क्या बजाज और पार्ले जी के बहिष्कार के फैसले से गोदी मीडिया की हेकड़ी पर असर पड़ेगा?
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
जनज्वार। पिछले छह सालों से मोदी सरकार स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटकर स्वामिभक्त गोदी मीडिया को प्रोत्साहित करती रही है। वह गोदी मीडिया का इस्तेमाल सांप्रदायिक घृणा फैलाने के लिए करती रही है। तमाम टीवी चैनलों को गुलाम बनने के लिए मजबूर कर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के भाईचारे और सौहार्द्र को नष्ट करने के इकलौते एजेंडे पर काम करती रही है। छह सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब दो कारपोरेट गृहों ने इन जहरीले सर्प रूपी चैनलों को दूध नहीं पिलाने यानी विज्ञापन नहीं देने की घोषणा की है। बजाज और पार्ले जी के इस सराहनीय फैसले से उम्मीद पैदा हुई है कि विज्ञापन की कमाई पर ही जीवित रहने वाली गोदी मीडिया की हेकड़ी पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और कारपोरेट की तरफ से इस तरह के साहस का प्रदर्शन दूसरी कंपनियों को आगे आने के लिए प्रेरित करेगा।
टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट (टीआरपी) के रैकेट के खुलासे के साथ वर्तमान में कई ब्रांडों के साथ प्रतिष्ठित पार्ले जी बिस्कुट की निर्माता पार्ले ने एक मजबूत रुख अपनाया है कि वह "विषाक्त सामग्री" को बढ़ावा देने वाले टीवी चैनलों पर विज्ञापन नहीं देगी।
8 अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने टीआरपी में हेरफेर संबंधी एक घोटाले का खुलासा करने का दावा किया था और तीन चैनलों को नामित किया था, जिसमें अर्नब गोस्वामी के नेतृत्व वाला रिपब्लिक टीवी शामिल था। इसके बाद बॉक्स सिनेमा और फक्त मराठी चैनलों के मालिकों / निदेशकों को गिरफ्तार किया गया और रिपब्लिक टीवी के प्रबंधन को पूछताछ के लिए बुलाया गया।
"हम इस बात की संभावनाएं तलाश रहे हैं कि अन्य सभी विज्ञापनकर्ता एक साथ आ सकते हैं और समाचार चैनलों को दिये जाने वाले अपने विज्ञापन पर रोक लगा सकते हैं, ताकि सभी समाचार चैनलों को स्पष्ट संकेत मिल सके कि उनको बेहतर तरीके से अपनी सामग्री में बदलाव करना होगा, "पारले प्रोडक्ट्स के वरिष्ठ श्रेणी प्रमुख कृष्णराव बुद्ध ने कहा।
कुछ दिनों पहले उद्योगपति राजीव बजाज ने सीएनबीसी-टीवी18 को बताया कि बजाज ऑटो ने विज्ञापन के मोर्चे पर तीन चैनलों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। "एक मजबूत ब्रांड एक नींव है जिस पर आप एक मजबूत व्यवसाय को खड़ा करते हैं। आखिरकार एक मजबूत व्यवसाय का उद्देश्य भी समाज में योगदान करना है। हमारा ब्रांड कभी भी किसी ऐसी चीज से नहीं जुड़ा है जो हमें लगता है कि समाज में विषाक्तता का एक स्रोत है," उन्होंने कहा।
टीआरपी दर्शकों की पसंद और टीवी चैनल की लोकप्रियता को आंकने का एक उपकरण है, इस प्रकार यह सीधे विज्ञापनों से जुड़ा होता है जो इस पर निर्भर करता है। रेटिंग की गणना बैरोमीटर के रूप में ज्ञात डिवाइस के माध्यम से घरों के एक गोपनीय सेट में दर्शकों की संख्या के आधार पर की जाती है।
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल, जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करती है, चैनलों के लिए साप्ताहिक रेटिंग अंक जारी करती है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 10 जनवरी 2014 को भारत में टेलीविजन रेटिंग एजेंसियों के लिए नीति दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया था, जिसके तहत उद्योग की अगुवाई वाली संस्था बार्क को भारत में टेलीविज़न रेटिंग करने के लिए मान्यता दी गई थी।
मुंबई पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार चार लोगों के साथ एक टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट्स (टीआरपी) हेरफेर रैकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया है। मुंबई के पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार पर हमला करने वाला रिपब्लिक टीवी चैनल भी "झूठे टीआरपी" रैकेट में शामिल था।
टीआरपी इस बात का निर्धारण करने के लिए एक उपकरण है कि किन टीवी कार्यक्रमों को सबसे अधिक देखा जाता है और यह दर्शकों की पसंद और किसी विशेष चैनल की लोकप्रियता को भी इंगित करता है।
सीधे शब्दों में कहें तो टीआरपी बताता है कि किस तरह भिन्न सामाजिक-आर्थिक श्रेणियों के लोग शो या चैनल देखना पसंद करते हैं और कितनी देर तक वे इनको देखते रहते हैं। यह अवधि किसी शो के किसी विशेष समय के लिए या एक घंटे के लिए भी हो सकती है, या पूरे दिन के लिए हो सकती है।
ट्राई द्वारा 2018 में तैयार किए गए टीवी दर्शकों की माप और रेटिंग के बारे में एक परामर्श दस्तावेज ने इसके मूल्य को इस प्रकार परिभाषित किया: "दर्शकों के माप डेटा के आधार पर टेलीविजन पर विभिन्न कार्यक्रमों को रेटिंग्स दी जाती है। दर्शकों के लिए उत्पादित कार्यक्रमों को टेलीविजन रेटिंग प्रभावित करती हाई। बेहतर रेटिंग एक कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जबकि खराब रेटिंग एक कार्यक्रम को हतोत्साहित करेगी। गलत रेटिंग से उन कार्यक्रमों का उत्पादन होगा जो वास्तव में लोकप्रिय नहीं हो सकते हैं।"
इस तरह के टीआरपी के आधार पर ही कंपनियां विज्ञापन देती हैं, जो टेलीविजन नेटवर्क के लिए राजस्व के रूप में काम करते हैं।
बार्क एक उद्योग निकाय है, जो डिज़ाइन, कमीशन, पर्यवेक्षण और एक सटीक, विश्वसनीय और समय पर टीवी दर्शकों की माप प्रणाली स्थापित करने के लिए है और इसे भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण और सूचना मंत्रालय की सिफारिशों द्वारा निर्देशित किया जाता है। यह मीडिया को अधिक प्रभावी ढंग से खर्च करने के लिए डेटा पॉइंट प्रदान करने में मदद करता है। टीआरपी की निगरानी के लिए मुंबई में 2,000 से अधिक बैरोमीटर स्थापित हैं।
बार्क भारत में टीवी चैनलों के लिए साप्ताहिक रेटिंग अंक जारी करता है। बार्क द्वारा 45,000 से अधिक घरों में बैरोमीटर स्थापित किए गए हैं। घरों को उसके मालिक के शिक्षा के स्तर और उपभोक्ता के रूप में उसके व्यवहार के आधार पर चुना जाता है।
एक शो देखते समय, घर के उपभोक्ता एक विशेष आईडी के माध्यम से पंजीकरण करते हैं, जो घर के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग होता है। मीटर एक चैनल पर उपभोग किए गए समय को पकड़ता है और इसके द्वारा दर्शकों की आदतों पर डेटा प्रदान करता है।
प्रसारणकर्ता इन 45,000 घरों को ढूंढ सकते हैं और उन्हें अपने चैनल देखने के लिए रिश्वत दे सकते हैं। वे केबल ऑपरेटरों को अपने चैनल को 'लैंडिंग पेज' बनाने के लिए भी रिश्वत दे सकते हैं, जिससे टीवी को खोलने के बाद चैनल सबसे पहले दिखाई देगा।
टीआरपी रेटिंग में हेर-फेर होने से विज्ञापनदाताओं के लिए लक्षित दर्शकों तक पहुंचना संभव नहीं होता है, जिसके परिणामस्वरूप टीआरपी के ऐसे हेरफेर और फर्जी आंकड़ों के कारण उनको सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
हाल के टीआरपी घोटाले में यह पता चला है कि इन व्यक्तियों ने विशेष टीवी चैनलों को देखने के लिए समय-समय पर भुगतान के माध्यम से बैरोमीटर उपयोगकर्ताओं को प्रेरित करके हेरफेर किया था।
एक आईपीएस अधिकारी ने मीडिया को बताया कि जिन लोगों के घरों में ये बैरोमीटर लगाए गए हैं, उनमें से कई लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपने टीवी सेट को ऑन रखने पर भी आर्थिक लाभ मिल रहा था।
मुंबई पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि विज्ञापनों पर कितने टीआरपी अंकों का हेरफेर हुआ और इसका क्या प्रभाव पड़ा।
गोदी मीडिया के अंदरखाने में स्वाभाविक रूप से हड़कंप मच गया है और सभी एक दूसरे को दोषी सिद्ध करने में जुट गए हैं। मोदी सरकार ने छह सालों से नीति बना रखी है कि स्वतंत्र मीडिया को किसी तरह का सरकारी विज्ञापन नहीं देना है और उसे आयकर विभाग,ईडी,सीबीआई आदि पालतू सेना के जरिये बुरी तरह प्रताड़ित करना है। दूसरी तरफ दिन रात मोदी भजन को ही पत्रकारिता के रूप में परोसने वाले चैनलों को सरकारी विज्ञापन देना है और कारपोरेट को भी ऐसा करने की हिदायत देना है। छह सालों से यही गंदा खेल बेरोकटोक चलता रहा। लेकिन पहली बार उग्र हिन्दुत्व के आतंक को चुनौती मिल रही है। प्रतिवाद की आवाजें मुखर हो रही हैं। लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील करने की साजिश को पूरा देश समझ चुका है।
सबसे अहम बात है कि कोई भी कंपनी फर्जी टीआरपी के आधार पर विज्ञापन के नाम पर अपने पैसे को बर्बाद करना नहीं चाहेगी। अभी बजाज और पार्ले जी ने जहर परोसने वाले चैनलों को विज्ञापन न देने का ऐलान कर दिया है। उम्मीद की जा रही है कि दूसरी कंपनियां भी उनका अनुकरण करेंगी और जल्द ही गोदी मीडिया का घिनौना तिलिस्म छिन्न भिन्न होता हुआ नजर आएगा।