Begin typing your search above and press return to search.
दुनिया

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत से कहा, CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा करो

Janjwar Desk
26 Jun 2020 12:27 PM GMT
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत से कहा, CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा करो
x
सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों के समर्थन में आए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ, कहा भारत की वाइब्रेंट सिविल सोसायटी को शांत कराने की हो रही कोशिश....

जनज्वार ब्यूरो। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को भारत से उन मानवाधिकार रक्षकों को तुरंत रिहा करने के लिए कहा जिन्हें देश के नागरिकता कानूनों में बदलाव के खिलाफ विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया है।

विशेषज्ञों ने कहा, इन मानवाधिकार रक्षकों की गिरफ्तारी इसलिए की गई है क्योंकि उन्होंने सीएए (नागरिकता संशोधित कानून) की आलोचना और विरोध करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया था और उनकी गिरफ्तारी भारत की वाइब्रेंट सिविल सोसायटी को शांत करने के लिए एक मैसेज भेजने के रूप में की गई है कि सरकार की नीतियों की आलोचना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के मुताबिक, इन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने खासतौर से मीरान हैदर, गुलशा फातिमा, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तनहा, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, खालिद साइ, शिफा उर रहमान, डॉ. कफील खान, शरजील इमाम और अखिल गोगोई का जिक्र किया है।

विशेषज्ञों ने उल्लेख किया कि सबसे खतरनाक मामलों में एक दिल्ली की गर्भवती सफूरा जरगर को परेशान किया गया जिसे दो महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया। मानवीय के आधार पर जमानत दिए जाने से पहले गर्भावस्था के छठे महीने तक (23 जून 2020) एकांत स्थिति में रखा गया था।

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि इनमें से कई गिरफ्तारियां केवल नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ दिए गए भाषणों के आधार पर थीं। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को उन सभी मानवाधिकार रक्षकों को तुरंत रिहा करना चाहिए, जो वर्तमान में बिना मुकदमा-सबूत के प्री ट्रायल हिरासत में रखे जा रहा है, उन्होंने केवल सीएए के भेदभावपूर्ण स्वभाव की भाषणों के द्वारा आलोचना की थी।

विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शनों के लिए अधिकारियों की प्रतिक्रिया भेदभावपूर्ण थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने नफरत और हिंसा के लिए सीएए समर्थकों पर लगे आरोपों की एक समान जांच नहीं की है जिनमें से कुछ ने जवाबी रैलियों में 'देशद्रियों को गोली मारने' की बात कही है।

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आगे कहा कि भारत के अधिकारियों ने आतंकवाद विरोधी या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का इस्तेमाल किया और प्रक्रियात्मक पुलिस शक्तियों का उपयोग करते हुए प्रदर्शनकारियों को जमानत देने से इनकार कर दिया और भारी सजा देने के लिए आरोप लगाए।

'हालांकि कोरोना महामारी के कारण मार्च में प्रदर्शन समाप्त हो गए। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने महामारी से संबंधित स्वास्थ्य चिंताओं के कारण हाल में जेलों को बंद करने के आदेश दिए लेकिन प्रदर्शनकारी नेताओं को हिरासत में रखा गया है। भारतीय जेलों में कोरोना वायरस फैलने की सूचना ने उनकी तत्काल रिहाई को और अधिक जरूरी बना दिया है।' विशेषज्ञों ने कहा कि इस मुद्दे पर वह सरकार से बातचीत में हैं।

Next Story

विविध