अमेरिकी चुनावों में ट्रंप हार भी गये तो राष्ट्रपति पद छोड़ने की संभावना पर बना हुआ है संदेह
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
अमेरिका में ओपिनियन रिसर्च नामक संस्था ने हाल में ही एक बृहत् सर्वेक्षण किया है, जिसके नतीजों के अनुसार अधिकतर अमेरिकी मानते हैं कि ट्रम्प यदि नवम्बर में चुनाव हार जायेंगे तब भी वे अपना पद नहीं छोड़ेंगे और इसके बाद अमेरिका में एक नया संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा।
यदि आप आज की दुनिया के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो स्पष्ट होगा कि यदि अमेरिका में ट्रम्प ऐसा करते हैं, और जिसकी पूरी संभावना भी है, तो अनेक बड़े देश जैसे भारत, रूस, ब्राज़ील, इंग्लैंड, इजराइल, चीन और ऑस्ट्रेलिया - सभी ट्रम्प के असंवैधानिक कदम का समर्थन करते नजर आ रहे होंगे। ऐसा समर्थन कुछ वर्षों से दुनिया देख रही है, जब सबसे पहले चीन के राष्ट्रपति ने जीवन पर्यंत राष्ट्रपति रहने का फैसल लिया था, और अभी हाल में ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने तमाम धांधली के बाद यह कदम उठाया।
पुतिन के इस लोकतंत्र-विरोधी कदम पर सबसे पहले बधाई देने वालों में भारत समेत दुनिया के सबसे बड़े तथाकथित लोकतांत्रिक देश ही थे। आज की दुनिया में किसी देश के लोकतांत्रिक कदम का कोई स्वागत नहीं करता, बल्कि पुतिन महान हैं क्योंकि वे अपने विरोधियों को कुचल देते हैं, उन्हें जहर खिलाकर मारते हैं और बेलारूस में शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलने के लिए रूस की सेना भेजने की पहल करते हैं। इतिहास भले ही रूस और अमेरिका की दुश्मनी की चर्चा करे, पर तथ्य यह है कि रूस के बिना सहयोग के ट्रम्प भी वर्ष 2016 के चुनावों में अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन पाते।
ओपिनियन रिसर्च के सर्वेक्षण के अनुसार विपक्षी राष्ट्रपति उम्मेदवार जो बिडेन के लगभग 75 प्रतिशत समर्थकों को आशंका है कि चुनाव हारने के बाद भी ट्रम्प वाइट हाउस से बाहर नहीं जायेंगे, जबकि 30 प्रतिशत ट्रम्प समर्थक ऐसा ही सोचते हैं। यह स्थिति कितनी गंभीर है जिसका अंदाजा इस तही से लगाया जा सकता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की दो महिला सांसदों ने बाकायदा अमेरिका के सेना मुख्यालय पेंटागन को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि ऐसी किसी भी स्थिति में वे सुनिश्चित करें कि सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्वक हो सके।
इस बीच में ट्रम्प अपनी शैली में धुआंधार चुनाव प्रचार में जुटे हैं और जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं, आन्दोलनकारी अश्वेतों के विरुद्ध जहर उगल रहे हैं और विपक्षी उम्मीदवारों, जिसमें उपराष्ट्रपति पद की दावेदार भारतीय मूल की कमला हैरिस भी हैं, का चरित्र-हनन कर रहे हैं। मतदाताओं में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की प्रभावी संख्या है, जिसे देखते हुए हमारे प्रधानमंत्री महीनों पहले ही अमेरिका जाकर भारतीय समुदाय के बीच "अबकी बार ट्रम्प सरकार" का जयकारा लगा चुके हैं और उसके बाद कोविड 19 के साए में नमस्ते ट्रम्प का भी आयोजन कर चुके हैं।
ट्रम्प भी लगभग हरेक सप्ताह भारत की सहायता करने का सन्देश देते रहते हैं। ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के चुनाव प्रचारों में भी कभी हिटलर का स्वस्तिक चिह्न नजर आता है तो कभी मोदी जी नजर आते हैं।
ट्रम्प जैसे कट्टर दक्षिणपंथी शासक को यह एहसास रहता है कि भले ही उसने जनता की सुख-समृद्धि के लिए कोरे आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ भी ना किया हो, पर वही सबसे योग्य शासक है और आगे भी उसे भी शासक बने रहना है। इसलिए लगातार झूठ, भ्रामक खबरों, जनता के बीच आपसी मतभेद पैदा करने वाले और अपनी ही व्यवस्था पर लगातार प्रहार और विपक्षी उम्मीदवारों का चरित्र हनन जैसे तिकड़मों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी ऐसी ही भ्रांतियां लगातार सोशल मीडिया से भी फैलानी पड़ती हैं।
हालत यहाँ तक पहुँच गयीं है कि झूठी और सामाजिक सौहार्द के बर्बाद होने के डर से फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विट्टर और यूटयूब को ट्रम्प और उनके कट्टर समर्थकों के मैसेज ब्लाक करने पद रहे हैं, या फिर उनपर चेतावनी डाली जा रही है। आज के दौर में केवल ट्रम्प ही इस कला के पारंगत नहीं हैं, बल्कि भारत समेत अधिकतर तथाकथित लोकतांत्रिक देशों में लगातार यही किया जा रहा है।
पिछले कुछ महीनों से हरेक सर्वेक्षण में ट्रम्प अपने प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन से पीछे चल रहे हैं, फिर भी लगातार ऐलान कर रहे हैं कि यदि चुनावों में धांधली नहीं होगी तो वही राष्ट्रपति चुने जायेंगे। ट्रम्प ने तो पोस्टल बैलेट पर भी लगातार सवाल खड़े किये हैं। उनके सवाल खड़े करने के बाद से 60 प्रतिशत ट्रम्प समर्थक मानने लगे हैं कि चुनावों में धांधली होगी और 73 प्रतिशत ट्रम्प समर्थकों को पोस्टल बैलेट पर भरोसा नहीं रहा है।
अमेरिका में पोस्टल बैलेट एक सामान्य प्रक्रिया है, और 2016 के चुनावों में लगभग 21 प्रतिशत नागरिकों ने इसका सहारा लिया था। इस बार कोविड 19 के डर के कारण अनुमान लगाया गया है कि 30 प्रतिशत से अधिक नागरिक मतदान का यह रास्ता चुनेंगे।
ट्रम्प ने अपनी सारी ताकत और लगभग पूरा सरकारी महकमा अपने चुनाव प्रचार में लगा दिया है, और ऐसे में यदि वे नवम्बर का चुनाव जीत जाते हैं तो जरा सोचिये इसके बाद दुनिया कैसी होगी?
दुनिया के अधिकतर देशों के लोकतांत्रिक तानाशाह निराकुश शासक बन चुके होंगे, मानवाधिकार जैसे विषयों पर बात करने वाला कोई नहीं होगा, दुनियाभर का मीडिया हमारे देश जैसा चाटुकार हो चुका होगा, पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाले आतंकवादी करार दिए जायेंगे, और सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं हमेशा के लिए ध्वस्त कर दी जायेंगी।
इसके बाद भारत जैसे देशों में सम्भवतः आगे कभी चुनाव भी ना हों और सभी विपक्षी आवाज कारागारों की ऊँची दीवारों के पीछे बंद कर दी जायेंगी। जाहिर है सभी निरंकुश शासक ट्रम्प की जीत यदि हिती हैं, तो अपनी जीत ही मानेंगे।