युवा भारत कुछ दशकों में हो जायेगा बुजुर्ग भारत में तब्दील, समाज और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या
युवा भारत कुछ दशकों में हो जायेगा बुजुर्ग भारत में तब्दील, समाज और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या (photo : Ajay Prakash)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The population is aging rapidly and without proper policies this ageing population is stressing health, economy and society. संयुक्त राष्ट्र हरेक वर्ष 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस का आयोजन करता है और वर्ष 2020 से 2030 तक के दशक को बुजुगों के स्वास्थ्य को समर्पित है। पूरी दुनिया में विकास के साथ ही बुजुगों की संख्या बढ़ती जा रही है, और अब विकसित देशों में तो यह समाज और अर्थव्यवस्था के लिए एक समस्या बनता जा रहा है।
दरअसल विकास के साथ ही प्रजनन दर में कमी के साथ ही मृत्युदर में भी कमी आ रही है, जिससे युवा आबादी की संख्या की तुलना में बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है। विकसित और औद्योगिक देशों की यह समस्या तेजी से विकासशील देशों में भी पनप रही है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक नई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र वाली आबादी 14.9 करोड़ थी, जो आबादी का 10.5 प्रतिशत है, पर वर्ष 2050 तक बुजुर्गों की कुल आबादी में भागीदारी लगभग दुगुनी, यानि 20.8 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी। वर्ष 2050 में भारत में 60 वर्ष से अधिक उम्र वाली आबादी 34.7 करोड़ तक पहुँच जायेगी, यानि हरेक 5 लोगों में एक व्यक्ति बुजुर्ग होगा। वर्ष 2036 तक बुजर्गों की आबादी कुल आबादी में से 14.9 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी, जबकि वर्ष 2100 तक कुल जनसँख्या में इनकी भागीदारी 36.1 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी।
इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 के अनुसार वर्ष 2046 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल संख्या को पार कर जायेगी। इस तेजी से बुजुर्ग होती जनसंख्या का प्रभाव स्वास्थ्य सेवाओं, अर्थव्यवस्था और पूरे समाज पर पड़ेगा, इसलिए सरकार हो इस बदलाव के लिए जल्दी ही पूरी तैयारी करनी पड़ेगी और बुजुर्गों के सन्दर्भ में प्रभावी नीतियाँ और कार्य-योजनायें बनाने के साथ ही उनके कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 में बुजुर्गों की संख्या कुल आबादी का 13.9 प्रतिशत यानि 1.1 अरब थी। अगले तीन दशकों में यह संख्या 2.1 अरब, यानि कुल आबादी का 22 प्रतिशत तक पहुँचाने का अनुमान है, पर विभिन्न क्षेत्रों में इसमें व्यापक अंतर है। दुनिया के विकसित और औद्योगिक क्षेत्रों में वर्ष 2022 में कुल आबादी में बुजुर्गों की संख्या 26 प्रतिशत थी और वर्ष 2050 तक 34 प्रतिशत तक पहुँच जाने कका अनुमान है। दुनिया के अल्प-विकसित क्षेत्रों में वर्ष 2022 में इनकी संख्या महज 11.5 प्रतिशत थी और वर्ष 2050 तक भी महज 20 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान है।
एशिया में बुजुर्गों की कुल संख्या लगभग 65 करोड़ है, जो दुनिया के कुल बुजुगों की संख्या का 58 प्रतिशत है। एशिया में कुल आबादी में से वर्ष 2022 में 13.7 प्रतिशत आबादी 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की थी, पर वर्ष 2050 तक यह संख्या लगभग 36 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी। पूर्वी एशिया में वर्ष 2050 तक औसतन 39.2 प्रतिशत आबादी बुजुर्गों की होगी – जापान के लिए यह संख्या 44 प्रतिशत, दक्षिणी कोरिया के लिए 46 प्रतिशत और चीन के लिए 39 प्रतिशत तक पहुँच जायेगी। साउथ एशियाई रीजनल कोऑपरेशन के देशों में वर्ष 2050 तक 19.8 प्रतिशत आबादी 60 वर्ष से अधिक उम्र की होगी – मालदीव्स में 34 प्रतिशत, श्रीलंका में 27 प्रतिशत, भूटान में 24 प्रतिशत, बंगलादेश में 21. प्रतिशत और भारत में 20.8 प्रतिशत आबादी बुजुर्गों की होगी।
भारत में वर्ष 2010 से 2020 के बीच बुजुर्गों की संख्या दुगुनी होने की दर 15 वर्ष थी, लगभग यही दर पूरे एशिया में और पश्चिमी एशिया में रही, पर दक्षिण पूर्व एशिया में यह दर 13 वर्ष और दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में 16 वर्ष रही। भारत में बुजुर्गों की संख्या में वर्ष 1961 से 1991 के बीच गिरावट दर्ज की गयी, पर इसके बाद यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। देश के राज्यों के सन्दर्भ में देखें तो बिहार में वर्ष 2022 में बुजुगों की संख्या 7.7 प्रतिशत थी जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 11 प्रतिशत तक पहुंचेगी, दूसरी तरफ केरल के लिए वर्ष 2022 और 2050 के आंकड़े क्रमशः 16.5 प्रतिशत और 22.8 प्रतिशत हैं। शेष सभी राज्यों में बुजुर्गों की संख्या का प्रतिशत बिहार और केरल के बीच है।
समस्या यह है कि भारत अपनी जनसंख्या की विशेषताओं का उपयोग करने में नाकाम रहा है। आज के सन्दर्भ में भारत युवाओं का देश है, हमारे प्रधानमंत्री बार-बार इसका जिक्र भी करते हैं – पर युवा आबादी बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रही है। बेरोजगारी और गरीबी से जूझते युवा हिंसा की राह पर चल पड़े हैं और समाज में अस्थिरता पैदा कर रहे हैं।
धर्म का पाखण्ड एक समय बुजुर्गों का कार्यक्षेत्र था, पर अब धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा युवाओं की नई कर्मस्थली बनती जा रही है। कुछ ऐसा ही हाल तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी के साथ भी होने वाला है – जिस समाज को बुजुर्गों के अनुभव और ज्ञान से नई दिशा मिल सकती है, उसी समाज में वे हाशिये पर पहुँच रहे हैं और समाज वृद्धाश्रम और ओल्डएज होम बनाकर उन्हें एकांत और उपेक्षा की जिन्दगी दे रहा है।