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विमर्श

Increasing Threat To Reporters : पत्रकारों पर बढ़ते खतरे, 293 पत्रकारों को जेल की सलाखों के पीछे किया कैद - 24 पत्रकारों की हत्या

Janjwar Desk
10 Dec 2021 9:43 AM GMT
Increasing Threat To Reporters : पत्रकारों पर बढ़ते खतरे, 293 पत्रकारों को जेल की सलाखों के पीछे किया कैद - 24 पत्रकारों की हत्या
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(दुनियाभर में पत्रकारों पर बढ़े हमले)

Increasing Threat To Reporters : कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, जोएल साइमन के अनुसार हरेक सरकार सूचनाओं पर नियंत्रण रखना चाहती है, और इस क्रम में वह किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है...

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Increasing Threat To Reporters : कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (Committee To Protect Journalists) द्वारा प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष दुनिया में कैद किये गए पत्रकारों की संख्या अभूतपूर्व है, और मारे गए पत्रकारों की संख्या भी इससे पहले नहीं देखी गयी थी।

रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष 1 जनवरी से 1 दिसम्बर के बीच दुनिया में कुल 293 पत्रकारों को जेल की सलाखों के पीछे कैद किया गया है और 24 पत्रकारों की ह्त्या की गयी है। इसके अलावा पत्रकारों की 18 हत्याएं ऐसी हैं, जिनमें यह पुष्टि नहीं हो पाई है कि वे अपनी पत्रकारिता के कारण मारे गए हैं। सबसे अधिक, 50 पत्रकार चीन में कैद हैं, इसके बाद म्यांमार में 26, इजिप्ट में 25, वियतनाम में 23 और बेलारूस में 19 पत्रकारों को बंदी बनाया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1992 से अब तक दुनिया में 1440 पत्रकार मारे जा चुके हैं। पिछले 6 वर्षों से हरेक वर्ष जेल में डाले गए पत्रकारों की संख्या पहले से अधिक रही है। इस वर्ष की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 15 अधिक है। मेक्सिको और टर्की जैसे देशों में यह संख्या कम हो रही है, पर रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारों के पास निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता पर अंकुश लगाने के जेल में बंद करने के अलावा भी दूसरे विकल्प हैं और सरकारें इनका भरपूर उपयोग करती हैं| इनमें पत्रकारों के आवागमन पर रोक, इन्टरनेट पर प्रतिबन्ध और सोशल मीडिया पर सख्त धमकियां शामिल हैं।

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, जोएल साइमन (Joel Simon) के अनुसार हरेक सरकार सूचनाओं पर नियंत्रण रखना चाहती है, और इस क्रम में वह किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है, दूसरी तरफ इस दौर में अधिकतर सरकारें निष्पक्ष पत्रकारिता को बर्दाश्त नहीं करती हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1982 से अब तक भारत में 57 पत्रकारों की ह्त्या की गयी है, जिसमें से 21 पत्रकार वर्ष 2014 से अबतक मारे गए हैं। वर्ष 2014 के बाद से देश में 22 पत्रकार जेल में डाले जा चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार हमारा देश पत्रकारों क जेल में बंद करने के मामले में थोडा पीछे हो, पर पत्रकारों की ह्त्या के सन्दर्भ में दुनिया में अग्रणी देश है। इस वर्ष के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में जेल में डाले गए कुल 293 पत्रकारों में से मात्र 7 भारत के हैं, जबकि पत्रकारों की कुल 24 हत्याओं में से 5 भारत के पत्रकार हैं।

ट्विटर की ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट (Transparency report of Twitter) के अनुसार सरकारी स्तर पर ट्विटर से कोई विशेष पोस्ट हटाने के आदेश के मामले भी मोदीमय न्यू इंडिया दुनिया में दूसरे स्थान पर है, केवल जापान हमसे आगे है| भारत के बाद इस सूचि में रूस, तुर्की और दक्षिण कोरिया हैं। ट्विटर को दुनिया भर से 131933 एकाउंट्स से कुल 38524 सामग्री/जानकारी हटाने के आदेश मिले, जिसमें से 6971 आदेश अकेले भारत से थे।

जनवरी से जून 2020 की तुलना में भारत सरकार द्वारा ट्विटर यूजर्स के अकाउंट से जानकारी हटाने के आदेशों में जुलाई से दिसम्बर के बीच 151 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गयी। भारत सरकार के इन आदेशों के स्तर का आकलन करने के लिए यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है – ट्विटर ने दुनियाभर की सरकारों के आदेशों का औसतन 29 प्रतिशत अनुपालन किया, पर हमारे देश के लिए यह आंकड़ा महज 9.1 प्रतिशत ही है।

हमारे प्रधानमंत्री अभिव्यक्ति और मानवाधिकार की रक्षा के स्वयंभू मसीहा हैं और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा जून 1975 से घोषित आपातकाल को लोकतंत्र का काला दिन लगातार बताते रहे हैं। अब, उनके राज में देश घोषित आपातकाल से अधिक बुरा दौर अघोषित आपातकाल झेल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने घोषित आपातकाल के दौर में क्या किया, यह कोई नहीं जानता – वैसे उनके चाय बेचने का किस्सा भी कोई नहीं जानता| पर, आपातकाल ख़त्म होने के बाद वर्ष 1978 में उन्होंने गुजराती में एक पुस्तक प्रकाशित की, संघर्षमां गुजरात।

इसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह उन्होंने अपनी वेशभूषा बार-बार बदल कर आपातकाल के पूरे 19 महीने के दौरान भूमिगत जीवन व्यतीत किया, सरकार के विरुद्ध आदोलनकारियों को सहायता पहुंचाई और तत्कालीन सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य और पुस्तकों को गुजरात के साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र तक पहुंचाया।

उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यह सब उन्होंने लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए किया| इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज सत्ता के शीर्ष पर बैठे मोदी जी लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरह कुचल रहे हैं। पूरी दुनिया में लोकतंत्र के नाम पर जितने भी बड़े आन्दोलन हुए हैं, उसका ऐसा ही हश्र हुआ है।

इन्टरनेट पर नजर रखने वाली संस्था, असेस नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है| ऐसा कारनामा हमारा देश वर्ष 2018 से लगातार करता आ रहा है| कश्मीर में लोकतंत्र बहाली के नाम पर इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, आन्दोलनकारी किसानों से बातचीत के दिखावे के बीच इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है, सरकार प्रायोजित दिल्ली दंगों के नाम पर इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है, और कभी-कभी तो बिना कारण ही डिजिटल इंडिया में यह कारनामा किया जाता है।

वर्ष 2020 में दुनिया के 29 देशों में सरकारी स्तर पर 155 बार इन्टरनेट बंद किया गया, जिसमें से 70 प्रतिशत से भी अधिक, 109 बार हमारे देश में ही बाद किया गया। हमारे देश में इन्टरनेट बंदी का आलम यह है कि इस सूचि में दूसरे स्थान पर यमन है, जहां महज 6 बार ऐसी बंदी की गयी| पिछले वर्ष हमारे देश में कुल 8927 घंटे इन्टरनेट बंद किया गया, दूसरे स्थान पर म्यांमार है जहां 5160 घंटे की बंदी की गयी।

वर्ष 2014 से अभिव्यक्ति की सरकारी गुलामी से हम इस कदर घिर गए हैं कि इजराइल के एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित और दुनिया भर के निरंकुश और डरपोंक शासकों का चहेता निगरानी तंत्र पेगासस सॉफ्टवेयर (Pegasus spyware of NSO Group, Israel) की मदद से मोबाइल हैक करने की खबर भी कोई आश्चर्य नहीं पैदा करती।

आश्चर्य इस तथ्य पर जरूर होता है कि इस सरकार ने केवल 40 पत्रकारों, राहुल गांधी समेत चन्द विपक्षी नेताओं, प्रशांत किशोर, पुर्व मुख्य न्यायाधीश पर आरप लगाने वाली महिला और कुछ वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ही जासूसी की। सरकार ने अपने दो मंत्रियों के साथ यह कारनामा कर अपने कलंक को भी धो डाला, जैसे हत्यारे खून के दाग धोते हैं।

अभी हम संसद में दिखावे के लिए ही सही, पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते है, पर सेंट्रल विस्टा वाले नए संसद भवन तक पहुंचते-पहुंचते हम अभिव्यक्ति की गुलामी पर चर्चा करेंगें और इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति पर प्रवचन देंगें और अभिव्यक्ति को विलुप्त कर चुका मेनस्ट्रीम मीडिया इस प्रवचन को बार-बार प्रसारित करेगा| यही न्यू इंडिया है जहां अभिव्यक्ति की आजादी भी सरकारी दया है।

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