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मोदीराज में हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार बना भारत, दुनिया के केवल 12 देश आतंकवाद के सन्दर्भ में हमसे भी खराब स्थिति में

Janjwar Desk
20 March 2023 9:45 AM GMT
मोदीराज में हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार बना भारत, दुनिया के केवल 12 देश आतंकवाद के सन्दर्भ में हमसे भी खराब स्थिति में
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file photo

Global Terrorism Index 2023 : हथियार म्यांमार जैसे देशों को भी बेचे जाते हैं, जहां की सत्ता अपने ही लोगों पर इनका इस्तेमाल करती है। म्यांमार की लोकतंत्र का तख्तापलट कर सत्ता में बैठने वाली सेना सबसे अधिक हथियार रूस से खरीदती है, दूसरे स्थान पर चीन है और तीसरे स्थान पर भारत है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Excess purchasing of arms does not bring peace and security in a country : ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने हाल में ही ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2023 प्रकाशित किया है, जिसमें कुल 163 देशों की सूची में भारत 13वें स्थान पर है, यानी दुनिया के केवल 12 देश ऐसे हैं, जो आतंकवाद के सन्दर्भ में भारत से भी खराब स्थिति में हैं।

यहाँ यह जानना आवश्यक है कि इस रिपोर्ट में आतंकवाद का सन्दर्भ केवल आतंकवादी संगठनों द्वारा हमले और हिंसा से लिया गया है और इसमें सरकार-प्रायोजित या सरकार-समर्थित हिंसा शामिल नहीं है। दूसरी तरफ नोटबंदी के समय “देश से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा” यह देशवासियों को बताया गया था, जो देश में आतंकवाद की स्थिति के सन्दर्भ में महज एक जुमला बनकर रह गया तो दूसरी तरफ सामान्य जनता के लिए यह सत्ता-प्रायोजित आतंकवाद से कम नहीं था।

हाल में ही स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया है कि भारत पिछले कुछ दशकों से हथियारों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है। हथियारों की खरीद के साथ ही हमारे प्रधानमंत्री देश को हथियारों के उत्पादन के सन्दर्भ में आत्मनिर्भर होने और दूसरे देशों को निर्यात करने पर भी जोर देते हैं। यही नहीं, पिछले कुछ वर्षों से जितने भी देशों से द्विपक्षीय वार्ता की गयी, सबमें सुरक्षा से सम्बंधित समझौतों पर बहुत जोर दिया गया। जाहिर है, सबसे अधिक हथियार खरीदने से, हथियारों के उत्पादन बढाने से, डिफेन्स कॉरिडोर का जाल बिछा लेने से और तमाम देशों से सुरक्षा समझौता कर लेने से कोई भी देश आतंकवाद से मुक्त नहीं होता। फिर भी दुखद यह है कि ऐसा देश जहां दुनिया के सबसे भूखे लोग बसते हैं, बेरोजगारी चरम पर है, और आर्थिक तौर पर मध्यवर्ग की कमार टूटी है – हथियारों के पीछे भाग रहा है, पैसे खर्च कर रहा है।

स्टॉकहोम इन्टरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट दुनियाभर में सरकारी तौर पर हथियारों की खरीद-फरोख्त का लेखाजोखा रखता है और इसके विश्लेषण द्वारा हरेक वर्ष एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें पिछले पांच वर्षों के दौरान देशों द्वारा हथियारों की खरीद का आंकड़ा प्रस्तुत किया जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में हथियारों की खरीद में वर्ष 2018 से 2022 के बीच 11 प्रतिशत की गिरावट के बाद भी हथियारों की खरीद के सन्दर्भ में भारत पहले स्थान पर है। इसके बाद सऊदी अरब का स्थान है। भारत में वर्ष 2013 से 2017 के बीच हथियारों की कुल खरीद में रूस का योगदान 64 प्रतिशत था, जो अगले 5 वर्षों के दौरान 45 प्रतिशत रह गया फिर भी भारत में सबसे अधिक हथियार रूस से ही खरीदे जाते हैं, दूसरे स्थान पर 29 प्रतिशत खरीद के साथ फ्रांस और फिर 11 प्रतिशत योगदान के साथ अमेरिका तीसरे स्थान पर है।

रूस, फ्रांस और अमेरिका के बाद भारत प्रमुख तौर पर इजराइल, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका से भी हथियार खरीदता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 से 2017 के बीच की तुलना में वर्ष 2018 से 2022 के बीच दुनिया में हथियारों का कारोबार 11 प्रतिशत बढ़ गया है। हथियार म्यांमार जैसे देशों को भी बेचे जाते हैं, जहां की सत्ता अपने ही लोगों पर इनका इस्तेमाल करती है। म्यांमार की लोकतंत्र का तख्तापलट कर सत्ता में बैठने वाली सेना सबसे अधिक हथियार रूस से खरीदती है, दूसरे स्थान पर चीन है और तीसरे स्थान पर भारत है।

जाहिर है, निरंकुश सरकारें दुनिया में दूसरी निरंकुश सत्ता को हथियार बेचकर उन्हें अपनी ही जनता पर हथियार चलाने को समर्थन देती हैं। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स को हरेक वर्ष प्रकाशित किया जाता है, पर उसमें पिछले 5 वर्षों के आंकड़े रहते हैं। इसमें आतंकवादी संगठनों द्वारा हमलों, मृत्यु, बंधकों और घायलों का लेखाजोखा प्रस्तुत किया जाता है। इसके अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 के दौरान वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की घटनाओं में 28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी और आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या में भी 9 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी।

दूसरी तरफ, रिपोर्ट के अनुसार ऐसी घटनाओं और मृतकों की संख्या में कमी के बाद भी ऐसी घटनाएं अब पहले से अधिक घातक और जानलेवा बन गयी हैं। वर्ष 2021 में हरेक आतंकी हमले के दौरान औसतन 1.3 व्यक्ति की मृत्यु होती थी, पर वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 1.7 मृत्यु का रहा।

इस इंडेक्स के अनुसार आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश अफ़ग़ानिस्तान है, इसके बाद क्रम से बुर्किना फासो, सोमालिया, माली, सीरिया, पाकिस्तान, इराक, नाइजीरिया, म्यांमार, नाइजर, कैमरून, मोजांबिक और भारत का स्थान है। जाहिर है, बड़ी अर्थव्यवस्था वाले और हथियारों की खरीद में अग्रणी देशों में इस इंडेक्स में सबसे आगे भारत ही है। श्रीलंका 29वें, नेपाल 36वें, बांग्लादेश 43वें, भूटान 93वें और चीन भी 93वें स्थान पर ही है। अमेरिका 30वें, जर्मनी 35वें, यूनाइटेड किंगडम 42वें, रूस 45वें, कनाडा 54वें, जापान 62वें और ऑस्ट्रेलिया 69वें स्थान पर है।

इस इंडेक्स में कुल 163 देशों में से 121 देश ऐसे हैं जिनमें आतंकवाद से कोई भी मौत नहीं हुई है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच दुनिया में आतंकी हमलों की संख्या में तेजी से कमी आई, पर इसके बाद स्थिति लगातार एक जैसी ही बनी हुई है। वर्ष 2020 में दुनिया के 43 देशों में आतंकवाद के कारण मौतें दर्ज की गईं थीं, और वर्ष 2022 में यह संख्या 42 है।

आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सहारा क्षेत्र है। इस इंडेक्स से स्पष्ट है कि आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों में सत्ता निरंकुश है, प्रजातंत्र दम तोड़ रहा है, ऐसे देश पर्यावरण संरक्षण में बहुत पीछे हैं, और इन देशों में भुखमरी की दर बहुत अधिक है। जाहिर है, आतंकवाद का खात्मा हथियारों से नहीं होता, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी से होता है – पर क्या सत्ता इसे समझेगी?

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