Covid 19 : वैज्ञानिक आधार ना होने के बावजूद भारत में आयुर्वेदिक दवाओं का बन गया बड़ा बाजार, कितना करें भरोसा
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दिनकर कुमार की रिपोर्ट
Covid 19 : कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान वायरस (Coronavirus) में म्यूटेशन और नए स्ट्रेनों के कारण लोगों को तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक समय इलाज के लिए अपर्याप्त मालूम पड़ रही स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच आयुर्वेद (Ayurved) जैसी वैकल्पिक उपचार पद्धतियों ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। आयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक यह चिकित्सा पद्धति न सिर्फ कोरोना के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में सहायक है, साथ ही कोरोना के रोगियों के लक्षणों को भी इससे काफी हद तक कम किया जा सकता है।
कोरोना (Covid 19) से लड़ाई में भारत के लोग अपने तरीके आजमा रहे हैं। कहीं हल्दी वाला दूध है तो कहीं तुलसी वाला पानी और कहीं गौमूत्र। वैज्ञानिक आधार ना होने के बावजूद भारत में इसका एक बड़ा बाजार बन गया है।
आयुर्वेदिक दवाएं कोरोना को रोकने में कितनी कारगर हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण फिलहाल नहीं है। हालांकि आयुर्वेद का कारोबार महामारी के पहले ही काफी बड़ा हो चुका है। लोग मान रहे हैं कि प्राकृतिक इलाज कैंसर से लेकर सर्दी जुकाम तक सब ठीक कर सकता है। भारतीय कारोबार संघ सीआईआई के मुताबिक इस समय यह उद्योग 10 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है।
आयुर्वेद उपचार बताने वाली भास्वती भट्टाचार्या का कहना है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन और दूसरे पारंपरिक इलाजों की कमी ने लोगों को प्राकृतिक उपचारों की तरफ जाने पर मजबूर किया है। भट्टाचार्या ने कहा, "आयुर्वेद 5,000 साल पहले लिखा गया और उसके कम से कम दो गुना समय पहले से हमारे आस पास मौजूद है। इसने प्लेग से लेकर चेचक और दूसरी कई महामारियां देखी हैं, इसलिए लोग कह रहे हैं - चलो देखते हैं, शायद यह काम कर जाए।"
आयुर्वेद यानी "जीवन का विज्ञान" और दूसरे इलाजों को मोदी सरकार भी खूब बढ़ावा दे रही है। 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार में इसके लिए बकायदा अलग से आयुष मंत्रालय का गठन किया गया। आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी को शामिल किया गया है। पिछले साल जनवरी में आयुष मंत्रालय ने पारंपरिक इलाजों को कोरोना वायरस से लड़ने का उपाय बताया। बिना लक्षण वाले कोविड के हल्के संक्रमण से पीड़ितों का इलाज आयुर्वेद और योग से करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए।
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के कई नेता गाय के गोबर और गौमूत्र से कोरोना वायरस का इलाज करने की हिमायत करते रहे हैं। आयुष मंत्रालय ने योग गुरु रामदेव को"कोरोनिल" नाम की हर्बल दवा की मार्केटिंग बंद करने का आदेश दिया। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कम्युनिटी मेडिसिन प्रोफेसर आनंद कृष्णन कहते हैं, "इनमें से कोई भी कोविड-19 से आपका खास बचाव नहीं कर सकता। लोगों के लिए जरूरी यह है कि वो सामाजिक दूरी को अपनाएं, मास्क पहनें और हाथ धोएं।"
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की निदेशक, डॉ तनुजा नेसरी का कहना है,"आयुर्वेद स्वस्थ और सुखमय जीवन जीने की कला है। अगर आयुर्वेद को हम सभी अपने जीवन का हिस्सा बना लें तो कोरोना जैसी महामारी में भी स्वस्थ रहना कोई कठिन काम नहीं है। कोरोना के साथ भी और कोरोना के बाद भी स्वस्थ जीवन जीने के लिए आयुर्वेद में बताई गई दिनचर्या का सभी लोगों को निरंतर पालन करते रहना चाहिए। इसी क्रम में कोरोना महामारी का पता लगते ही आयुष मंत्रालय ने सभी लोगों के लिए घर पर देखभाल के उपायों से संबंधित विस्तृत गाइडलाइंस जारी कर दी थी।''
''आयुर्वेद में कई ऐसी औषधियां हैं जो स्वाद में तो कड़वी होती हैं लेकिन कोरोना के उपचार में काफी कारगर साबित हो सकती हैं। तुलसी, गिलोय, अश्वगंधा, नीम, मुलेठी जैसी औषधियां न सिर्फ इम्यूनिटी को बढ़ाने में सहायक हैं, साथ ही इनमें मौजूद एंटीवायरल गुण संक्रमण को कम करने में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।"
इससे पहले अक्टूबर 2020 में आयुर्वेद और योग के जरिये कोरोना के बिना लक्षण या मामूली लक्षण वाले मरीजों के इलाज को औपचारिक मंजूरी देने के ऐलान से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन नाराजगी जाहिर कर चुका है। देश में डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था आईएमए ने पूछा कि केंद्र सरकार ने किस आधार पर आयुष के ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से कोरोना के इलाज की मंजूरी दी है?
आईएमए ने कहा, तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बिना लक्षण और हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीज़ों के लिए आयुष और योग से इलाज और रोकथाम संबंधित प्रोटोकॉल जारी किया। उन्होंने इसके समर्थन में बहुत से महत्वपूर्ण संस्थानों का नाम भी लिया। यह लोगों के व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर हैं। डॉक्टर हर्षवर्धन यह भी मानते हैं कि आयुर्वेदिक दवाएं आधुनिक दवाओं की आधारशिला का हिस्सा है, ऐसे में यह किस आधार पर निर्णय किया गया है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पूछा कि क्या कोरोना के मरीज़ों पर आयुर्वेद या योग के इलाज के प्रभाव को लेकर अध्ययन से जुड़े कोई संतोषजनक सुबूत हैं? इस दावे का समर्थन करने वाले और उनका अपना मंत्रालय क्या आयुष प्रोटोकॉल के डबल ब्लाइंड स्टडी यानी दो तरफा नियंत्रित अध्ययन के लिए तैयार हैं? सरकार के कितने मंत्री और सहयोगियों ने खुद आयुर्वेद और योग से अपना इलाज करवाया है? अगर यह असरदार है तो कोविड केयर और कंट्रोल आयुष मंत्रालय को सौंपने से उन्हें कौन रोक रहा है? यह भी बताया जाए कि कोरोना का गंभीर रूप हाइपर इम्यून स्टेटस है या इम्यून डेफिशियेंसी स्टेटस?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन मांग करती है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इस पर अपना पक्ष साफ करें और सवालों के जवाब दें। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो वो लोगों में एक फ़र्ज़ी दवा को लेकर भ्रम फैला रहे हैं।
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