लखनऊ में रोजाना जल रहीं 250-300 लाशें, लकड़ियों की बढ़ी किल्लत तो नगर निगम ने शासन से मांगी 20 करोड़ की मदद
जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। कोविड-19 की दूसरी लहर आने के बाद श्मशान घाटों पर बड़ी तादाद में शव पहुँच रहे हैं। जिसके चलते अंतिम संस्कार के लिए अब लकड़ीयां तक कम पड़ रही है। शहर के लकड़ी ठेकेदार इस जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए अब दूसरे जिलों से लकड़ी मंगाई जा रही है। नगर निगम अब तक करीब नौ हजार क्विंटल लकड़ी वन के कई जिलों से मंगा चुका है। अंतिम संस्कार का खर्च बढ़ने से नगर निगम के पास बजट की भी कमी हो गई है। इसलिए उसने शासन से 20 करोड़ रुपये की मदद मांगी है।
लखनऊ में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी की खपत पहले के मुकाबले 10 गुना तक बढ़ गई है, क्योंकि सामान्य दिनों के मुकाबले इन दिनों अंतिम संस्कार के लिए रोजाना 250 से 300 तक शव पहुंच रहे हैं। आम दिनों में यह संख्या रोजाना 20 से 30 तक रहती थी। शहर के लकड़ी ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। जिसके बाद अब नगर निगम को वन निगम से लकड़ी मंगानी पड़ रही। वन निगम ने अब तक बहराइच, लखीमपुर खीरी, गोंडा, बलिया, अयोध्या और नजीबाबाद प्रभाग से करीब नौ हजार क्विंटल लकड़ी मंगाई है।
बैकुंठ धाम और गुलालाघाट पर पिछले महीने तक अंतिम संस्कार के लिए नगर निगम की ओर से लकड़ी व्यवस्था नहीं थी। अंतिम संस्कार कराने वाले पंडे ही लकड़ी बेचते थे। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में शवों की बढ़ी तादाद से लकड़ी की किल्लत हुई और विद्युत शवदाह गृह पर लाइन लगने लगी तो नगर निगम खुद लकड़ी का इंतजाम कराने लगा। विद्युत शवदाह गृह की तरह ही संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी, घी व अन्य सामग्री भी नगर निगम निशुल्क देता है।
हालांकि, सामान्य शवों के लिए अंतिम संस्कार की व्यवस्था पूर्व की तरह ही है। इनके लिए पंडों से ही तय रेट पर लकड़ी खरीदी जा रही है। इस समय बैकुंठधाम और गुलाला घाट पर रोजाना औसतन 200 से 300 तक शव लाए जा रहे हैं। इनमें करीब 50 फीसदी संक्रमित होते हैं। संक्रमित शवों में 50 से 60 का ही अंतिम संस्कार दोनों घाटों पर बिजली से हो पाता है। शेष का लकड़ी से किया जा रहा है। ऐसे में करीब औसतन 200 शवों का अंतिम संस्कार लकड़ी से होता है। एक पर करीब साढ़े तीन क्विंटल के हिसाब से करीब 700 क्विंटल लकड़ी रोज खर्च हो रही है।
नगर आयुक्त लखनऊ अजय द्विवेदी ने बताया कि कोरोना संकट को देखते हुए नगर निगम से करीब पांच करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया था, लेकिन उससे काम नहीं चल सका। एक शव के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी पर जितना खर्च है उतना ही खर्च कर्मचारी, पीपीई किट, सैनिटाइजेशन आदि पर होता है। संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार पूरा काम नगर निगम के कर्मचारी ही करते हैं। इसके लिए अतिरिक्त कर्मचारी लगाने पड़े हैं। ऐसे में शासन से 20 करोड़ रुपये बजट की मांग की गई है।