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कोविड -19

कोरोना संकट में बौनी पड़ गई सरकारी व्यवस्था, साल भर पैरों में मेंहदी लगाकर बैठे रहे जिम्मेदार

Janjwar Desk
7 May 2021 5:40 AM GMT
कोरोना संकट में बौनी पड़ गई सरकारी व्यवस्था, साल भर पैरों में मेंहदी लगाकर बैठे रहे जिम्मेदार
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कानपुर के दो बड़े सरकारी अस्पताल मुसीबत के समय धुँआ दे गए, उर्सला के 6 वेंटिलेटर पहले से ही खराब हैं तो आईसीयू के 4 वेंटिलेटर कबाड़ होकर बंद हो गए हैं, हैलट में एक-दो नहीं बल्कि 34 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं...

जनज्वार, कानपुर। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच हर तरफ मातम है। कहने को शहर में कई बड़े अस्पताल हैं। तमाम जनपदों के लोग कानपुर आकर अपनी-अपनी छमता का इलाज आकर लेते हैं। कल तक सब ढ़क-पोंछकर रखने वाले महकमे की सच्चाई इस संकट काल में खुली है। निकलकर आई तमाम नाकामियों के बीच यह बड़ी बात है कि जिम्मेदार पिछली त्रासदी के बाद मिले 1 साल से जादा वक्त तक आखिर करते क्या रहे?

मरघटों पर लाशों का अंबार लगा है, चिताएं जलाने की जगह नहीं मिल रही। अस्पतालों में किसी प्रकार की सुविधा नहीं है। बेड नहीं, वेंटिलेटर नहीं और तो कोरोना रोकने की पहली कड़ी ऑक्सीजन उसकी तक किल्लत। कानपुर के दो बड़े सरकारी अस्पताल मुसीबत के समय धुँआ दे गए। उर्सला के 6 वेंटिलेटर पहले से ही खराब हैं तो आईसीयू के चार वेंटिलेटर कबाड़ होकर बंद हो गए हैं। हैलट का तो इससे बुरा हाल है यहां एक-दो नहीं बल्कि 34 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं, 24 में प्रेशर ना आने से चलने की हालत में नहीं हैं।

बीते वर्ष की मार्च में जब कोरोना की पहली लहर आई थी तब शासन ने हैलट में 150 वेंटिलेटरों की व्यवस्था करने के लिए कहा था। इसके लिए संसाधन जुटाने के प्रस्ताव भी मांगे गए। संसाधन नहीं जुटे उससे पहले ही पहली लहर समाप्त हो गई। जिम्मेदार बेफिक्र होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ गये। बाद में 150 नहीं, 130 वेंटिलेटर लगा दिए गये। शासन के पास यहां 120 वेंटिलर दर्ज हैं, जिसमें पीएम योजना के 34 खराब हैं और 86 की हालत चालू है।

हैलट के 34 खराब पड़े वेंटिलेटरों को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने कोरोना की लहर समाप्त होने के बाद अनदेखा कर दिया था। यह लापरवाही अब भारी पड़ी जब इनकी जरूरत पड़ रही है। बताया यह भी जा रहा है कि यहाँ खराब वेंटिलेटर ही भेजे गए थे। कोरोना की पहली लहर में जब इन्हे लगाने की बारी आई तो इनमें तमाम जरूरी सामान था ही नहीं। जिसके बाद कॉलेज प्रबंधन ने शासन और कंपनी को लिखित सूचना भेजी थी। कंपनी ने हाथ खड़े कर दिये तो शासन को पिर सूचना दी गई, लेकिन बात ठंडे बस्ते में चली गई।

बताया जा रहा है कि उर्सला को कोविड स्टेटस का दर्जा इसलिए नहीं दिया गया था क्योंकि यहां भर्ती नॉनकोविड पैशंट को दिक्कत ना हो। बावजूद इसके मरीजों की संक्या इतनी तेजी से बढ़ रही है कि सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई हैं। कोविड अस्पताल ना होने के बाद भी यहां कोरोना संक्रमित मरीज भर्ती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है। जो वेंटिलेटर हैं उनमें ऑ्कसीजन की किल्लत के चलते पर्याप्त मात्रा में प्रेशर ना मिलने से चल नहीं पा रहे हैं। मजबूरन लोगों को जोखिम उठाना पड़ रहा है।

उर्सला हॉस्पीटल के सीएमएस डॉक्टर अनिल निगम का कहना है कि ऑक्सीजन का पर्याप्त प्रेशर ना होने से वेंटिलेटर बंद करने पड़ गए। इसके अलावा इस समय 240 ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत है, बावजूद इसके हमें 200 सिलिंडर ही मिल पा रहे हैं।

वहीं जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर आरबी कमल का कहना है कि कुछ वेंटिलेटर खराब हो गए हैं। छोटी दिक्कतें होती हैं, उन्हे बनवाकर फिर चालू करवा दिया जाता है। कंपनी के टेक्नीशियन को रोजाना चेक करने के लिए कहा जाता है। रोगियों की अधिकता के चलते बेड की कमी हो रही है लेकिन व्यवस्था की जा रही है।

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