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विमर्श

हमारे देश का दरबारी मीडिया मोदी सरकार की नाकामियों को भी उपलब्धियां बताकर करता है प्रचारित और विपक्ष की इमेज गढ़ता है लुटेरे जैसी !

Janjwar Desk
16 Jun 2024 7:36 AM GMT
हमारे देश का दरबारी मीडिया मोदी सरकार की नाकामियों को भी उपलब्धियां बताकर करता है प्रचारित और विपक्ष की इमेज गढ़ता है लुटेरे जैसी !
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हमारे देश का दरबारी मीडिया सत्ता की नाकामियों को ही दिन-रात सत्ता की उपलब्धियों के तौर पर दिन-रात प्रचारित करता है और जनता को आश्वस्त कर देता है कि उनकी जिन्दगी की बागडोर इसी सत्ता पर टिकी है, विपक्ष लुटेरा है, आएगा तो सबकुछ छीन लेगा...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The rulers have a particular language to befool the public and our mainstream media loudly spreads same language. दक्षिणपंथी अभिमानी सत्ता की एक नियत भाषा होती है, इस भाषा में जनता को उन विषयों को सबसे तेज सुनाया जाता है, जिन विषयों में सरकार सबसे अधिक नाकाम रहती है। सत्ता की इस भाषा को परखने का काम दूसरे देशों में मीडिया करता है, पर हमारे देश का दरबारी मीडिया सत्ता की नाकामियों को ही दिन-रात सत्ता की उपलब्धियों के तौर पर दिन-रात प्रचारित करता है और जनता को आश्वस्त कर देता है कि उनकी जिन्दगी की बागडोर इसी सत्ता पर टिकी है, विपक्ष लुटेरा है, आएगा तो सबकुछ छीन लेगा।

हाल के आम चुनावों में मोदी जी ने, बीजेपी ने और मीडिया ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बताया की मोदी जी को युवाओं की, महिलाओं की और किसानों की सबसे अधिक चिंता है, हमारी अर्थव्यवस्था बैलून की तरह फूलती जा रही है जिससे चारों तरफ विकास का साम्राज्य होगा। इस विकास में हाईवे है, पुल है, एयरपोर्ट हैं, तमाम मंदिरों के कॉरिडोर हैं, महंगे किराए वाली ट्रेनें हैं – विकास में जो कहीं शामिल नहीं है वह जनता है। मीडिया तो यह भी बताने से नहीं चूकता कि विकास करने के लिए प्रधानमंत्री को ऐसा होना चाहिए, जिसका जन्म नहीं हुआ हो बल्कि धरती पर अवतरित हुआ हो।

युवाओं के बारे में मोदी जी कितने गंभीर हैं, इसे नीट परीक्षा के परिणामों के घपलों ने बता दिया। शुरू में सबकुछ सामान्य होने का दावा करने वाली सत्ता के सुर अचानक सर्वोच्च न्यायालय में बदल गए, और अब कम से कम शिक्षा मंत्री यह तो स्वीकार करने लगे हैं कि नीट परीक्षा के परिणामों में धान्धली की जाँच की जायेगी। इस सरकार में धान्धली को धांधली कहना ही सबसे बड़ा जुर्म है, धांधली कहते ही आप राष्ट्रद्रोही करार दिए जाते हैं।

नारी शक्ति का राग अलापते मोदी जी का नारी शक्ति नमन वाला भारत वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित जेंडर गैप इंडेक्स 2024 में कुल 146 देशों की सूचि में 129वें स्थान पर पहुँच गया। वर्ष 2014 में जब मोदी जी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब इस इंडेक्स में भारत कुल 142 देशों में 114वें स्थान पर था। मोदी जी नारी शक्ति वंदना करते जा रहे हैं और हमारे देश में साल-दर-साल लैंगिक असमानता बढ़ता जा रहा है। नारी शक्ति का नारा लगाते-लगाते मोदी जी के नए मंत्रिमंडल में कुल 72 मंत्रियों में से महज 7, यानि दस प्रतिशत से भी कम महिलायें हैं। कुल कैबिनेट मंत्रियों में महिलाओं की संख्या महज 2 है। यही मोदी जी का नारी शक्ति वंदना है और यह वंदना केवल दरबारी मीडिया को ही नजर आती है।

जिस दिन मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के बाद अपने कार्यालय गए, उस दिन मीडिया ने दिनभर केवल एक समाचार दिखाया – मीडिया के अनुसार यह मोदी जी का किसानों के प्रति सम्मान था जो सबसे पहली फाइल जो किसान सम्मान निधि की थी, उस पर हस्ताक्षर किये। दरबारी मीडिया को यह आज तक समझ नहीं आया कि “किसान सम्मान निधि” अपने आप में किसानों का अपमान और मोदी के गारंटी की सबसे बड़ी विफलता है। सम्मान निधि में किसाओं का सम्मान नहीं है – यह कोई पुरस्कार या पारितोषिक नहीं है जिसे सम्मान कहा जाए।

मीडिया को सत्ता के दबाव में याद नहीं होगा, पर मोदी जी ने वर्ष 2016 में बड़े जोर-शोर से वर्ष 2022 तक किसानों की आय दुगुना करने का ऐलान किया था। मोदी राज में किसानों की आय बढ़ना तो दूर, सत्ता द्वारा 9 करोड़ से अधिक किसानों को सत्ता द्वारा 500 रुपये प्रतिमाह की आर्थिक मदद देने की जरूरत पड़ रही है, जिसे सरकार सम्मान निधि का नाम देती है। इन सबके बीच भी संभव है कोई सरकारी संस्था एक कचरा रिपोर्ट प्रकाशित कर यह दावा कर दे कि किसानों की आय तो दुगुनी हो चुकी है, जिस तरह लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं। दरबारी मीडिया इसे भी प्रचारित कर देगा।

बढ़ती अर्थव्यवस्था का प्रचार भी खूब किया जा रहा है, जनता को सुनहरे भविष्य का सब्जबाग़ दिखाया जा रहा है, पर इस बढ़ती अर्थव्यवस्था के दौर में उससे भी तेजी से बढ़ती आर्थिक असमानता पर सत्ता खामोश है, जाहिर है दरबारी मीडिया भी खामोश है। पिछले 10 वर्षों का आकलन कर अब यह बता पाना कठिन है कि प्रजातंत्र को मारने में - निरंकुश सत्ता, दरबारी मीडिया या फिर जनता से दूर होता विपक्ष – किसका अधिक योगदान है।

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