कोरोना ने पूरी तरह बदल दी है बच्चों की जिंदगी, सामूहिक तौर पर खेलकूद के रास्ते तक हुए बंद
भोपाल। कोरोना संक्रमण ने सबसे ज्यादा अगर किसी की जिंदगी में असर डाला है तो वह बच्चे हैं, क्योंकि उनके सामूहिक तौर पर खेलने-कूदने के तमाम रास्ते तो बंद हुए ही हैं, साथ ही मनपसंद चीजें खाने पर भी अंकुश लग गया है।
बच्चे जल्दी से जल्दी कोरोना से मुक्ति चाहते हैं, ताकि उनकी जिंदगी पहले जैसी सामान्य हो जाए। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी (सीआरओ) ने मंगलवार 22 दिसंबर को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर बच्चों से संवाद का आयोजन किया। इस संवाद का उद्देश्य बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी जिंदगी पर कोरोना से पड़े असर को जानना था। इस संवाद में प्रदेश के लगभग एक दर्जन जिलों के बच्चे जुड़े और उन्होंने अपने बीते नौ माह के अनुभव साझा किए।
दतिया के 10वीं में पढ़ने वाले रोहित मांझी ने बताया कि, "कोरोना के कारण पढ़ाई पर असर तो पड़ा ही है, साथ ही उन्हें अब मनपसंद चीजें भी खाने को कम मिलती हैं। तेल से बनी चीजें उन्हें बहुत पसंद हैं, मगर कोरोना के कारण उन्हें यह आसानी से उपलब्ध नहीं होती, घर में भी कम खाने को मिलती हैं तेल से बनी चीजें।"
टीकमगढ़ जिले के 12वीं में पढ़ने वाले अवधेश प्रजापति ने बताया कि, "कोरोना ने सबके बीच दूरियां बढ़ा दी हैं। कक्षाएं तो शुरू हो गई हैं मगर शिक्षक और छात्र के बीच दूरियां रहती हैं। मास्क लगाकर जाना होता है तो वही सैनिटाइजर का उपयोग करना होता है। इतना ही नहीं नूडल्स खाने का मन करता है, मगर यह मिल नहीं पा रहा है।"
सोशल मीडिया पर आयोजित संवाद में अधिकांश बच्चों का यही कहना था कि, "उनका जीवन काफी बदल गया है। वे खुद भी अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे रहे हैं तो परिवार के सदस्य भी उनके स्वास्थ्य के प्रति पहले से कहीं ज्यादा जागरूक रहते हैं। इसके साथ ही उनकी दिनचर्या भी बदल गई है, खान-पान भी बदल गया है। सबसे ज्यादा जोर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली वस्तुओं के खानपान पर रहता है। स्कूलों के बंद रहने के कारण दोस्तों से मेल मुलाकात कम हो पा रही है तो वहीं सामूहिक तौर पर खेलने कूदने को भी नहीं मिल रहा है।"
चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी की अध्यक्ष और राज्य की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने भी बच्चों के अनुभवों को सुना और मार्गदर्शन भी दिया।