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कोविड -19

नरसंहार वाला भारत 'विश्वगुरु' और मलेशिया में कोविड 19 की ड्रोन से निगरानी

Janjwar Desk
10 Jun 2021 10:35 AM GMT
नरसंहार वाला भारत विश्वगुरु और मलेशिया में कोविड 19 की ड्रोन से निगरानी
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(कोविड 19 के दौर में हमारे देश में भी ड्रोन का उपयोग किया गया है, पर इसका कोविड 19 से दूर-दूर तक नाता नहीं)

दुनिया के छोटे और गरीब देश जिस समय अपने सीमित संसाधनों के बाद भी गंभीरता से कोविड 19 के विरुद्ध खड़े थे, हम मोदी जी के आव्हान पर तालियाँ और थालियाँ बजा रहे थे, मोमबत्तियां जला रहे थे, हॉस्पिटल जैसे घोषित शांत क्षेत्र में बैंड बजा रहे थे.....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

मलेशिया में भीड़-भाड़ वाली खुली जगहों पर पुलिस ड्रोन की मदद से तेज ज्वर वाले लोगों की पहचान कर रही है। मई के अंत तक वहां प्रतिदिन 9000 से अधिक कोविड 19 के नए मामले आने लगे थे, उसके बाद से यह कदम उठाया गया। वहां जिस ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह 20 मीटर की ऊंचाई से भी भीड़ में शामिल हरेक व्यक्ति का सटीक तापमान माप सकता है, और ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर सकता है जिनके शरीर का तापमान सामान्य से अधिक है। यह पहचान करने के बाद ड्रोन लाल रोशनी की मदद से अधिकारियों को सूचित करता है, जिससे अधिकारी तेज ज्वर वाले लोगों को समूह से अलग कर आगे की जांच कर सकें। मलेशिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी, बेरनामा, के अनुसार मलेशिया पुलिस द्वारा ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से संक्रमित व्यक्तियों की पहचान के लिए किया जा रहा है।

मलेशिया सरकार के अनुसार इतनी बड़ी संख्या में कोविड 19 के विस्तार का कारण वायरस का नया प्रकार, मुख्य तौर पर डेल्टा वैरिएंट है, जो अधिक संक्रामक है। मलेशिया में मई के अंत में लॉकडाउन लगाया गया था, जिसमें जरूरी कामों के लिए हरेक घर से केवल दो लोगों को निकलने की इजाजत थी। मलेशिया से पहले, पिछले वर्ष कोविड 19 से निपटने में ड्रोन की मदद चीन ने ली थी। चीन के अनेक शहरों में ड्रोन की मदद से सैनिटाईज़र् का छिडकाव खुली व्यस्त जगहों पर किया गया था, और इसके अनेक विडियो ग्लोबल टाइम्स की साईट पर देखे जा सकते हैं।

कोविड 19 के दौर में हमारे देश में भी ड्रोन का उपयोग किया गया है, पर इसका कोविड 19 से दूर-दूर तक नाता नहीं था। दिल्ली की सीमाओं पर जुटे आन्दोलनकारी किसानों की गतिविधियों पर निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल किया गया था। पिछले महीने अमेरिका की पत्रिका, द कन्वेर्सेशन ने एक दुनियाभर के लोगों का एक मत-संग्रह किया था। इसमें पूछा गया था कि दुनिया में कोविड 19 से लड़ाई में सबसे असफल शासक कौन है। इस मत संग्रह में जितने भी लोगों ने अपने मत भेजे थे, उसमें 90 प्रतिशत लोगों ने भारत के आत्मप्रशंसा से विभोर प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिया था। परिणाम का आलम यह था कि प्रधानमंत्री मोदी के 90 प्रतिशत वोट के बाद का स्थान अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का था, जिन्हें महज 4।9 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोल्सेनारो को 3।6 प्रतिशत वोट मिले थे।

दुनिया के छोटे और गरीब देश जिस समय अपने सीमित संसाधनों के बाद भी गंभीरता से कोविड 19 के विरुद्ध खड़े थे, हम मोदी जी के आव्हान पर तालियाँ और थालियाँ बजा रहे थे, मोमबत्तियां जला रहे थे, हॉस्पिटल जैसे घोषित शांत क्षेत्र में बैंड बजा रहे थे। हमारे प्रधानमंत्री के साथ ही मीडिया और सोशल मीडिया पर बीजेपी समर्थकों की फ़ौज मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से कोविड 19 का इलाज करने में जुटी थी। अभी हाल में ही कोविड 19 के उपचार के प्रोटोकॉल से चुपके से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को बाहर किया गया है।

प्रधानमंत्री के संरक्षण में अनेक केन्द्रीय मंत्रियों, सरकारी संस्थानों, मीडिया और सोशल मीडिया पर बैठी जाहिल फ़ौज गौ-मूत्र, गोबर, काढा, गर्म पानी, मन्त्र, हवन, गंगाजल से ही कोरोना का इलाज कर लिया। इसमें से अनेक समर्थक और नेता तो कोविड 19 की चपेट में आकर अपनी जान से भी हाथ धो बैठे, पर पिछले वर्ष से जो सिलसिला चल रहा है वह अभी तक थमा नही है। कोविड 19 की दूसरी लहर के उफान पर टेस्टिंग, ट्रेसिंग, ट्रीटमेंट तो नदारद था ही, लाशों को जलाने और दफनाने की जगहें भी नदारद थीं, फिर भी बीजेपी समर्थक और मीडिया प्रधानमंत्री को कोविड 19 के विरुद्ध लड़ाई में दुनिया के सफलतम शासक के तौर पर पेश करते हुए जरा भी हिचक नहीं रही है।

हाल में ही प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन दिया और उसके बाद से मीडिया लगातार बता रहा है कि अब सबको मुफ्त टीका लगेगा, पर यह नहीं बता रहा है कि 25 प्रतिशत टीके जो प्राईवेट अस्पतालों में भेजे जा रहे हैं, वे टीके लेने वाले क्या इस देश के नागरिक नहीं हैं? इस संबोधन से एक तथ्य स्पष्ट था, जिसे मीडिया बताना नहीं चाहता – हम टीकाकरण कार्यक्रम में दो महीने पीछे चले गए, 21 जून के बाद वह व्यवस्था लागू होगी जो पहली मई को थी। कोविड 19 से मुकाबले में जहां दूसरे देशों में घंटों और दिनों का भी हिसाब रखा गया, वहीं विश्वगुरु भारत में दो महीने की बर्बादी कोई समाचार नहीं बनती।

कोविड 19 के दौर में रामदेव सबसे बड़े वैज्ञानिक के तौर पर उभरे, जिनके एक तरफ स्वास्थ्य मंत्री तो दूसरी तरफ परिवहन मंत्री मुस्कराते हुए खड़े होते थे, और कोरोनिल के बारे में जनता को बरगला रहे थे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के विरोध को भी सरकार ने डस्टबिन में डाल दिया। एक तरफ जहां, आईएमए के विरोध पर हमारे सरकार पर कोई असर नहीं हुआ, वहीं छोटे पड़ोसी देशों, भूटान और नेपाल, ने कोरोनिल किट के वितरण पर रोक लगा दी है और इसमें आईएमए के विरोध का जिक्र भी किया है।

हमारे देश में सड़क हादसे में या फिर प्राकृतिक आपदाओं में मरने वालों के लिए तुरंत सरकारी मुवावजा का ऐलान कर दिया जाता है, वहीं सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही, ऑक्सीजन की कमी या फिर वेंटिलेटर की कमी से मरने वालों को कभी मुवावजा नहीं मिलेगा। इनके तो आंकड़े भी सरकार के पास नहीं हैं। सरकार के पास तो कोविड के कारण नदियों में बहती लाशों और नदी किनारे दफनाई लाशों की संख्या भी नहीं है। संख्या पर उठने वाले सवालों से बचने के लिए बिहार में मौत के आंकड़ों में 4000 की संख्या को जोड़ दिया गया है, जाहिर है इससे लाखों अतिरिक्त मौतों पर सवाल बंद हो जायेंगें।

प्रधानमंत्री से लेकर पूरी सरकार जिन टीकों को डेल्टा वैरिएंट पर लगातार कारगर बताती रही हैं, इस दावे को अब एम्स, नई दिल्ली और नेशनल कौंसिल फॉर डिजीज कण्ट्रोल ने झूठा साबित कर दिया है। जाहिर हैं देश के कुछ योग्य वैज्ञानिकों की नौकरी खतरे में पड़ जायेगी। जाहिर है, छोटे और गरीब देशों ने भी कोविड 19 का मुकाबला बेहतर तरीके से किया और विश्वगुरु भारत की सरकार ने कोविड 19 से मुकाबले करने के बदले अपनी जनता से ही मुकाबला किया।

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