जी-20 समूह का अध्यक्ष और एक विश्व-एक कुटुंब का नारा देता भारत म्यांमार की हत्यारी सेना की खुलेआम कर रहा मदद
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
India directly supply arms and fuels to military in Myanmar, despite band imposed by European countries and the USA. जस्टिस फॉर म्यांमार नामक मानवाधिकार संगठन ने हाल में ही उजागर किया है कि भारत सरकार की रक्षा सामग्री बनाने वाली संस्था “यंत्र इंडिया लिमिटेड” ने अक्टूबर 2022 में म्यांमार की सेना को होवित्ज़र्स में उपयोग की जाने वाली 122 मिलीमीटर की 20 गोले दागने वाली नलियां, बैरेल की आपूर्ति की है।
होवित्ज़र्स तोप और मिसाइल लांचर के बीच का हथियार है और इससे गोले-बारूद दागे जाते हैं। इसकी कीमत 3,30,000 डॉलर है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि म्यांमार में सेना द्वारा प्रजातांत्रिक सरकार के फरवरी 2021 में तख्ता-पलट के बाद से अधिकतर पश्चिमी देशों और अमेरिका ने सैनिक साज-सामानों की आपूर्ति प्रतिबंधित की हुई है, पर भारत को प्रजातंत्र की जननी बताने वाली भारत सरकार म्यांमार की उस सेना को हथियारों की आपूर्ति करती जा रही है जिसने न केवल प्रजातांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका और प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों को जेल में डाल दिया – बल्कि अपनी ही जनता पर दुश्मन देश की सेना जैसा हमला जारी रखा है।
हाल में पूरी दिल्ली में भारत के जी20 की अध्यक्षता वाले पोस्टर लगाए गए हैं, इनमें से अनेक पोस्टर पर भारत को लोकतंत्र की माँ बताया गया है। एक तरफ तो मोदी सरकार देश को लोकतंत्र की माँ बताती है तो दूसरी तरफ प्रजातंत्र की हत्या करते देशों के साथ मजबूती से खड़ी नजर आती है। हमारे देश की विदेश नीति आजकल तानाशाहों और निरंकुश शासकों के साथ ही खड़ी रहने की है। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद जब सभी पश्चिमी देश और अमेरिका ने रूस पर तमाम प्रतिबन्ध लगाए, तब भारत में रूस से कच्चे तेल का रिकॉर्ड आयात होने लगा। चीन पर तमाम मानवाधिकार के हनन के आरोप और भारत की संप्रभुता पर हमले के बाद से चीन हमारे देश का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बन गया है।
फिलिस्तीनियों की जमीन हड़पता इजराइल भारत का घनिष्ठ मित्र है। बांग्लादेश में जब से शेख हसीना की निरंकुशता बढ़ती जा रही है, हमारे देश की सरकार का उन पर भरोसा बढ़ता जा रहा है। ईजिप्ट के निरंकुश राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस पर गणमान्य अतिथि के तौर पर शामिल होते हैं। हमारे पड़ोसी देश में आपदा आती है तब सरकार खामोश रहती है, पर तुर्की जैसे निरंकुश सत्ता वाले देश में आपदा के दौरान हम सबसे पहले पहुँच जाते हैं। म्यांमार में भी सेना के सत्ता संभालते ही हत्यारी सेना की मदद के लिए हमारी सरकार तत्पर है।
म्यांमार में होवित्ज़र्स का उत्पादन सेना के अधीन, ऑफिस ऑफ़ चीफ ऑफ़ डिफेन्स इंस्टीट्यूट द्वारा किया जाता है। पर, अब इस कंपनी पर तमाम पश्चिमी देशों और अमेरिका ने प्रतिबन्ध थोपे हैं। यंत्र इंडिया लिमिटेड ने इन बैरल को सीधे ऑफिस ऑफ़ चीफ ऑफ़ डिफेन्स इंस्टीट्यूट नहीं भेजा, बल्कि इन्हें म्यांमार के यांगून में स्थित इनोवेटिव इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजीज कंपनी लिमिटेड को भेजा। यह कंपनी म्यांमार की सेना के लिए रक्षा सामग्री और गोला-बारूद जुटाने का काम करती है। जस्टिस फॉर म्यांमार ने कहा है कि इन बैरलों का उपयोग सेना जनता पर गोले बरसाने के लिए करेगी।
भारत इस समय जी-20 समूह का अध्यक्ष है और प्रजातंत्र के साथ ही एक विश्व-एक कुटुंब का नारा गढ़ रहा है। आश्चर्य यह है कि अध्यक्ष रहते हुए भी भारत हत्यारी सेना की खुलेआम मदद कर रहा है, दूसरी तरफ इसके अधिवेशनों में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का जिक्र नहीं आये इसलिए अधिवेशनों के बाद संयुक्त वक्तव्य नहीं जारी किया जा रहा है, फिर भी इसके सदस्य खामोश हैं, प्रजातंत्र का इससे बुरा स्वरुप और क्या हो सकता है? जाहिर है, जी-20 जैसे समूह दुनिया के देशों के लिए एक पिकनिक से अधिक और कुछ नहीं है, पर भारत सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया इसे विश्वगुरु वाले नजरिये से जनता को दिखा रहा है – बता रहा है कि इस समय दुनिया जो चल रही है वह बस मोदी जी की कृपा से चल रही है।
4 जनवरी 2023 को म्यांमार के 75वें स्वतन्त्रता दिवस समारोह में दिए गए भाषण में जनरल मिन औंग ह्लैंग ने कहा था कि तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों और आलोचनाओं के बाद भी सेना के साथ सहयोग और सम्बन्ध के लिए चीन, भारत, थाईलैंड, लाओस और बांग्लादेश जैसे देशों को बहुत बहुत धन्यवाद – हम भविष्य में भी क्षेत्र के बेहतर स्थाईत्व और विकास के लिए साथ साथ काम करते रहेंगें। जनरल मिन औंग ह्लैंग म्यांमार में तत्मदव, यानि सेना के कमांडर इन चीफ हैं और इनके नेतृत्व में ही फरवरी 2021 में आंग सान सू की की लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी सरकार का तख्ता पलट कर सैन्य शासन लाद दिया गया।
इसके बाद से प्रजातंत्र की बहाली के लिए आन्दोलन कर रहे 2940 लोगों को, जिनमें अधिकाँश युवा थे, को सेना ने मार डाला और 17000 से भी अधिक प्रजातंत्र समर्थकों को जेल में बंद कर दिया गया। सेना की बर्बरता का आलम यह है कि इसकी ज्यादतियों के कारण म्यांमार की 12 लाख आबादी को अपना घर-बार छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में रहना पड़ रहा है और 70000 से अधिक लोगों ने अपने देश को छोड़ दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि थॉमस अन्द्रेव्स के अनुसार फरवरी 2021 से दिसम्बर 2022 के बीच सेना ने 382 बच्चों को या तो मार डाला या फिर अगवा कर लिया, 142 बच्चों को यातनाएं दी गईं और 1400 से अधिक बच्चे जेलों में बंद कर दिए गए।
म्यांमार की सेना पर मानवाधिकार हनन, तख्ता पलट, युद्ध अपराध और लोकतंत्र समर्थकों के ह्त्या के आरोप लगते रहे हैं। अमेरिका और अधिकतर यूरोपीय देश म्यांमार के सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट की कड़े शब्दों में आलोचना करते रहे हैं और सेना पर तमाम प्रतिबन्ध लगाते रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जनरल मिन औंग ह्लैंग ने अपने जिस भाषण में भारत को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया, उसी भाषण में पश्चिमी देशों और अमेरिका की सख्त शब्दों में आलोचना की और उनके द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को म्यांमार के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप बताया।
22 दिसम्बर 2022 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी एक प्रस्ताव पारित कर म्यांमार सेना की आलोचना की गयी और लोकतंत्र बहाली की मांग की गयी। यहाँ ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के सेना की आलोचना करने वाले प्रस्ताव पर मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। इसी तरह रूस की भर्त्सना करने वाले हरेक प्रस्ताव में भी भारत मतदान नहीं करता।
हाल में ही ग्लोबल विटनेस और एमनेस्टी इन्टरनेशनल द्वारा संयुक्त तहकीकात के बाद यह स्पष्ट हुआ कि पश्चिमी देशों और अमेरिका द्वारा वायुयानों में इस्तेमाल किये जाने वाले एवियेशन फ्यूल की आपूर्ति पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद भी म्यांमार के बंदरगाहों पर एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर पहुँच रहे हैं। यह समाचार महत्वपूर्ण है क्योंकि म्यांमार की सेना लड़ाकू विमानों से भी अपने देश की जनता पर हमले कर रही है। म्यांमार के बंदरगाहों पर पहुंचे एविएशन फ्यूल से भरे टैंकरों में से कम से कम एक टैंकर ऐसा भी है जो भारत से गया है।
“प्राइम वी” नामक यह टैंकर ग्रीक की कंपनी सी ट्रेड मरीन का है, और इसका इन्स्युरेंस जापान के पी एंड जी क्लब ने किया था। यह 28 नवम्बर 2022 को गुजरात के सिक्का बंदरगाह के रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के टर्मिनल से ए1 श्रेणी का एविएशन फ्यूल लेकर 10 दिसम्बर 2022 को म्यांमार के थिलावा बंदरगाह पर पहुंचा था।
भारत सरकार बड़ी बेशर्मी से निरंकुश और तानाशाही सत्ता को सीधी मदद को कभी अपनी निष्पक्ष और बिना गुट वाली विदेश नीति का हिस्सा बताती है तो कभी पड़ोसी देशों को की जाने वाली मदद। विदेश मंत्री एस जयशंकर म्यांमार की सत्ता में बैठी हत्यारी सेना की मदद को जायज ठहरा चुके हैं। सत्ता के दम पर फलते-फूलते उद्योगपति अडानी और अम्बानी को भी केवल अपने मुनाफे से मतलब है, और इसके लिए वे किसी तानाशाह और अपराधी की भी मदद कर सकते हैं।
अडानी की कंपनी म्यांमार में सेना द्वारा नियंत्रित बंदरगाह का निर्माण और संचालन कर रही है तो दूसरी तरफ अम्बानी की कंपनी म्यांमार की सेना को प्रतिबंधित एवियेशन फ्यूल से भरे टैंकर भेज रही है। जब तक हमारे देश में ऐसी निरंकुश और प्रजातंत्र विरोधी सरकार और उद्योगपति हैं तब तक दुनिया के किसी भी निरंकुश और हत्यारी सत्ता पर कोई भी प्रतिबंध का असर नहीं होगा।