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विमर्श

मेडिकल साइंस को झाड़-फूंक में तब्दील करने के लिए मोदी सरकार ने दी है आयुर्वेद डाक्टरों को सर्जरी की मंजूरी

Janjwar Desk
4 Dec 2020 8:47 AM GMT
मेडिकल साइंस को झाड़-फूंक में तब्दील करने के लिए मोदी सरकार ने दी है आयुर्वेद डाक्टरों को सर्जरी की मंजूरी
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डाक्टरों का कहना है कि सर्जरी के लिए आपको एनेस्थीसिया और एंटीबायोटिक्स चाहिए, क्या आयुर्वेद के पास यह सब है? अगर आयुर्वेद अपने स्वयं के संज्ञाहरण और एंटीबायोटिक दवाओं को विकसित करता है, तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे......

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

संघ परिवार विज्ञान का विरोधी है। उसका सारा ज्ञान गोबर पर आधारित है। संघ परिवार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में नियमित रूप से विज्ञान विरोधी कूपमंडूक मानसिकता का परिचय देकर भारत की जगहंसाई करवाते रहे हैं। कभी गणेश की सर्जरी को मोदी संसार की पहली सर्जरी बताते हैं तो कभी नाले से गैस निकालकर चाय बनाने की बात करते हैं। बादल में रडार छिपने या टर्बाइन वाली थ्योरी के जरिये मोदी ने विज्ञान को बुरी तरह शर्मिंदा किया है। जिस समय देश में मेडिकल साइंस के ढांचे का विस्तार कर आम लोगों को विज्ञानसम्मत स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने की जरूरत है, उस समय अपने अज्ञान के अहंकार में डूबे मोदी प्राचीन भारत के ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से बेहतर साबित करने का हठ करते हुए दिखाई दे रहे हैं, जो निस्संदेह आत्मघाती साबित होने वाला है।

सर्जरी आधुनिक मेडिकल साइंस का हिस्सा है और क्यास इसे आयुर्वेद के साथ मुख्यधारा में लाया जा सकता है? इसका डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कड़ा विरोध कर रही है। दरअसल, हाल ही में सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को 58 सामान्य सर्जरी प्रक्रिया की ट्रेनिंग दिए जाने की अनुमति दे दी है। आयुर्वेदिक डॉक्टर कहते हैं सामान्य सर्जरी तो ये पहले भी कर रहे थे, 58 सर्जरीज़ का दायरा अब तय हुआ है।

बहरहाल, केंद्र सरकार की इस अधिसूचना पर डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) बड़ा विरोध प्रदर्शन करने जा रही है। दरअसल केंद्र सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को 58 सामान्य सर्जरी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए ट्रेनिंग दिए जाने की अनुमति दे दी है। डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था 'इंडियन मेडिकल एसोसिएशन' की महाराष्ट्र इकाई ने इसके खिलाफ प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है। इस संबंध में 11 दिसंबर को डॉक्टजरों ने हड़ताल की घोषणा की है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) के आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी करने देने के फैसले को एकतरफा औऱ गलत बताया है। मंगलवार को प्रेसवर्ता में आईएमए ने सीसीआईएम के फैसले को वापस लेने की मांग की। आयुर्वेदिक डॉक्टरों को सर्जरी के अयोग्य बताते हुए आईएमए ने सीसीआईएम की कड़ी आलोचना की है।

आईएमए ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि इस कदम के बाद से नीट जैसी परीक्षाओं का महत्व पूरी तरह से खत्म हो जाएगा और मेडिकल संस्थानों में चोर दरवाजे से इंट्री का प्रयास बढ़ जाएगा। आईएमए ने कहा इस फैसले का हर कीमत पर विरोध किया जाएगा। आईएमए ने कहा, केंद्रीय चिकित्सा परिषद का यह फैसला पूरे भारत में आधुनिक चिकित्सा के छात्र और चिकित्सकों की पहचान और सम्मान के खिलाफ है, इसके घातक परिणाम सामने आएंगे।

आईएमए के अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि सीसीआईएम प्राचीन ज्ञान के आधार पर सर्जरी करने का अपना तरीका इजाद करे और उसमें आधुनिक चिकित्सा शास्त्र पर आधारित प्रक्रिया से बिल्कुल दूर रहें। उन्होंने कहा कि सीसीआईएम की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स में शल्य तंत्र को शामिल किया गया है जिसका अर्थ होता है सर्जरी, जो आधुनिक चिकित्सा की परीधि में आता है।

आईएमए ने कहा कि आयुष मंत्रालय ने इस बारे में सफाई भी दी है लेकिन दो विधाओं का घालमेल करने में सीसीआईएम जुटी हुई है, जो गलत है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के डॉक्टरों की पोस्टिंग भारतीय चिकित्सा के कॉलेजों में नहीं करें। आईएमए ने सरकार से अपील करने के साथ-साथ अपने सदस्यों और बिरादरी के लोगों को भी चेतावनी दी है कि वो किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति के विद्यार्थियों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति की शिक्षा न दें। आईएमए ने कहा, 'वो विभिन्न पद्धतियों के घालमेल को रोकने का हरसंभव प्रयास करेगा।' उसने कहा, 'हरेक सिस्टम को अपने दम पर बढ़ने दिया जाए।'

गौरतलब है कि अमेरिका में सर्जन बनने के लिए एक डॉक्टर को 4 साल की मेडिकल डिग्री पूरा करने के साथ ही औसतन 7 साल की ट्रेनिंग लेने की दरकार होती है। यानी, वहां कुल मिलाकर 11 साल की पढ़ाई और ट्रेनिंग के बाद सर्जरी करने का अधिकार मिलता है।

3 से 5 सालों का अनुभव ले चुके फीजीशियन असिस्टेंट जिन्होंने बकायदा ट्रेनिंग और शिक्षा हासिल कर रखी है, उन्हें सर्जरी का अधिकार मिला हुआ है। वहीं कुछ प्रैक्टिश्नर जिन्होंने 4 से 7 साल तक की पढ़ाई और ट्रेनिंग हासिल की है, वो भी न्यूरोसर्जरी जैसी सर्जरी करने के लिए स्वतंत्र हैं।

यूनाटेड किंगडम में जनरल मेडिकल काउंसिल में रजिस्टर हुए प्रैक्टिश्नर जिन्होंने 5 साल की मेडिकल की पढ़ाई के साथ-साथ अस्पताल में 2 साल की कोर सर्जिकल ट्रेनिंग भी की है, उन्हें सर्जरी का अधिकार प्राप्त है। इसके साथ ही सर्जरी करने वाले डॉक्टर को 6 साल की स्पेशल ट्रेनिंग से भी गुजरना पड़ता है।

सर्जिकल केयर प्रैक्टिश्नर और मेडिकल हेल्थकेयर वर्कर्स जिन्होंने दो साल की मास्टर लेवल की ट्रेनिंग ले रखी है, वे सर्जरी कर सकते हैं। इसके अलावा सर्जिकल केयर प्रैक्टिश्नरों की टीम किसी एक सीनियर सर्जन के गाइडेंस में ही सर्जरी कर सकती है।

साइंस डायरेक्ट डॉट कॉम के मुताबिक, चीन में मेडिकल स्कूल से 3 से 8 साल की पढ़ाई के बाद सर्जिकल ट्रेनिंग अनिवार्य होती है। इसके लिए पोस्ट ग्रेजुएट होने की अनिवार्यता है। इसके बाद 5 साल तक की स्टैंडर्ड सर्जिकल ट्रेनिंग कै बाद सर्जरी की इजाजत है।

डाक्टरों का कहना है,"सर्जरी के लिए आपको एनेस्थीसिया और एंटीबायोटिक्स चाहिए। क्या आयुर्वेद के पास यह सब है? अगर आयुर्वेद अपने स्वयं के संज्ञाहरण और एंटीबायोटिक दवाओं को विकसित करता है, तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे। अगर लोग एक आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा उपचार का विकल्प चुनते हैं, तो हमें एतराज नहीं। लेकिन आप जिसे हम क्रॉसपैथी या मिक्सोपैथी कहते हैं, उसे कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सकता। यह जन-विरोधी और विज्ञान-विरोधी है।"

उन्होंने कहा, आधुनिक चिकित्सा, होम्योपैथी और आयुष जैसी चिकित्सा की कई शाखाओं का मिश्रण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने पूछा "हमें प्रतिगामी होने के बजाय नए अध्ययन और परीक्षण किए गए तरीकों का स्वागत करना चाहिए। एक बार आपने डाक भेजने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल किया था। आज जब आपके पास ईमेल है, तो कबूतरों का वापस इस्तेमाल करने का कोई मतलब होगा? "

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