वैज्ञानिकों ने चेताया, कोविड-19 से मस्तिष्क में हो सकती हैं जानलेवा बीमारियां
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
हमारा देश कोविड 19 के मामलों में दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुँच गया है, इससे आगे केवल अमेरिका और ब्राज़ील हैं। तीनों ही देश ऐसे हैं, जिसमें वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को दरकिनार कर मोर्चा राजनीतिक हाथों में चला गया है। कोई इसे सामान्य फ्लू बताता है, कोई इसे पत्रकारों के दिमाग की उपज कहता है तो कोई इसे हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से ठीक कर रहा है, कोई काढा पिला रहा है। हमारा देश तो इसके भ्रामक प्रचार में और भी आगे है।
सरकार कहती है - साढ़े सात लाख मामलों के बाद भी देश में कोविड 19 का कम्युनिटी स्प्रेड नहीं हुआ है और हमने कोविड 19 को रोकने में सराहनीय कार्य किया है। एक और तथ्य कोविड 19 के सन्दर्भ में देश में तेजी से प्रचारित किया जा रहा है – हमारे देश में गंभीर इन्फेक्शन की तुलना में माइल्ड इन्फेक्शन अधिक हैं। यह ऐसे बताया जाता है मानो इस इन्फेक्शन के कोई खतरे नहीं हैं।
अब इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने बताया है कि कोविड 19 के माइल्ड इन्फेक्शन से मौत के आंकड़े भले ही कम हो जाते हैं, पर ऐसे मरीजों को मष्तिष्क की भयानक और कुछ हद तक जानलेवा बीमारियों से जिन्दगी भर जूझना पड़ सकता है। इसके पहले बताया गया था कि कोविड 19 से ठीक हुए मरीजों में इतना आलस्य भर जाता है कि वे अपना सामान्य काम भी ठीक से नहीं कर पाते। दूसरे अध्ययन से स्पष्ट होता है कि कोविड 19 को मात देने वाले मरीजों के फेफड़े अपना सामान्य काम नहीं करते। पर, हाल में ही ब्रेन नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार सामान्य इन्फेक्शन से ठीक हुए व्यक्तियों के मस्तिष्क भी सामान्य व्यवहार नहीं करते।
इस अध्ययन के अनुसार, सामान्य इन्फेक्शन की अवस्था में या कोविड 19 के बाद ठीक हुए मरीजों के मस्तिष्क में गंभीर और यहां तक कि जानलेवा बीमारियाँ भी हो सकतीं हैं। इस अध्ययन के लिए इंग्लैंड में 40 मरीजों के मस्तिष्क का गहन अध्ययन किया गया। इनके मस्तिष्क में सूजन पाई गई, तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित हुआ और कुछ को ब्रेन स्ट्रोक का भी सामना करना पड़ा। अनेक मामलों में मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की समस्याएं ही अकेली समस्या थी, जिसके कारण या मरीज अस्पताल गए थे और जांच में कोविड 19 का पता चला।
वैज्ञानिकों के अनुसार, इस कोविड 19 के दौर में मस्तिष्क की एक गंभीर समस्या एक्यूट डिसेमिनेटेड एन्सेफ़लोमाइलाइटीस उभर कर सामने आई है और इसके मामले बढ़ते जा रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इंग्लैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन के इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरोलोजी में इस वैश्विक महामारी के दौर के पहले औसतन महीने में एक मरीज इसका इलाज कराने आता था, पर महामारी के दौर में यह संख्या सप्ताह में तीन मरीज तक पहुँच गई है। यह एक जटिल बीमारी है, और जानलेवा भी हो सकती है। एक 59 वर्षीय महिला की इलाज के दौरान मृत्यु हो चुकी है, एक 55 वर्षीय महिला को गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो गयीं हैं और तीसरी महिला जिसकी उम्र 47 वर्ष है, उसके मस्तिष्क में भयानक सूजन आ गई है।
कोविड 19 के जिन 40 मरीजों के मस्तिष्क की गहन जांच की गई, उनमें से एक दर्जन से अधिक के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में सूजन पाई गई, 10 को मस्तिष्क की बीमारियाँ हो गईं थीं, 8 को ब्रेन स्ट्रोक का सामना करना पड़ा और 8 को पेरिफेरल नर्वस सिस्टम में समस्या उत्पन्न हो गई, जिससे लकवा हो सकता है और 5 प्रतिशत से अधिक मामलों में या समस्या जानलेवा भी हो सकती है। इस अध्ययन के प्रमुख माइकल जंडी के अनुसार मस्तिष्क पर ऐसा पहले किसी वायरस का प्रभाव नहीं देखा गया।
कोविड 19 के बाद ठीक हुए मरीज को सम्भवत: जीवन पर्यंत मस्तिष्क की गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ सकता है, जिसमें घातक मल्टीपल स्क्लेरोसिस भी शामिल है। अब तक कोविड 19 से ठीक हुए मरीजों में आलस्य, थकान, सांस की दिक्कत, कमजोरी और याददाश्त में कमी की ही बात की जाती थी, पर अब मस्तिष्क की गंभीर बीमारियों से भी सावधान रहना पड़ेगा। हमारी सरकार जिस माइल्ड इन्फेक्शन पर अपनी पीठ थपथपा रही है, संभव है उसके प्रभाव से हम लम्बे समय तक जूझते रहें।