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डगमगा रही बीजेपी की नाव: जैसे-जैसे बंट रहे हैं टिकट, वैसे ही बंटते जा रहे नेता और कार्यकर्ता भी
File photo
बिहार चुनाव पर राजेश पाण्डेय का विश्लेषण
पटना। बिहार चुनावों में बीजेपी के नाराज नेता बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं। टिकट बंटवारे की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, नाराज नेताओं की संख्या भी उसी गति से बढ़ती जा रही है। टिकट की चाह रखने वाले इन नेताओं में से कई नेता अन्य दलों से या फिर बागी उम्मीदवार के रुप में नामांकन कर रहे हैं तो कई नेता खुलेआम पार्टी को सबक सिखाने की बात कह रहे हैं। ये बागी और नाराज नेता चुनाव में बीजेपी का खेल खराब कर सकते हैं।
बीजेपी के कार्यकर्ताओं में इस बात की भी नाराजगी है कि कई ऐसे सीटों को भी गठबंधन के दूसरे दलों को दे दिया गया है, जिनपर कुछ समय पहले पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा कार्यकर्ताओं से तैयारी करने को कहा गया था। इन सीटों पर कार्यकर्ता और टिकट के दावेदार नेता चुनावी तैयारियों में जुटे हुए थे, इसी बीच सीट ही खिसककर दूसरे दल के पाले में चली गई। इससे इन क्षेत्रों के नेता और कार्यकर्ताओं को झटका लगा है।
इन नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इतनी तैयारी की, बूथ लेबल तक कमिटी बनाई, लोगों को जोड़ने में मेहनत की। कई साल लगातार जनता के बीच रहकर काम किया और जब चुनाव लड़ने की बात आई तो दूसरे दल को सीट दे दी गई। ऐसे में एक तरह से सारी मेहनत बेकार हो गई है। हालांकि सीट गठबंधन के घटक दल को मिली जरूर है, पर कार्यकर्ताओं को जो मानसिक तकलीफ हुई है, उससे उनके निष्क्रिय हो जाने का खतरा मंडरा रहा है।
वैसे तो टिकट बंटवारे के क्रम में हर दल में अमूमन यह स्थिति बनी हुई है, पर बीजेपी में यह घमासान का रूप ले रही है। सारण जिला के अमनौर विधानसभा सीट पर सिटिंग विधायक शत्रुघ्न तिवारी उर्फ चोकर बाबा का टिकट काटकर उन कृष्ण कुमार उर्फ मंटू सिंह को दे दिया गया है, जिन्हें आनन-फानन में इसी उद्देश्य से एक हफ्ते पहले पार्टी में शामिल कराया गया था।
यहां पिछले चुनाव में चोकर बाबा तब जदयू के टिकट पर लड़ रहे मंटू सिंह को ही हराकर विधानसभा पहुंचे थे। ऐसे में यहां के बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कार्यकर्ताओं ने इसके विरोध में पटना स्थित पार्टी के प्रदेश ऑफिस को घेर लिया था और बड़े नेताओं के विरुद्ध नारेबाजी करते हुए खूब खरी खोटी सुनाई थी।
इसके बाद क्षेत्र में महापंचायत लगाया गया, जिसमें पार्टी के स्थानीय बड़े नेता भी उपस्थित हुए, पार्टी का फरमान नहीं मानने का एलान किया गया और अब चोकर बाबा निर्दलीय ही अखाड़े में कूद पड़े हैं। पार्टी के लगभग आधे नेता कार्यकर्ता मंटू सिंह के साथ तो आधे चोकर बाबा के साथ क्षेत्र में घूम रहे हैं। इसका परिणाम क्या होगा, वह तो वोटों की गिनती के वक्त 10 नवंबर को पता चलेगा, पर इसका प्रभाव जिला के सभी 10 विधानसभा सीटों पर दिखाई दे रहा है।
सारण जिला के ही बनियापुर विधानसभा सीट पर पहले जदयू की ओर से वीरेंद्र ओझा चुनाव लड़ा करते थे। वे क्षेत्र में अपनी पहचान रखते हैं और उस भूमिहार वर्ग से आते हैं जो बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। पिछले चुनाव में जब राजद और जदयू साथ मिलकर लड़ी थी, तब सीट राजद के कोटे में गई थी और राजद ने यहां से जीत भी दर्ज की थी।
इस बार जब जदयू बीजेपी के साथ है तो भूमिहार बाहुल्य इस इलाके के एनडीए कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि जदयू या बीजेपी की ओर से वे उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। पर ऐन वक्त पर बड़ा खेल हो गया और सीट बीजेपी ने अपने कोटे में ले ली। खेल यहीं खत्म नहीं हुआ और बीजेपी ने इस सीट को मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को दे दिया। अभी हालत ऐसी है कि वीआईपी का न तो सारण में जिला, न प्रखंड स्तर का कोई संगठन है। कहा जा रहा है कि उसे उम्मीदवार भी नहीं मिल रहा। इसी चक्कर मे नाम की घोषणा भी अटकी हुई है। हो सकता है दूसरे दल से आयातित किसी बड़े नेता को सिंबल मिल जाय।
ऐसे में कार्यकर्ताओं को बीजेपी से इस बात को लेकर नाराजगी है कि अपने कोर वोटर की बहुलता वाले इस क्षेत्र का सीट अपने कोटे में आने के बावजूद वीआईपी को क्यों दे दी गई। कार्यकर्ता खुलकर विरोध के स्वर भी उठा रहे हैं। यह नाराजगी गुल खिला दे तो आश्चर्य की बात नहीं।
कुछ यही हाल सीवान जिले के सीवान विधानसभा और रघुनाथपुर विधानसभा सीट का भी है। सीवान सीट से पिछले कई बार से चुनाव जीत रहे व्यासदेव प्रसाद का टिकट काटकर उन ओमप्रकाश यादव को दे दिया गया है, जो यहां से सांसद रहे हैं। व्यासदेव प्रसाद बीजेपी के कोर वोटबैंक यानि वैश्य बिरादरी से आते हैं। इसे लेकर अब पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता दो गुटों में बंटे नजर आ रहे हैं।
रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर भी पूर्व विधान पार्षद और पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह की तगड़ी दावेदारी थी, पर कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अंत समय में खेल हो गया और उनकी टिकट कट गई। यहाँ भी कार्यकर्ता और समर्थक दो गुटों में बंट चुके हैं। ऐसे दर्जनों विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें कुछ ऐसी ही स्थिति बनती जा रही है, जो पार्टी के चुनावी संभावनाओं पर विपरीत असर डाल सकती है।