरेप की रिपोर्टिंग के नाम पर गोदी मीडिया के घिनौने प्रहसन को अच्छी तरह समझा जा सकता है। पहले मीडिया को पीड़िता के गांव में घुसने नहीं दिया गया। उधर घटना को लेकर पूरे देश में सोशल मीडिया पर आम लोगों के उबलते हुए गुस्से को देखते हुए मीडिया को गांव में घुसकर बात करने की छूट दी गई। लेकिन क्या किसी भी गोदी मीडिया ने योगी या मोदी की भूमिका को लेकर कोई सवाल पूछा? गोदी मीडिया ने पहले कुछ नौकरशाहों को निशाने पर लिया और अब वह सीधे विपक्ष के नेता राहुल गांधी को निशाने पर लेकर वही अश्वत्थामा वाला खेल खेल रही है।
योगी ने जैसे ही सीबीआई जांच का आदेश दिया तो रिपब्लिक सहित तमाम बिके हुए चैनलों ने इसका श्रेय लिया। उन्होने कहना शुरू किया कि उनके कवरेज की वजह से ऐसा मुमकिन हुआ है। गोदी मीडिया के एक बेहया एंकर ने पीड़िता के परिवार वाले सीधे पूछा कि राहुल गांधी ने कितने रुपए का चेक दिया था। गोदी मीडिया की तुलना कारपोरेट पोषित तानशाह के खूंखार भेड़िये के साथ की जा सकती है, जिसका काम लोकतंत्र और मानवता के तमाम मूल्यों को नष्ट कर देना है।