Mangal Pandey Biography in Hindi: पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे की कहानी, जिनके इस कदम ने बताया था कि हमारी ताकत के सामने अंग्रेजों की औकात कुछ नहीं
Mangal Pandey Biography in Hindi: पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे की कहानी, जिनके इस कदम ने बताया था कि हमारी ताकत के सामने अंग्रेजों की औकात कुछ नहीं
मोना सिंह की रिपोर्ट
Mangal Pandey Biography in Hindi: देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत करने और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पहली गोली चलाने वाले देश के स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का आज यानी 19 जुलाई को 195वां जन्मदिन है। मंगल पांडे ने देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की जो चिंगारी जलाई थी, वह कहीं ज्वाला का रूप ना ले ले इस डर से अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें फांसी की सजा तय दिन से 10 दिन पहले ही दे दी थी। आइए अमर शहीद मंगल पांडे के जन्म दिवस पर जानते हैं उनके बारे में कुछ अनसुनी बातें।
बलिया के रहने वाले थे मंगल पांडे
देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। वह सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी पांडे था। उनका उनका बचपन आम बच्चों की तरह ही बीता। 1849 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में बंगाल नेटिव इन्फेंट्री(BNI) बटालियन की 34वीं रेजीमेंट में पैदल सेना के सिपाही के रूप में भर्ती किए गए। इस रेजीमेंट में ज्यादातर ब्राह्मणों को ही भर्ती किया जाता था।
कैसे शुरू हुआ 1857 का विद्रोह
1856 से पहले तक अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाही ब्राउन ब्रीज नाम की बंदूक का इस्तेमाल करते थे। 1856 में भारतीय सेना के इस्तेमाल के लिए एनफील्ड पी-53 लाई गई। इस बंदूक को लोड करने के लिए पहले कारतूस को दांत से काटना पड़ता था। इसी समय भारतीय सिपाहियों के बीच यह बात फैल गई कि इस राइफल में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। इस वजह से हिंदू और मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही थी। सिपाहियों द्वारा इसे ब्रिटिश शासन द्वारा हिंदू और मुसलमान धर्म को भ्रष्ट करने की सोची समझी साजिश कहा गया। इस विद्रोह के पीछे एक और कहानी भी है। लेफ्टिनेंट जे ए राइट ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि, एक बार एक नीची जाति के खलासी ने ब्राह्मण सिपाही के लोटे से पानी पीने की इच्छा जाहिर की तो उसने उसे यह कहकर पानी पिलाने से मना कर दिया कि इससे उसका लोटा अशुद्ध हो जाएगा और धर्म भ्रष्ट। तब उस नीची जाति के व्यक्ति ने कहा कि जल्दी तुम्हारी जाति का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा, जब तुम्हें सूअर और गाय की चर्बी से बने कारतूसो को मुंह से काटना पड़ेगा। इस घटना के बाद यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई कि अंग्रेजी सरकार भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करने की साजिश कर रही है।
अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले पहले भारतीय सैनिक थे मंगल पांडे
बंगाल के बैरकपुर छावनी में 2 फरवरी 1857 को शाम की परेड में सैनिकों ने एनफील्ड राइफलों में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों का विरोध किया। मंगल पांडे ने सूअर और गाय की चर्बी वाले कारतूसों का विरोध किया, और भारतीय सिपाहियों को भी ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए तैयार कर लिया। मंगल पांडे ने "मारो फिरंगीयों को" का नारा दिया। अंग्रेजों के वफादार सैनिकों ने इस विद्रोह की खबर अंग्रेज अफसरों को दे दी। बंगाल के बैरकपुर छावनी में 29 मार्च को शाम 5:10 पर जब मंगल पांडे ने विद्रोह कर कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया तब परेड ग्राउंड पर लेफ्टिनेंट बी एच बो पहुंच गए। मंगल पांडे ने उन्हें देखते ही उन पर गोली चला दी। गोली घोड़े के पैर में लगी। बो ने मंगल पांडे पर गोली चलाई लेकिन उनका निशाना चूक गया था। इसी बीच सार्जेंट मेजर ह्यूसन भी आ गए थे। वह और बो दोनों ने अपनी तलवारें निकाली। मंगल पांडे ने उन पर अपनी तलवार से हमला कर दिया वहां मौजूद भारतीय सैनिकों में से कोई भी अंग्रेज अफसरों की मदद के लिए आगे नहीं आया। तभी शेख पलटू नाम के सैनिक ने मंगल पांडे को पीछे की तरफ से कमर से पकड़ लिया और दोनों अंग्रेज अफसर वहां से बच निकले।
मंगल पांडे ने खुद को गोली मारने की कोशिश की
इस घटना के बाद 34वीं नेटिव इन्फेंट्री के कमांडिंग अफसर कर्नल एस जी वेलर ने घटनास्थल पर पहुंच कर, वहां मौजूद सैनिकों से मंगल पांडे को गिरफ्तार करने के लिए कहा लेकिन सैनिकों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने से पूरी तरह मना कर दिया। इसी बीच, डिविजन के कमांडिंग अफसर मेजर जनरल हियरसे भी पहुंच गए। उन्होंने अपनी पिस्टल हवा में लहराते हुए कहा कि मेरे आदेश पर अगर किसी सैनिक ने मार्च नहीं किया तो मैं उसे गोली मार दूंगा। इस बार सैनिकों ने उसकी बात सुनी सभी सैनिक मंगल पांडे की तरफ बढ़ने लगे। तभी मंगल पांडे ने बंदूक की नली अपने सीने की तरफ करके अपने पैर की उंगली से बंदूक का घोड़ा दबा दिया। गोली मंगल पांडे के सीने और गर्दन को घायल करके आगे निकल गई। उनके कोट में आग लग गई। मंगल पांडे पेट के बल गिर गए। मंगल पांडे को तुरंत गिरफ्तार कर अस्पताल भेज दिया गया।
मंगल पांडे को फांसी की सजा दी गई
मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल शुरू हुआ। लेकिन इसके पहले ही शेख पलटू का प्रमोशन कर दिया गया। कोर्ट मार्शल के दौरान मंगल पांडे ने स्वीकार कर लिया कि इस मामले में उनका कोई साथी नहीं है। ब्रिटिश हुकूमत क्रांतिकारियों को विद्रोही का दर्जा देती थी। और अंग्रेज अफसर पर हमले का मतलब साफ तौर पर अपनी मौत का वारंट खुद निकलवाना होता था। इसलिए सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को मौत की सजा सुनाई गई। फांसी के लिए 18 अप्रैल 1857 की तारीख तय की गई थी। लेकिन ब्रिटिश शासन को डर था कि तब तक विद्रोह देश के दूसरे इलाकों में ना फैल जाए। इसलिए तय समय से 10 दिन पहले 8 अप्रैल सुबह 5:30 बजे ही उनके साथी सैनिकों के सामने 30 वर्ष की कम उम्र में ही उन्हें फांसी दे दी गई। फांसी देते समय जल्लाद भी मंगल पांडे को फांसी नहीं देना चाहते थे। लेकिन अंग्रेजों के दबाव में उन्हें यह काम करना पड़ा लोगों ने अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। अब हर किसी को ये बात समझ में आ गई थी कि अगर हम सैनिक और देशवासी मिलकर लड़ें तो अंग्रेजों की कोई औकात नहीं। अंग्रेजों को हराया जा सकता है। अब ये बात सैनिक और आम लोग भी महसूस करने लगे थे।
इस तरह शुरू हुआ भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
मंगल पांडे के शहीद होने से पूरे भारत में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी।अंग्रेजों ने मंगल पांडे को यह सोचकर तय समय से पहले फांसी दी थी कि इस तरह से वे स्थिति पर काबू पा लेंगे और विद्रोह को कई जगह भड़कने से रोक लेंगे। लेकिन मंगल पांडे की मौत के बाद विद्रोह की चिंगारी कई सैनिक छावनियों में भी फैलने लगी। कई सैनिक विद्रोही बन गए। अंग्रेज सैनिको ने विद्रोही सैनिकों को मंगल पांडे के सरनेम "पैनडीज" नाम से पुकारना शुरू कर दिया। देश के विभिन्न हिस्सों से भी क्रांति की खबरें आने लगी। 20 अप्रैल 1857 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में सिपाहियों ने ही पुलिस चौकी में आग लगा दी। 3 मई 1857 में मेरठ में भारतीय घुड़सवार सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। मेरठ के विद्रोह से यह चिंगारी पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में भी फैल गई। 30 मई को लखनऊ और पुराने लखनऊ समेत चिनहट इस्माइलगंज में किसानों मजदूरों और सैनिकों ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।मंगल पांडे की शहादत व्यर्थ नहीं गई।और इस तरह 1857 की क्रांति के रूप में भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ।
विद्रोह की सजा दी गई 34वीं रेजीमेंट को
मंगल पांडे के विद्रोह की सामूहिक सजा के रूप में 34 वीं रेजीमेंट को अप्रैल 1857 में भंग कर दिया गया। तब निकाले गए सभी सैनिकों ने विरोध जताते हुए ग्राउंड से निकलने से पहले अपनी टोपी को जमीन पर फेंक कर कुचल दिया था।
1984 में मंगल पांडे के सम्मान में डाक टिकट जारी हुआ
मंगल पांडे का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उनकी वीरता की कहानियां हमेशा नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत रहीं हैं। भारत सरकार ने इस अमर शहीद के सम्मान में 1984 में एक डाक टिकट भी जारी किया था। मंगल पांडे के जीवन पर 2005 में "मंगल पांडे- द- राइजिंग" नाम की फिल्म भी बन चुकी है।