किसान आंदोलन: कॉर्पोरेट गुलामी में लगी मोदी सरकार की विदेश में भी हो रही फजीहत
file photo
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
एक अभूतपूर्व किसान विद्रोह का सामना कर रही मोदी सरकार अपने कारपोरेट प्रभुओं को प्रसन्न रखने के लिए किसी भी सूरत में किसान बिलों को वापस लेने के लिए तैयार नजर नहीं आ रही है। इस ऐतिहासिक किसान विद्रोह की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है और अपने ही किसान पर दमनकारी कानून थोपने की वजह से मोदी सरकार की फजीहत होने लगी है। मोदी सरकार एक पखवाड़े से किसानों को वार्ता के नाम पर बरगलाने की कोशिश करती रही है, लेकिन किसान भी उसके फरेब को अच्छी तरह पहचानते हुए अब दमन के असली सूत्रधार अंबानी और अदानी के उत्पादों का बहिष्कार करने का फैसला कर मोदी सरकार को बिलबिलाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं किसानों की प्रतिरोधी शक्ति भी बढ़ती जा रही है। देश की राजधानी दिल्ली को किसानों ने चारों तरफ से घेर दिया है। सरकार के खिलाफ पिछले कई दशकों में ऐसा कोई अभूतपूर्व आंदोलन हुआ हो, याद नहीं आता। मोदी सरकार की बेइज्जती करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इस विद्रोह का विस्तृत रूप से प्रचार कर रही है। भले ही गोदी मीडिया इस विद्रोह को विकृत तरीके से पेश करने के लिए जी जान से कोशिश कर रही है, लेकिन किसान भी गोदी मीडिया का बहिष्कार कर अपनी आवाज़ को सोशल मीडिया और स्वतंत्र मीडिया के जरिये पूरी दुनिया तक पहुंचाने में सफल हो रहे हैं।
मोदी सरकार के लिए यह फजीहत की ही बात है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ ने किसान आंदोलन का समर्थन कर दिया है। इससे पहले कनाडा की सरकार ने जब किसान आंदोलन का समर्थन किया था तब मोदी सरकार ने इसे अपने आंतरिक मामले में बेवजह हस्तक्षेप बताकर तीव्र विरोध जताया था लेकिन संयुक्त राष्ट्रसंघ के रुख का वह विरोध नहीं कर पा रही है। उग्र हिन्दुत्व के ढकोसले से या फर्जी राष्ट्रवाद के नारे से इस आंदोलन का दमन कर पाने में मोदी सरकार खुद को असमर्थ महसूस कर रही है। उसका आईटी सेल, गोदी मीडिया और ट्रोल सेना के सिपाही भी लाख कोशिश करते हुए भी नाकाम साबित हो रहे हैं।
सितंबर में लागू तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए पंजाब, हरियाणा और कई अन्य राज्यों के हजारों किसान 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। "एक वैश्विक महामारी के बीच यह कोई अचरज की बात नहीं कि भारत के किसान हाल ही में किए गए कृषि सुधारों के प्रभाव से चिंतित है। जैसा कि हम अमेरिका में अपने स्वयं के अनुभव से जानते हैं, नागरिकों को शांतिपूर्वक विरोध करने का पूरा अधिकार है। उनकी शिकायत पर गौर करना चाहिए और समस्या का समाधान किया जाना चाहिए, " अमेरिकी सांसद ब्रैड शेरमैन, भारत और भारतीय अमेरिकियों के कांग्रेस कॉकस के सह अध्यक्ष ने कहा है।
"भारत और भारतीय अमेरिकियों के कॉकस के सह अध्यक्ष के रूप में मुझे दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र के बीच घनिष्ठ साझेदारी पर गर्व होता रहा है। यह मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक साझा समर्पण सहित हितों और मूल्यों दोनों पर बनी साझेदारी है, "उन्होंने ट्वीट की एक श्रृंखला में कहा।
मोदी सरकार ने किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों पर विदेशी नेताओं और राजनयिकों द्वारा की गई टिप्पणी को ''अवांछित '' और '' अनुचित '' करार दिया है, और कहा है कि यह मामला एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों से संबंधित है।
"जिस तरह किसान अपना पक्ष सुनाना चाह रहे हैं वह इस बात का एक और शक्तिशाली उदाहरण हैं कि शांतिपूर्ण विरोध हमारे देशों को एक साथ बांधने वाली कई पोषित लोकतांत्रिक परंपराओं में से एक है," शेरमैन ने कहा।
अमेरिकी सांसद डेविड जी वलदो ने भी भारतीय किसानों का समर्थन किया है। "किसानों ने शांतिपूर्वक अपनी बात रखी है, जैसा कि भारत सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों को इस अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दे।"
किसान नेता तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। उन्होंने दावा किया है कि कानूनों से कॉरपोरेट्स को फायदा होगा और मंडी प्रणाली और न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था को समाप्त किया जाएगा।
कमल खेरा, सांसद, ब्रैम्पटन वेस्ट ने कहा है, "शांतिपूर्ण विरोध का मौलिक अधिकार किसी भी कार्यशील लोकतंत्र की आधारशिला है। मैं भारत में पुलिस बलों द्वारा अपने संवैधानिक अधिकार का प्रदर्शन करने वाले किसानों के खिलाफ किए गए अनावश्यक हिंसक उपायों से आहत हूं। जब हम उन्हें घर या विदेश में अन्याय का सामना करते हुए देखते हैं तो कनाडाई के रूप में हमें हमेशा विरोध करना चाहिए। नागरिकों के एक निहत्थे समूह के खिलाफ पानी के तोपों और आंसू गैस के उपयोग की तस्वीरें भयावह हैं। मैं इसमें शामिल सभी लोगों की सुरक्षा के लिए गहराई से चिंतित हूं।"
कनाडा के सांसद गुरकरण सिंह ने कहा,"भारतीय सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के बड़े पैमाने पर निजीकरण का विरोध करने वाले किसानों पर पानी के तोपों और आंसू गैस का उपयोग और खेती के कानूनों का अनुचित सुधार भयावह है। वे सरकारी क्रूरता के लक्ष्य नहीं बन सकते। वे पूरे देश को अन्न खिलाते हैं और वे सम्मान के पात्र हैं।"