NEET UG पेपरलीक का सच छुपाने के लिए मोदी-योगी सरकार ने रचा कांवड़िया बवाल, एक में पढ़े लिखे तो दूसरे में गरीब युवा हो रहे बर्बाद !
जनज्वार संपादक अजय प्रकाश की टिप्पणी
Kanwar Marg Nameplate Controversy and NEET UG 2024 Paperleak Exposed : 2024 के चुनावों में 400 पार का दावा करने वाली मोदी सरकार को जनता ने जो सबक सिखाया है उसके बाद से वह सड़क से लेकर संसद में तक घिर चुकी है। कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाले रिक्शे-खोमचे, होटल-ढाबों के लिए नेमप्लेट अनिवार्य कर चुकी भाजपा की डबल इंजन सरकार को सुप्रीम कोर्ट में भी मुंह की खानी पड़ी है। अब तक सांप्रदायिकता का कार्ड खेलकर अपनी राजनीति चमकाती रही मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में लानत मलानत सह रही है और अब उसको अपनी ही बोली हुई बात कि सरकार को जनता ने चुन लिया है और उसके बाद वह सरकार तानाशाह हो गई है, की बात याद आ रही है।
कल 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में दो महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई हुई थी। एक NEET UG पेपरलीक का तो दूसरा कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेमप्लेट लगाने का मामला था। NEET UG परीक्षा यानी एमबीबीएस की परीक्षा जिससे कोई युवा डॉक्टरी पेशे में कदम रखता है। उसके पेपर लीक होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आड़े हाथ लिया हुआ है। दूसरी तरफ संसद में कल 22 जुलाई को राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर सवालों की बौछार कर कटघरे में खड़ा किया। अखिलेश यादव ने तो यहाँ तक कह दिया कि मंत्री जी जब तक रहेंगे तब तक छात्रों को न्याय नहीं मिलेगा।
वहीं राहुल गांधी ने NEET UG पेपरलीक मामले में दो टूक कहा कि देश इस स्थिति में सरकार ने ला दिया है कि भ्रष्टाचारियों को लगता है कि उनके पास पैसा है तो वह पूरा सिस्टम खरीद सकते हैं, एजुकेशन सिस्टम खरीद सकते हैं, परीक्षा खरीद सकते हैं और यही खरीदारी दिखाई दे रही है और उसका कोर्ट में भी सच खुल के सामने आ रहा है और संसद में भी सामने आ रहा है। संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि यह देश एक ऐसे सिस्टम की तरह बढ़ता जा रहा है, जहाँ पैसे से और भ्रष्टाचार की बदौलत सब कुछ खरीदा जा सकता है। वहीं NEET UG परीक्षाओं में हुई गड़बड़झाले की संसद में पोल खुलती जा रही है। सबसे रोचक बात खुलकर आई है कि पेपरलीक 2500 करोड़ का धंधा है। इसकी जड़ें देश के सबसे गरीब राज्यों बिहार और झारखंड से लेकर देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक और प्रधानमंत्री मोदी के राज्य गुजरात तक फैली हुई हैं।
हर राज्य में पेपरलीक के तार जुड़े हैं और एक-एक करके सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के तीन महत्वपूर्ण वकीलों जिनमें मैथ्यूज नेदुम्परा, नरेंद्र हुड्डा और संजय हेगड़े शामिल हैं, इसको एक्सपोज कर रहे हैं। संजय हेगड़े ने कहा कि पच्चीस सौ करोड़ रुपए का धंधा है और यह धंधा इतना खतरनाक है कि MBBS की कुल पचास हजार सरकारी के लिए प्रति सीट पचास लाख से एक करोड़ रुपए के बीच बिक्री होती है। देश में चूंकि खुद को सर्वोच्च ईमानदार कहने वाली प्रधानमंत्री मोदी की सरकार बैठी हुई है, जहां कि पचास लाख से एक करोड़ रुपए तक के ठेके लिए गए पेपरलीक के हिस्सेदार हर छात्र। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि जो सरकार और समाज आरक्षण पर आंसू बहाता है, कहता है कि आरक्षण से हमारी सारी नौकरियां खत्म की गयी हैं, मगर यही लोग ऐसी धांधलियों, भ्रष्टाचार, इस तरह की अराजकताओं, नकल माफियाओं के गैंग जिनका इनकी बदौलत अरबों रुपये का धंधा चलता है और जिनकी बदौलत ना सिर्फ कॉलेज चल रहे हैं, बल्कि सरकारें चल रही हैं, इस पर कोई बड़ा सवाल नहीं उठाया जाता।
इस बार NEET UG परीक्षा में तेईस लाख पैंतीस हजार बच्चे शामिल हुए थे और इनमें से इक्कीस को अभ्यर्थियों के सात सौ से ज्यादा अंक आये। ये परीक्षाएं 1404 परीक्षा केंद्रों पर संचालित की गयीं। 25 राज्यों के 276 शहरों में इन परीक्षाओं को आयोजित किया गया। संसद में अखिलेश यादव ने पूछा कि धर्मेंद्र प्रधान से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के जरिए सवाल किया कि उन परीक्षा केंद्रों पर कोई व्यवस्था थी तो व्यवस्था कहीं नजर नहीं आ रही है? डॉक्टरी पेशे में जब दलित-पिछड़े बच्चे आते हैं तो मजाक उड़ाया जाता है कि आरक्षण से आया हुआ है इसलिए इलाज गड़बड़ कर रहा है। आरक्षण से आया है इसलिए पेट में ही तौलिया छोड़ दिया है। आरक्षण से आया होगा, इसलिए कैंची छोड़ दी है। क्या कभी इस पर सवाल नहीं होना चाहिए कि घूसखोरी से आया है, भ्रष्ट बाप की अवैध कमाई के जरिए आया है, इसलिए गलत ऑपरेशन करेगा। इसलिए यह बड़े-बड़े नर्सिंग होम खोलेगा और जनता को जहां जरूरत नहीं है, जहां ऑपरेशन की जरूरत नहीं है, वहां जबर्दस्ती आपरेशन करेगा।
याचिका कर्ताओं के तरफ से जो सीनियर वकील NEET UG पेपरलीक मामले को देख रहे हैं उन्होंने बताया कि पेपरलीक का यह सिलसिला 2013 से चला आ रहा है। यानी मोदी सरकार की शुरुआत से लेकर अब तीसरे कार्यकाल में प्रवेश करने तक यह अनवरत जारी है। खुद को पाक साफ साबित करने वाली मोदी सरकार में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसकी कल्पना करना तक मुश्किल है। इसे ऐसे देखिये कि हमारे देश में डॉक्टर के बच्चे डॉक्टर बनते हैं। हर डॉक्टर का बेटा नर्सिंग होम खोल देता है। इस देश में हर नर्सिंग होम या सरकारी कॉलेज से निकला हुआ डॉक्टर जो कोई फीस नहीं लेता, सरकारी हॉस्पिटल में नौकरी करते हुए मुश्किल से पचहत्तर हजार से एक लाख के बीच सेलरी पाता है, वह आखिर मात्र दस साल की कमाई में विशाल और अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त नर्सिंग होम्स कैसे खोल देते हैं। ये सवाल क्यों नहीं उठता कि आखिर ये पैसे आते कहां से हैं।
जी हां, उसका रास्ता NEET UG से होकर जाता है। आरक्षण से आये जिन डॉक्टरों पर तंज कसा जाता है, वह तो सिर्फ कम नंबर के बावजूद पढ़-लिखकर डॉक्टरी करते हैं, मगर जो लोग भ्रष्टाचार के जरिए आ रहे हैं, पेपरलीक के जरिए आ रहे हैं, कभी हमारे समाज ने इस पर कोई प्रदर्शन किया होता है। कभी हमारे समाज ने इसके खिलाफ घर, चौक, शादी ब्याहों, पार्टियों में बहसें हुईं। क्यों नहीं इस पर कोई बात होती कि किस तरह से भ्रष्टाचारियों का एक बड़ा हिस्सा भारत में डॉक्टरी पेशे का पूरा स्कैम चला रहा है? जहाँ आपको इलाज कराना है वहाँ आपको मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है, इस पर कभी सवाल क्यों नहीं उठता है?
प्रधानमंत्री मोदी के शिक्षा मंत्री महोदय पेपरलीक मसले पर जुबान तक नहीं खोल पा रहे हैं। अगर संसद की बहस को आप सुन रहे होंगे तो देखिये कि कैसे धर्मेंद्र प्रधान राहुल गांधी और अखिलेश यादव के सवालों पर बगलें झांकते नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी ने जो बात कही है उससे हम सब शत-प्रतिशत सहमत होंगे कि हमारा देश एक ऐसे एजुकेशन सिस्टम की तरफ बढ़ता जा रहा है, जहाँ पैसे की बदौलत कुछ भी खरीदा जा सकता है। वहां मेधा और मेधावी छात्रों का कोई मतलब नहीं है। जिन लोगों को लगता है, खासकर डॉक्टरी पेशा और इंजीनियरिंग कर रहे बच्चों के माँ-बाप को लगता है कि हमें आरक्षण ने धूल चटा दी है, उनसे हमारा कहना है कि आरक्षण तो आपसे कुछ फीसदी ले जाता है, लेकिन बचे हुए पचास फीसदी में यह पेपरलीक आपको कहीं का नहीं छोड़ता है। क्या कभी आपने इस पर कोई प्रदर्शन किया है, इस पर कोई सवाल उठाया है। प्रधानमंत्री मोदी को वोट देते हुए या फिर उनके मंत्रियों से यह पूछा है कि हमारे बच्चों के साथ क्या हो रहा है। इतने बड़े पेपरलीक घोटाले के उजागर होने के बाद अब तो शिक्षामंत्री का गिरेबान पकड़कर यह पूछने का वक्त आ गया है कि आखिर वह क्या कर रहे हैं।
मगर शिक्षामंत्री धमेंद्र प्रधान का दुस्साहस देखिये कि वह कह रहे हैं कि पिछले सात वर्षों में एक भी पेपरलीक का कोई सबूत नहीं है। सबूत ढूंढ़ना तो सरकार और उसके तंत्र का काम है। चुनी हुई सरकाम में तमाम जांच एजेंसियां उसके मातहत काम करती हैं तो इन एजेंसियों को काम पर लगाकर पता करें। अगर पेपरलीक नहीं हुआ तो आखिर हजारीबाग में क्या हुआ है? पटना में क्या हुआ है? राजकोट में क्या हुआ है प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात के राजकोट में क्या हुआ है, इसकी जवाबदेहियां किसकी है? यह हद चिंता का विषय है और ऐसे में आखरी बात यह बहुत क्लीयर समझ में आती है कि जब तक यह शिक्षा मंत्री रहेंगे, छात्रों को न्याय नहीं मिलेगा और यह बात दावे के साथ संसद में अखिलेश यादव ने भी कही है।
इस देश में कितने माँ-बाप ऐसे हैं जो तक अपने बच्चों को NEET UG की तैयारी तक करा सकते हैं, उन्हें एमबीबीएस की पढ़ाई करा सकते हैं। यह संख्या बहुत मामूली है। भारत सरकार ही अस्सी करोड़ लोगों को जब पाँच किलो राशन देती है और इस नाम पर देती है कि वो लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं तो बाकी बची आबादी में से दस करोड़ लोग भी ऐसे नहीं मिलेंगे जो अपने बच्चों को एमबीबीएस के लिए सरकारी कॉलेजों में दाखिला करा पाएं, जो अपने बच्चों के ट्यूशन पर, कोचिंग करके लाखों रुपए खर्च कर पायें। इन सब सवालों से ध्यान भटकाने के लिए सरकार कांवड़ यात्रा मार्ग पर नेमप्लेट जैसा मुद्दा जरूर ले आती है, ताकि असली सवालों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाये और जनता हिंदू—मुस्लिम के बीच झूलती रहे।
कांवड़ यात्रामार्ग पर नेमप्लेट लगाने के मसले पेपरलीक जैसे घोटालों को ढकने के लिए उठाये जाते हैं। यानी मोदीराज में मध्यवर्ग के युवाओं की जिंदगी पेपरलीक के जरिए बर्बाद कराई जाएगी और उसको ढकने के लिए, उसपर आबोहवा चढ़ाने के लिए गरीबों के बच्चों को यानी कांवड़िये बच्चों की एक कहानी निर्मित की जायेगी, जिससे NEET UG की पूरी मांग, पूरा सवाल, पूरा भ्रष्टाचार मंत्री को हटाने का प्रश्न हवा-हवाई हो जाएगा। मोदी प्रायोजित गोदी मीडिया NEET UG पेपरलीक जैसे जरूरी सवालों को किनारे कर हिंदू-मुसलमान के सवालों को ऊपर लेकर आ गई।
कांवड़िया का पूरा विमर्श सिर्फ इसलिए खड़ा किया गया कि लोग सांप्रदायिकता में उलझे रहें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में कल 22 जुलाई को कांवड़िया का पूरा मामला खत्म हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कह दिया कि किसी तरह की नेमप्लेट यात्रामार्ग पर नहीं लगायी जायेगी। खैर ये सवाल उठना ही नहीं चाहिए था, लेकिन एक सांप्रदायिक सोच की सरकार जो सांप्रदायिकता फैलाने के लिए और अपने भ्रष्टाचार को ढकने के लिए इस तरह के मुद्दों को हवा देती है।
भाजपा की डबल इंजन सरकार ने मुख्यमंत्री योगी के जरिए कांवड़िया विवाद खड़ा किया। यानी हिंदू-हिंदू का इतना हल्ला खड़ा कर दिया जाये कि लोग NEET UG पेपरलीक जैसे जरूरी मुद्दों को भूल जायें। समाज के बीच यह विमर्श शुरू हो जाये कि मुसलमान खाने का सामान थूक के देते हैं, चाट के देते हैं। देश को इस मूर्खतापूर्ण बहस में लगा दिया जाये।
NEET UG की परीक्षा देने वाले जिन युवाओं का भविष्य पेपरलीक के कारण अधर में लटक गया है, उनके माँ-बाप को इस बात की चिंता करनी चाहिए कि हिंदू हिंदुत्व से भी आगे इस देश में इंसानियत है और NEET UG में जो घोटाला हुआ है उसका रिश्ता सीधे तौर पर कांवड़ियों के बवाल से है। सरकार NEET UG के भ्रष्टाचार को ढकने के लिए ही कांवड़ियां विवाद लेकर आयी थी।
यानी एक तरफ पढ़े-लिखे युवाओं की जिंदगी बर्बाद करो पेपर लीक कराकर और दूसरी तरफ धार्मिक कट्टरपंथी बनाओ गरीब युवाओं को कांवड़िया के नाम पर। इस खेल को जिस दिन भारत समझ जायेगा, उस दिन प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी दोनों ही धार्मिक ध्रुवीकरण के सारे तरकीबों को भूलकर जिन वजहों से जनता ने सरकार को चुनकर संसद या विधानसभा में भेजा है उसको याद करने लगेंगे।