हरियाणा: हेल्थ मिनिस्टर के गृह जिले के गांव समालखा का आइसोलेशन सेंटर रात को हो जाता है बंद
(स्टाफ चला जाता है अपने घर, तर्क क्योंकि मरीज ही नहीं आ रहे हैं तो हम क्या रहकर करेंगे क्या?)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। हरियाणा के हेल्थ मिनिस्टर हैं अनिल विज। वह अंबाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से एमएलए हैं जो कि अंबाला जिले के तहत आता है। अंबाला जिले का गांव है समालखा, यह गांव मुलाना विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है। लेकिन हेल्थ मिनिस्टर के घर से मात्र 15 किलोमीटर दूर है। समालखा में कोविड मरीजों के इलाज के लिए यहां के सरकारी स्कूल में आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है।
जैसे ही अंधेरा होता है, यहां का स्टाफ सेंटर को ताला लगा घर की ओर रवाना हो जाता है। अब यदि रात में कोई गंभीर मरीज आ जाता है तो उसका इलाज कैसे होगा? अगले दिन सुबह जब यहां तैनात स्टाफ से संपर्क किया तो उनके पास इसका जवाब नहीं था। उनका एक ही तर्क है कि मरीज सेंटर में आ ही नहीं रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं? यहां मरीज आए तो इलाज किया जाएगा, उन्होंने बताया।
ग्रामीणों का कहना है कि आइसोलेशन सेंटर बना कर सरकार बस दिखावा भर कर रही है। ताकि यह दिखाया जाए कि इलाज की उचित व्यवस्था है। जबकि यहां ऐसा कुछ नहीं है, जिससे इस महामारी से गांव को बचाया जा सके।
इस गांव में कम से कम 58 से 60 मरीजों को जबरदस्त खांसी, जुकाम और सांस लेने की दिक्कत है, जबकि सामान्य खांसी जुकाम से पीड़ितों की संख्या तो बहुत ज्यादा है। ग्रामीण खांसी जुकाम की वजह मौसम का बदलना बता रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह की दिक्कत तो हर बार इस मौसम में आती है। इसलिए इसमें नया कुछ भी नहीं है। वह घरेलू नुस्खे से ही इसका इलाज करने की कोशिश करते हैं। जब तक मरीज की हालत इतनी खराब न हो जाए कि चारपाई से उठ न पाए,तब तक घरेलू नुस्खे का प्रयोग होता है। तबीयत जब ज्यादा खराब हो जाती है, तभी निजी डॉक्टरों के पास जाते हैं।
जो अपने घरों पर ही इलाज करा रहे हैं। लोगों में प्रशासन के प्रति विश्वास नहीं है। इसलिए वह सरकारी डॉक्टरों के पास आने से डर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि सरकारी अस्पताल में गए तो कफन में लिपट कर ही वापस आएंगे। क्योंकि वहां इलाज नहीं मौत मिलती है। ग्रामीणों का यह डर उन्हें आइसोलेशन सेंटर जाने से रोक रहा है।
ग्रामीणों ने बताया कि एक महिला को अस्पताल लेकर गए थे, लंबे इलाज के बाद भी उसकी मौत हो गई। ग्रामीणों ने दावा किया कि ,गांव की एक बुजुर्ग महिला मरीज को घर पर ही ऑक्सीजन लगवाई गई, अब उनकी हालत पहले से बेहतर है।
ग्रामीणों की यह सोच उन्हें सिस्टम के प्रति अविश्वास पैदा कर रही है। लोग अपनी बीमारी को छुपा रहे हैं। उन्हें डर है कि यदि प्रशासन को पता चल गया तो घर को सील कर देंगे, उनके मरीज को उठा कर आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करा देंगे। वहां उसके खाने पीने की ओर ध्यान नहीं दिया जाएगा। इलाज के दौरान उनके मरीज की मौत भी हो सकती है।
ग्रामीणों इतने डरे हुए हैं कि वह अपना नाम और फोटो तक लेने से मना कर देते हैं। एक ग्रामीण हरबंस सिंह (34) ने बताया कि सेंटर में जब सुविधा ही नहीं है तों वहां जाकर मरीज करेगा क्या? क्या सिर्फ आइसोलेशन वार्ड में भर्ती होने से इलाज हो जाएगा?
एक अन्य ग्रामीण ओमपाल (65) ने बताया वह अपना कोविड का टेस्ट कराना चाहते थे। स्कूल में बने सेंटर गए तो टेस्ट नहीं किया गया। अब इस सेंटर का फायदा क्या? जब यहां टेस्ट तक तो हो नहीं रहा है।
एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि उसका बेटा कोविड का मरीज है। निजी डॉक्टर ने पांच दिन की दवा दी थी। अब दवा खत्म हो गई। बेटे को अभी भी रात में बुखार आ जाता है, वह गांव के सेंटर में गया। वहां उसे न दवा दी न ही कोई मदद की गई। इस ग्रामीण को डर है कि संक्रमण उसके परिवार के दूसरे सदस्यों को तो नहीं हो गया। इस ग्रामीण की यह आशंका गलत भी नहीं है, क्योंकि घरों पर जो कोविड मरीज पड़े हैं, उनके परिवार वाले खुद को बचाने की भी ज्यादा कोशिश नहीं कर रहे हैं। इससे गांव में संक्रमण के और ज्यादा फैलने के आसार बने हुए हैं।
सरकारी दस्तावेज में जो तीन चार मरीज है, उन्हें भी इलाज की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बस दिन में एक दो बार फोन पर हालचाल ले लिया जाता है।
गांव की निर्वतमान सरपंच जितेंद्र कौर ने बताया कि हमने अपनी ओर से स्कूल में पूरी व्यवस्था कर रखी है। अब जब ग्रामीण आ ही नहीं रहे तो क्या कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि 50 बेड का सेंटर बनाया गया है। वहां साफ सफाई की उचित व्यवस्था कर दी गई है। मरीज यदि आएंगे तो उसके खाने पीने का पूरा प्रबंध किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि मरीज आए तो?
उन्होंने बताया कि पंचायती स्तर पर जो कर सकते हैं, वह कर दिया है। इलाज की जो सुविधा है, वह हेल्थ विभाग को करनी है। इसलिए दवा आदि तो वहां से आएगी। इसमें हम क्या कर सकते हैं। यदि मरीज आएंगे तो डॉक्टर भी आ जाएंगे। अब जब कोई मरीज ही नहीं हैं तो क्या कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि गांव में सर्वे भी कराया गया था। लेकिन लोग सामने नहीं आ रहे हैं। उन्हें समझाने के लिए अब वह मुनादी कराने की सोच रही है। इसके साथ ही धार्मिक स्थल पर पूजा के दौरान भी अपील की जाएगी कि गांव के लोग सेंटर में आए।
सामाजिक कार्यकर्ता बृजमोहन सिंह ने बताया कि इलाज नहीं बस सरकार दिखावा कर रही है। कोविड पर रोक के लिए टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट की बात हो रही है, लेकिन ग्रामीणों को जागरूक कौन करेगा? समालखा गांव मुलाना विधानसभा के तहत आता है, वोट मांगने वाले नेता, अब कहां है? वह क्यों नजर नहीं आ रहे हैं?
यहां से कांग्रेस के विधायक वरुण चौधरी विधायक है, लेकिन कोविड में वह अपने घर बैठे हैं। आज चुनाव आ जाए, वह वोट मांगने निकल पड़ेंगे। तो अब क्यों नहीं लोगों को जागरूक करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसी तरह से यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले राजबीर बराड़ा का हाल है, वह भी एक बार भी गांव में नहीं आया। माना कि लॉकडाउन है, लेकिन सामाजिक दूरी का पालन करते हुए ग्रामीणों को जागरूक तो किया जा सकता है। लेकिन नहीं...। यह हालत हेल्थ मिनिस्टर अनिल विज के गृह जिले के गांव के हैं, कल्पना कीजिए, प्रदेश के हालात क्या होंगे?