RSS : राजनीति के हिंदूकरण और हिंदुओं के सैन्यकरण से क्या हासिल करेगा संघ, अब कश्मीर को क्यों बनाना चाहता मुद्दा?
RSS : राजनीति के हिंदूकरण और हिंदुओं के सैन्यकरण से क्या हासिल करेगा संघ, अब कश्मीर को क्यों बनाना चाहता मुद्दा?
हिमांशु कुमार का विश्लेषण
RSS : देश में मुसलमानों के खिलाफ एक अभूतपूर्व स्तर पर नफरत देखी जा रही है। कश्मीर पर बनी जिस फिल्म (The Kashmir Files) का प्रचार प्रधानमंत्री ने खुद किया है उसे देख कर सिनेमा हाल से बाहर आते समय हिन्दू भीड़ मुसलमानों (Muslims) के खिलाफ नारे लगा रही है। आरएसएस (RSS) कोई भी काम बिना लम्बी योजना के नहीं करता। एक साल पहले ही फिल्मकार जो खुद कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) हैं संजय काक ने कहा था कि अब कश्मीर नया अयोध्या है। राम मन्दिर में शिलान्यास के बाद राम मन्दिर का मुद्दा चुनावी जीत नहीं दिला सकता इसलिए संघ अब चुनाव के लिए कश्मीर को मुद्दा बनाएगा।
लेकिन संघ की तैयारियां देखकर लगता है कि संघ इस बार सिर्फ चुनाव के मकसद के लिए इतने बड़े पैमाने पर तैयारियां नहीं कर रहा है। हममे से किसी को यह गफलत नहीं रखनी चाहिए कि संघ का असली मकसद भारत को हिन्दू राष्ट्र (Hindu Rashtra) घोषित करना और इसके लिए वह हिटलर की तरह मुसलमानों के नस्लीय सफाए के लिए अपने लोगों की दिमागी तैयारी लगातार कर रहा है। पिछले लम्बे समय से संघ का लक्ष्य राजनीति का हिन्दुकरण और हिन्दुओं का सैन्यकरण रहा है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत में प्रधानमंत्री बनाने के लिए संघ के पास मोदी के बाद जो नेता मौजूद हैं उनके आने का क्या परिणाम हो सकता है। मोदी का जहां तक सवाल है वे चाहे जितने भी आत्ममुग्ध और तानाशाह हों लेकिन उन्हें अपनी अन्तर्राष्ट्रीय छवि की परवाह है, उनकी तमन्ना अपना नाम दुनिया के बड़े नेताओं में लिखवाने की है। लेकिन मोदी के उत्तराधिकारी चाहे योगी बनें चाहे अमित शाह बनें इन लोगों की कोई अन्तर्राष्ट्रीय छवि नहीं है, न ही यह दोनों नेता अपनी अच्छी छवि की परवाह करते हैं। योगी को तो कोर्ट ने कितनी ही फटकारें दी हैं फिर भी वे लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाने या उनपर फर्जी मामले बनाने के लिए मशहूर हैं। यही कार्यप्रणाली अमित शाह की भी है। इसलिए भविष्य में हमें हालात के सुधरने को लेकर कोई गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए।
संभावना यह भी है कि भाजपा मुसलमानों के खिलाफ इस तरह की नफरत भड़काकर छिटपुट दंगे शुरू करवा दे और उसमें फंसाकर बड़े पैमाने पर मुस्लिम नेताओं को और मानवधिकार कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दे। इसके आधार पर मुस्लिम विरोधी माहौल में अमित शाह अपना मास्टर कार्ड सीएए-एनआरसी ला सकते हैं जिसके कारण लाखों मुसलमान नागरिकता से वंचित किये जा सकते हैं और उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाला जा सकता है।
इस सबके करने से भाजपा अगले दो तीन लोकसभा चुनाव आसानी से जीत सकती है लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भाजपा का असली मकसद पूंजीवाद की सेवा करने का है। इसलिए किसानों के खिलाफ लाये गए और वापस लिए गये कानून फिर से नाम बदलकर लाये जा सकते हैं। मजदूरों के अधिकारों को छीनने का काम चल ही रहा है उसे और आगे बढ़ाया जाएगा। आदिवासी इलाकों में संसाधनों पर कब्जा पूरी तरह कर लिया जाएगा जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर आदिवासियों का विस्थापन होगा तथा विरोध करने की कारण उनके मानवाधिकारों का भयानक दमन किया जाएगा।
सीएए-एनआरसी के कारण बड़े पैमाने पर दलित भी अपनी नागरिकता खो देंगे क्योंकि भारत के अस्सी प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं। दलितों की नागरिकता को विवादास्पद बनाकर उनका आरक्षण छीना जा सकता है। एनपीआर में मानवधिकार कार्यकर्ताओं और सरकार विरोधियों की नागरिकता को भी संदेहास्पद कहकर उन्हें भी डिटेंशन सेंटरों में डाला जा सकता है।
इस सब संभावनाओं से निजात मिलने की कोई सूरत हाल फिलहाल नजर नहीं आ रही है। विपक्ष राजनीतिक मुद्दा विहीन हो चुका है। ज्यादातर राजनीतिक दल भाजपा की खींची गई लाइन पर ही उसकी नकल करके वोट पाने की होड़ में लगे हुए हैं। जिन राज्यों में गैर भाजपाई सरकारें हैं वहां भी वे कोर्पोरेट से चंदा बटोरने, अपनी जेबें भरने और जनता के मानवाधिकारों के हनन में लगी हुई हैं।
कट्टरपंथी राजनीति का एक लक्षण यह भी होता है कि यह लगातार ज्यादा से ज्यादा क्रूर होती जाती है और नया नेता पिछले नेता को कमजोर कहकर ज्यादा क्रूरता करता है। इसलिए संभावना यही है कि संघ और भाजपा लगातार क्रूरता बढाते जायेंगे लेकिन इसका एक नतीजा यह भी हो सकता है संघ भारत में मुसलमानों की नस्लकुशी जैसा काम करे और उसे रोकने के नाम पर कोई विदेशी सेना भारत में घुस आये जिसकी बहुत संभावना है।
ऐसे हालत में भारत के एक राष्ट्र के रूप में बने रहने की संभावना नहीं रहेगी और भारत टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। जो भी हो संघ और भाजपा में अभी तो कोई ऐसा समझदार नेता नहीं दिखाई देता जिसमें इतनी दूरदृष्टी हो और वह संघ को नफरत के रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक सके।
जो भी हो आने वाले काफी सारे साल भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दुर्व्यवस्था के होने वाले हैं। हमने आजादी के बाद जो भी तरक्की की थी उसका मटियामेट होना तय है और भारत घरेलू हिंसा के एक भयानक दौर में लम्बे समय तक के लिए फंसेगा। इससे इसके निकलने की संभावना इसलिए भी कम है क्योंकि समाज ही अलग-अलग जातियों में बंटा हुआ है तथा इसके एकजुट होकर हालात बदलने की कोशिशें करने की कोई संभावना नहीं है।