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डॉक्टर्स के अभाव में ओझा-तांत्रिकों और झोलाछाप के चंगुल में फंसने को अभिशप्त ग्रामीण, झारखंड के कई इलाकों में डॉक्टरों का घोर अभाव
प्रतीकात्मक फोटो
Andhvishwas news : अंधविश्वास के लिए देश में विख्यात झारखंड में लचर स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण टोने टोटकों की शरण लेने को मजबूर हैं। हालांकि झारखंड सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन इसके बावजूद चिकित्सकों की कमी के कारण आमजनों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। झारखंड के कई जिले जिनमें सुदूर क्षेत्र भी शामिल हैं, में तो स्वास्थ्य सुविधाओं का जबरदस्त टोटा बताया जा रहा है। ऐसा ही एक जिला लोहदरगा भी है।
कहने को तो लोहरदगा जिले में कुल सात प्रखंड शामिल हैं, लेकिन इस जिले के महज पांच प्रखंड में ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित है। इस जिले के पेशरार प्रखंड तथा कैरो प्रखंड 21वीं सदी के इस दौर में अभी भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा से वंचित है। ऐसी परिस्थिति में इन दोनों प्रखंडों की बड़ी आबादी आज भी अपने मरीजों के इलाज के लिए काफी मशक्कत करने को विवश है।
चिकित्सकों की इस कमी के बाद भी यहां बीमारियों की भरमार है। ऐसे में सरकारी इलाज की सुविधा के आधार में इन बीमारों का पूरा फायदा झोलाछाप डॉक्टर्स उठाते हैं। जहां इन्हें न केवल औना पौना इलाज महंगे दाम पर उपलब्ध होता है तो दूसरी ओर ज्यादा गरीब तबके के लोग अपनी बीमारियों की समस्यायों से निजात पाने के लिए झाड़ फूंक करने वाले ओझा तांत्रिकों की शरण में भी चले जाते हैं।
यह पैसा कमाने के लालच में कई झोलाछाप डॉक्टर क्रॉनिकल मरीजों का इलाज शुरू कर देते हैं। इस प्रयोग से जब मरीजों की स्थिति बिगड़नी शुरू होती है, तो अंतिम समय में वैसे मरीजों को लोहरदगा सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। इन झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में पड़कर न सिर्फ मरीज के परिजनों का आर्थिक रूप से दोहन किया जाता रहा है, बल्कि कई मरीज तो झोलाछाप डॉक्टरों के चक्कर में पड़कर असमय मौत को गले लगा लेते हैं।
लोहरदगा में चिकित्सकों की कमी का आलम यह है कि सदर अस्पताल, लोहरदगा में अस्पताल के उपाधीक्षक सहित चिकित्सा पदाधिकारियों का 28 पोस्ट खाली है। सदर अस्पताल में चिकित्सकों के कुल 63 पदों के सापेक्ष महज 35 चिकित्सक कार्यरत हैं। जबकि सदर अस्पताल के उपाध्यक्ष में एक रिक्त पद के अलावा पैथोलॉजिस्ट के दो, फिजीशियन के दो, निश्चेतक के दो, मनोचिकित्सक के एक, अस्थि रोग विशेषज्ञ के एक, नेत्र रोग विशेषज्ञ के दो, फॉरेंसिक विशेषज्ञ के एक, चर्म एवं गुप्त रोग के एक, रेडियोलॉजिस्ट के एक, जिला यक्ष्मा केंद्र चिकित्सा पदाधिकारी के एक तथा कुछ नियंत्रण चिकित्सा पदाधिकारी के एक पद खाली पड़े हैं। इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, लोहरदगा में चिकित्सा पदाधिकारी के तीन स्वीकृत पदों पर केवल एक पद पर डॉक्टर कार्यरत हैं। यहां भी डॉक्टर्स के दो पोस्ट खाली पड़े हैं। इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सेन्हा शिशु रोग तथा फिजीशियन के एक-एक पद खाली पड़े हैं। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भंडरा में भी चिकित्सा पदाधिकारी स्वीकृत पदों में दो पद रिक्त पड़े हैं।
अस्पतालों में सरकारी चिकित्सकों की इतनी बड़ी कमी के कारण लोग छोटी मोटी बीमारियों में भी अंधविश्वास के जाल में फंसने को मजबूर हैं। दरअसल ग्रामीण जिले के सुदूर ग्रामीण पहाड़ी इलाकों में आज भी लोग अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं। इन इलाकों में सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों के माध्यम से इस दिशा में तमाम जागरूकता अभियान चलाए जाने के बावजूद भी ग्रामीण अंधविश्वास पर विश्वास करते हैं। जिसमें इस इलाके में कहीं न कहीं चिकित्सकों की कमी एक बड़ा कारण बनी हुई है। इसी चिकित्सकों की कमी के कारण झोलाछाप डॉक्टर्स तथा ओझा-गुनी का धंधा जिले में फलफूल रहा है।